आप पृथ्वी से प्रेम करते हैं तो इलेक्ट्रिकल व्हीकल कभी मत खरीदना

वज़ह यहां जान लीजिए!

Electric vehicle

Source- Google

मनुष्य अपने विकास के क्रम में अनेक तकनीक विकसित करने में लगा हुआ है. वस्तुतः मनुष्य का मूल स्वभाव अपने कष्ट को कम करते हुए, आराम को बढ़ाना होता है, जिसके फलस्वरूप अभी तक कई खोजे हुई हैं. इन खोजों ने जहां एक ओर मनुष्य के जीवन निर्वहन में सरलता को बढ़ाया तो वहीं दूसरी ओर पृथ्वी के जलवायु को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया. अपने यातायात को सुगम बनाने के क्रम में मनुष्य ने मोटरकार का निर्माण किया एवं ईंधन के रूप में पेट्रोल एवं डीज़ल का उपयोग किया. पेट्रोल और डीज़ल जीवाश्म ईंधन हैं जिसके दोहन से बड़ी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन होता है. इसके कारण मनुष्य ने पहले स्वयं ही पर्यावरण की लंका लगायी और उसके बाद उसे सही करने का जमकर नाटक किया. इसमें सबसे बड़ी भूमिका स्वयं को सभ्य कहने वाले पश्चिमी देशों ने निभाई.

अब एक बार फिर से सो कॉल्ड सभ्य पश्चिमी देश पूरे विश्व को सभ्यता का पाठ पढ़ाने निकले हैं और इस बार विषय है ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज. दरअसल, पश्चिमी देश पृथ्वी पर हो रहे कार्बन उत्सर्जन को कम करने के क्रम में इलेक्ट्रिक व्हीकल को बढ़ावा दे रहे हैं. अपनी बात को सत्य सिद्ध करने के क्रम में उन्होंने भर भर के ईवी की प्रशंसा की है. मानो ऐसा प्रतीत होता है कि ईवी के बाद से पृथ्वी पर जलवायु समस्या तुरंत ही सुलझ जाएगी. आपने भी ईवी के फ़ायदे सुने होंगे किंतु क्या आपने कभी इसके नुक़सान के बारे में सोचा है? आज हम आपको ईवी के काले सच को उजागर करते हुए पश्चिमी देशों के एजेंडे को आपके समक्ष रखेंगे.

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ज़रा अपना मोबाइल उठाइए, उसकी बैटरी क्षमता देखिए, उसके आकार को देखिए, फिर उसके वज़न को तौलिए, आप पाएंगे कि समय के साथ-साथ जैसे आपके मोबाइल की बैटरी क्षमता में बढ़ोत्तरी हो रही है, वैसे वैसे आपके फ़ोन का आकार और उसका वज़न बढ़ता जा रहा है. जिसे छिपाने के लिए मोबाइल कंपनियां बड़ी ही चालाकी के साथ आपको बड़े स्क्रीन का फ़ायदा बताती हैं किंतु असल कारण बैटरी की क्षमता को बढ़ाने से लेकर बैटरी के बढ़ते साइज़ को छिपाना होता है ताकि आपका ध्यान उसपर न जाए. यह तो बात रही बैटरी क्षमता की. इसके अलावा आपके फ़ोन की बैटरी लिथियम की बनी होती है जिसे पुनः चार्ज किया जा सकता है किंतु जितनी बार आप उसका उपयोग करेंगे, आप पाएंगे कि उसकी क्षमता घटती जा रही है. अर्थात् लिथियम आयन के चार्जिंग से उसके अणुओं की हानि होती है जिससे बैटरी की क्षमता का ह्रास होता है और इतना सब के बाद उसके फटने का अलग डर रहता है.

अब ज़रा अपने मस्तिष्क पर ज़ोर डालिए और सोचिए कि जब एक फ़ोन की लिथियम बैटरी का यह हाल है तो इलेक्ट्रिक व्हीकल का क्या हाल होगा. वस्तुतः ईवी में भी लिथियम बैटरी का उपयोग किया जाता है जिसे फटने का डर तो है ही, आम तौर पर इन गाड़ियों की बैटरी क्षमता 40kWh से 100kWh तक होती है. इसका मतलब है कि आप चलते फिरते एक बड़े बॉम्ब पर सवार हैं. इतनी क्षमता के बावजूद भी ये गाड़ियां एक बार चार्ज करने के बाद 300KM से ज़्यादा नहीं चल पाती हैं. इसके बावजूद ईवी की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और पश्चिमी देशों द्वारा इसे खूब बढ़ावा भी दिया जा रहा है.

नतीजतन लिथियम पाने की चाह में ज़्यादा खुदाई हो रही है, जिससे न सिर्फ़ पृथ्वी की पारिस्थिकी तंत्र का नाश हो रहा है अपितु पानी का व्यय भी अधिक हो रहा है. एक औसतन ईवी कार की कीमत सामान्य कार की कीमत से अधिक होती है किंतु कार्यक्षमता कहीं कम. एक्स्पर्ट्स की मानें तो एक ईवी कार की लाइफ़ साइकल औसतन 5 वर्ष की होती है तत्पश्चात उसकी कार्यक्षमता काफी घट जाती है. अब यदि कोई व्यक्ति ईवी लेता है और 5 वर्ष के बाद उसे बेच देता है तो उस कार को बनाने के दौरान हुए प्रदूषण को बेअसर नहीं कर पाएगा. इन सब के बाद गरीब देश जैसे अफ़्रीका आदि देशों में लिथियम निकालने के क्रम में बाल मज़दूरी एवं बंधुआ मज़दूरी जैसे कृत्य भी हो रहे हैं, जिसमें मनुष्यों का शोषण हो रहा है. यह सब कारक बताते हैं कि ईवी का कोई विशेष भविष्य नही है.

कुल मिलाकर पश्चिमी देश जिन उद्देश्यों की बात कर ईवी को बढ़ावा दे रहे हैं, उससे उन उद्देश्यों की पूर्ति तो बिल्कुल भी पूरी नही होने वाली. पश्चिमी देशों द्वारा ईवी को बढ़ावा इसलिए दिया जा रहा है ताकी उनके देश में लगाए गए इससे संबंधित कारख़ाने चल सके, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था फल फूल सके. अगर ये देश सच में पर्यावरण को लेकर गम्भीर हैं तो उन्हें भारत की भांति हाइड्रोजन आधारित गाड़ियों को बढ़ावा देना चाहिए क्योंकि वह सस्ता होने के साथ-साथ प्रदूषण मुक्त भी है. ईवी भविष्य नहीं है. आने वाले चंद वर्षों में हाइड्रोजन आधारित गाड़ियां इसे कई गुना पीछे छोड़ देंगी. भारत सरकार हाइड्रोजन आधारित गाड़ियों को बढ़ावा देने में जी जान से जुटी है, जिससे किसी भी तरह पर्यावरण का ह्रास नहीं होगा. पश्चिमी देशों को भी भारत से सीख लेते हुए हाइड्रोजन आधारित वाहनों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

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