वो कहा गया है न जब आपकी नियत साफ़ होती है तो आपकी योजना की राह में आने वाले रोड़े भी स्वतः ही रास्ता छोड़ देते हैं। अपने दूसरे कार्यकाल में सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार इन्हीं रोड़ों से पार पा चुकी है। बुलडोजर कार्रवाई पर जिस तबके ने सरकार की जमकर भर्त्सना की थी पर न जाने समय-काल-परिस्थिति कब बदली और कैसे बदली कि अब वही तबका योगी सरकार का समर्थन करने लगा है। ऐसे में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि सीएम योगी ने इस्लामिक धर्मशास्त्रियों के लिए ‘रामबाण इलाज’ ढूंढ निकाला है और उसी के परिणाम अब दिखने लगे हैं।
दरअसल, उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वेक्षण करने का निर्णय बीते दिनों सामने आया था। उस दिन से इस्लामिक धुरन्धरों में द्वंद्व-युद्ध शुरु हो गया कि मदरसों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है, जबकि यह द्वेष भावना या खीज़ के कारण नहीं बल्कि गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को सही तरीक़े से जायज़ रुप से संचालित करने की पहल थी। किसी भी कमी के बाहर आते ही उसके सुधार के लिए प्रावधान बनाने की सोच के साथ राज्य सरकार ने सर्वेक्षण की घोषणा की थी।
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सर्वे कराना सरकार का अधिकार है- मदनी
सरकार के इस फैसले पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आईं, जहां एक ओर इस निर्णय को समर्थन हासिल हुआ तो वही दूसरे तबके का विरोधाभासी आख्यान सामने आया। लेकिन रविवार को देवबंद की मशहूर मस्जिद रशीद में आयोजित सम्मेलन में दारुल उलूम ने प्रदेश सरकार द्वारा गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे किए जाने को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया। इस सम्मेलन में उत्तर प्रदेश के विभिन्न मदरसों से आए प्रबंधकों और उलेमाओं ने हिस्सा लिया था। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि सर्वे कराना सरकार का अधिकार है। मौलाना अरशद मदनी ने स्पष्ट किया है कि उन्हें योगी सरकार के मदरसों का सर्वेक्षण से कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने मदरसा संचालकों से आह्वान किया है कि वे सर्वे में सहयोग करें क्योंकि मदरसों के अंदर कुछ भी ढका-दबा नहीं है। सबके लिए मदरसों के दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं।
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 31 अगस्त को राज्य में संचालित हो रहे सभी गैर-मान्यता प्राप्त निजी मदरसों का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। इसके लिए 10 सितंबर तक टीमें गठित करने का काम खत्म कर लिया गया। आदेश के मुताबिक, 15 अक्टूबर तक सर्वे पूरा करके 25 अक्टूबर तक रिपोर्ट सरकार को सौंपने को कहा गया है। प्रदेश में इस वक्त लगभग 16 हजार निजी मदरसे संचालित हो रहे हैं, जिनमें विश्व प्रसिद्ध इस्लामी शिक्षण संस्थान नदवतुल उलमा और दारुल उलूम देवबंद भी शामिल हैं। राज्य सरकार के फैसले के बाद अब इनका भी सर्वे किया जाएगा।
योगी सरकार छोड़ेगी तो नहीं!
ज्ञात हो कि राज्य की योगी सरकार जबसे सत्ता में आई है तब से लव-जिहाद से जुड़े मामलों पर सख़्ती बढ़ी है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि उत्तर प्रदेश में ‘लव जिहाद कानून’ के तहत पहली सजा हो चुकी हैं। बता दें एक मुस्लिम युवक को राज्य के अमरोहा जिले की एक अदालत ने एक हिंदू लड़की से अपना धर्म छिपाकर झूठे बहाने से शादी करने की कोशिश करने के आरोप में पांच साल की कैद की सजा सुनाई थी। अदालत ने राज्य के संभल जिले के निवासी मोहम्मद अफजल के रूप में पहचाने जाने वाले आरोपी पर 40,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है। लव जिहाद पर ऐसा फ़ैसला आगामी भविष्य में नज़ीर पेश करने जा रहा है।
इसे योगी आदित्यनाथ की कट्टरपंथ के प्रति नो-टॉलरेंस नीति कहें या समाज में वैमनस्य वातावरण पैदा करने वालों के प्रति सख़्त रवैये का परिणाम, जो विरोधी भी अब विरोध करने से पूर्व एहतियात बरतने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं। साथ ही अब उन तत्वों को सजा मिलनी शुरू हो चुकी है, जो वास्तव में समाज के सौहार्दपूर्ण वातावरण को दूषित करने का काम कर रहे हैं।
पूर्व में राज्य के सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए, उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ सहारनपुर जिले के देवबंद शहर में बहुप्रतीक्षित आतंकवाद विरोधी दस्ते (ATS) कमांडो प्रशिक्षण केंद्र की आधारशिला रखने की मंज़ूरी देने के साथ ही शरारती और कट्टरपंथी तत्वों पर पूर्णरूपेण लॉक लगाने का काम शुरू कर चुके हैं। सितारों के आगे जहां और भी है। इसका अर्थ योगी सरकार की कार्यशैली के संदर्भ में कुछ ऐसा है कि कट्टरपंथियों, माफियाओं और गुंडा तत्व के घर और संपत्ति ही बुलडोज़र से ज़मींदोज़ करना योगी सरकार की एकमात्र तरकीब नहीं हैं बल्कि इसका खाका तो अनंत है।
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