तकिया-रजाई पर आदिवासियों के देवताओं के चित्र क्यों?

जो डिजाइन आपके लिए 'कूल' है, हो सकता है वो किसी और की भावनाओं को ठेस पहुंचा दे

Tribal God

आज के आधुनिक युग की चकाचौंध में घिरकर हम अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे हैं। एक तरफ जहां हम कला और कई अन्य माध्यमों से भारतीय शैलियों को फिर से जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर जाने अनजाने हम दूसरी संस्कृतियों का अपमान बैठते हैं। खुद को पारंपरिक बनाने के चक्कर में हम कई बातों को लेकर भ्रमित भी हो जाते हैं।

आदिवासियों की संस्कृति

एक तरफ जहां हम अपनी जड़ों, संस्कृति और परंपरा को दर्शाने वाले अच्छे डिजाइनों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहते हैं, वहीं भूलवश हम दूसरी संस्कृति का मजाक बनाने में तनिक देर नहीं लगाते। इस तरह के कृत्यों के कई उदाहरण मिल जाएंगे जिसमें से एक है ‘आदिवासियों की संस्कृति’। जिस तरह हम चाहते हैं कि हमारी संस्कृति के बारें में सब लोग जाने और उसका सम्मान करें वैसे ही हमे भी दूसरी संस्कृति के बारें में जानकरी लेनी चाहिए और उनके पीछे की कहानी के बारे में जानना चाहिए।

अधिकतर लोग अपनी संस्कृतियों से प्रेम तो करते हैं इसी वजह से वो कई सारी आश्चर्यजनक डिजाइनों को अपनाने से पीछे नहीं हटते हैं। आज के समय में नागा पारंपरिक डिजाइन लोगों के बीच बहुत अधिक प्रसिद्ध  हैं। यह डिजाइन नागालैंड और देश के अन्य पड़ोसी उत्तर-पूर्वी राज्यों से संबंधित है। कई बार हमें उनकी डिजाइन असामान्य और अजीब लग सकती है लेकिन हो सकता है कि वो उनकी संस्कृति और धर्म के लिए अधिक महत्वपूर्ण हो।

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देखा जाए तो उपभोक्ताओं के लिए पारंपरिक डिजाइन केवल और केवल एक स्टाइल स्टेटमेंट बनकर रह गया है, उदाहरण के लिए नागालैंड का मेखला चादर जो मूल रूप से एक स्कर्ट और एक काला टॉप है, जो आदिवासियों के  पारंपरिक पहनावे का हिस्सा है। इसमें भिन्न-भिन्न नागा जनजातियों की जड़ों को दर्शाने वाले आभूषण भी शामिल हैं।

फैब इंडिया जैसे अलग-अलग मेगा टेक्सटाइल ब्रांड अपने आदिवासी चित्रण और अतरंगी डिजाइन के माध्यम से उपभोक्ताओं को अधिक आकर्षित करते रहते हैं। ये नागा कलाकृतियां कपड़ों के साथ-साथ मिट्टी के बर्तनों और भिन्न-भिन्न शोपीस पर भी चित्रित हैं जो देखने में बहुत ही अधिक आकर्षक और सुंदर हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि ये कलाकृतियां आदिवासी आबादी के लिए बहुत पवित्र हैं।

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नागा इतिहास के छुपे हुए हिस्से

कई बार हम फैशन के साथ-साथ अपनी संस्कृति की झलक भी पाने की इच्छा रखते हैं, उदहारण के लिए लकड़ी के नक्काशीदार नागा जातीय कला रूपांकन को ले सकते हैं जो की मुख्य रूप से नागा इतिहास के छुपे हुए हिस्से के साथ उनके कुछ पशु रूपों को भी दर्शाता है। इनमें कई तरह के अलग-अलग जानवर जैसे बाघ, हाथी, सांप, हॉर्नबिल, बारबेट, छिपकली और बंदर के विभिन्न प्रकार के चित्र भी शमिल हैं जो मानवीय गुणों जैसे साहस, प्रजनन क्षमता और शक्ति के विशिष्ट पशु प्रतिनिधित्व को दर्शाते हैं।

कई बार विभिन्न पश्चिमी कंपनियों और ब्रांडों ने हिंदू देवी-देवताओं को कुछ अनुपयुक्त चित्रण द्वारा एक फैशनेबल वस्तु के रूप में दिखाने का प्रयास किया है। इसके लिए मशहूर चॉकलेट ब्रांड किटकैट का उदहारण देना ठीक होगा। कुछ समय पहले चॉकलेट ब्रांड किटकैट ने अपने चॉकलेट रैपरों पर भगवान् विष्णु का चित्र दिखाया था, जिसके बाद वो जांच के दायरे में भी आयी थी। कुछ लोगों के हिसाब से ये उनकी संस्कृति का अपमान करना था।

चॉकलेट के खा लेने के बाद उन रैपरों का क्या होगा? इस बारे में अगर सोचे तो अधिक संभावना है कि उसे कूड़ेदान या फिर सड़कों पर फेंक दिया जाएगा, जहां पर वो कहीं भी किसी भी पैरों के नीचे आ सकते हैं, साफ सीधा अर्थ है कि ऐसा होने से देवताओं का अपमान होगा।

साल 2017 में अमेरिका की दो ऑनलाइन कंपनियों के विरुद्ध एक केस दर्ज किया गया था। यह केस शराब की बोतल पर हिन्दू देवता गणेश जी की तस्वीर और जूते पर ओम के चिह्न वाले उत्पाद को बेचने के आरोप पर हुआ था। भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के कमिश्नर नरेश कादयान के द्वारा की गयी शिकायत पर दिल्ली के प्रशांत विहार थाने में यह मामला दर्ज हुआ था और फिर मामले की जांच भी हुई थी। नरेश कादयान ने अपनी शिकायत पर कहा कि अमेरिका की ये दोनों ऑनलाइन कंपनियां इस तरह से लोगों की भावनाओं के साथ खेल रही है। भारत के साथ-साथ अमेरिका में भी इस उत्पाद को बेचने पर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने इसके विषय पर विदेश मंत्रालय को चिट्ठी भी लिखी थी जिसमें उन्होंने इन उत्पादों को बेचने वाली वेबसाइट के विरुद्ध केस दर्ज करने की बात कही थी।

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हिंदू देवी-देवताओं का अपमान

जानकारी के अनुसार, अमेरिकन ऑनलाइन कंपनी यसवेवाइब और लॉस्टकॉस्ट वेबसाइट पर शराब पर गणेश जी की फोटो और ओम का चिह्न बने हुए जूते बेचे जा रहे हैं। इससे पहले भी कई सारे मामले सामने आ चुके हैं।

इतना ही नहीं ऑनलाइन कंपनी अमेजन पर तिरंगा बने डोरमेट की भी बिक्री हो रही थी, लोगों ने इस पर आपत्ति जताते हुए इसकी शिकायत तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से की थी। मामले को गंभीरता से लेते हुए सुषमा स्वराज ने इस पर ट्विटर कर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए ऐसे उत्पाद को बेचने से रोकने की बात कही थी। इसके बाद अमेजन ने इसकी बिक्री रोक दी थी

हॉर्नबिल और भारतीय बाइसन या मिथुन, कई नागा जनजातियों में मुख्य है, जो नागा विरासत में महान प्रतीकवाद को दर्शाते हैं। ये बात तो सच है कि नागा पैटर्न और उनके विषय सदियों से विकसित होते चले आए हैं। ये सभी प्रतीक और विषय भारतीय संस्कृति और उसकी विरासत के लिए बहुत अधिक है। लेकिन फिर भी बीते कई सालों से यह अनुचित रूप से कपड़ों और कई भिन्न-भिन्न जगहों पर छापे जा रहे हैं जिससे उनकी संस्कृति का भी अपमान होता है। ये पवित्र रूपांकनों को विशिष्ट क्षेत्रों के लिए पूंजीकृत किया जा रहा है जिससे उनका घोर अपमान हो रहा है।

इस साल की शुरुआत में ये बताया गया था कि कपड़ों और अन्य सामग्रियों पर पारंपरिक डिजाइनों को गलत तरीके से प्रदर्शित किया जा रहा है। इसके बाद इस विषय ने संस्कृति के संरक्षण को लेकर एक बड़ी बहस छेड़ दी। इससे भारतीय क्षेत्र के अहम हिस्से पर अपमानजनक चित्रण को दर्शाया था।

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पारंपरिक नागा डिजाइनों के अनुचित उपयोग

इस विषय पर नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने अलग-अलग फैशन शो में पारंपरिक नागा डिजाइनों के अनुचित रूप से उपयोग करने की बात कही है। साथ ही इन चीज़ों का ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर बेचे जाने पर चिंता जाहिर की है। ये सभी उनके पारंपरिक प्रतीक है, उन्होंने इस बात पर जोर डालते हुए कहा कि पारंपरिक पोशाकों और प्रतीकों के इस दुरुपयोग को जल्द से जल्द रोकने की आवश्यकता है।

इसके साथ ही बौद्धिक संपदा अधिकारों और भौगोलिक संकेतों (जीआई) का महत्व आता है, जो कि आदिवासी संस्कृति को सुरक्षित प्रतिनिधित्व देता है। यह हमारे संस्कृति के साथ हो रहे दुरूपयोग को रोकने में मदद करता है। भौगोलिक संकेत या फिर जीआई टैग मूल रूप से उन उत्पादों के लिए प्रयोग होने वाला एक ऐसा संकेत है जो एक विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति का मालिक है। देश में कई तरह के अपराधों की वृद्धि के साथ-साथ बौद्धिक संपदा अधिकार भी खतरे में दिखायी दे रहा है क्योंकि कई सारे व्यापारी केवल लाभ की लालच में आकर गलत तरीके से इसे प्रस्तुत कर रहे हैं।

इसी तरह के कई सारे पवित्र प्रतीकों, संरचनाओं या फिर रूपांकनों को चित्रित करने वाले कई अन्य चित्रण भी हैं जो की लाखों लोगों के लिए उनकी संस्कृति का अपमान है। केवल लाभ कमाने के लिए इन धार्मिक प्रतीकों का गलत तरह से इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।

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