देखो बंधुओं, इसमें कोई दो राय नहीं है कि दक्षिण भारत की राजनीति में कर्नाटक को भाजपा की सबसे बड़ी और सशक्त प्रयोगशाला माना जाता रहा है। पिछले दो दशकों में पार्टी ने यहां मजबूत पकड़ बनायी है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह रहा है कि पार्टी ने अपनी विचारधारा और सोच का कर्नाटक के जन-जन में विस्तार किया है। लेकिन भाजपा की दिक्कत यह है कि पार्टी जब-जब अपनी विचारधारा से हटकर कोई निर्णय लेती है है तो उसके अपने ही समर्थक उसके लिए मुसीबतें बढ़ा देते हैं। भाजपा की समस्या यह है कि पार्टी विचारधारा तो हिंदुत्ववादी ही चाहती है लेकिन उसे समर्थन उसे वामपंथियों का चाहिए।
इस लेख में कर्नाटक की बोम्मई सरकार के विचित्र विचार तो जानेंगे ही जहां इन्होंने नीति के ठीक उलट ट्रांसजेंडर्स के नाम पर कोटा यानी आरक्षण का निर्णय लिए है। जानेंगे कि कैसे इन्हें भी वोकवाद का चस्का लग रहा है।
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जनता के कोपभाजन का शिकार बन सकती है बोम्मई सरकार
असल में कर्नाटक की बसवराज बोम्मई सरकार ने कुछ ऐसा किया है जिसके बाद वे जनता के कोपभाजन का शिकार बन सकती है। कर्नाटक सरकार ने राज्य सशस्त्र बलों की भर्ती के पुरुष महकमे में ‘तृतीय लिंग’ समुदाय के लिए आरक्षण की घोषणा कर दी है। इस फैसले को लेकर राज्य के गृहमंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने मंगलवार को कहा कि कर्नाटक सशस्त्र बलों में कांस्टेबल के 3,484 पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है।
इस निर्णय की घोषणा करने के साथ ही राज्य के गृहमंत्री ने कहा कि राज्य में पहली बार ‘पुरुष तृतीय लिंग’ समुदाय के लिए 79 पद आरक्षित किए गए हैं। ट्रांसजेंडर सक्रियतावादियों ने आरक्षण मुहैया करने के इस कदम की सराहना की है। ट्रांसजेंडर के कल्याण के लिए काम करने वाले समुदाय के सदस्य एवं मानवाधिकार संगठन ‘ओनडेडे’ के संस्थापक अक्काई पद्मशाली ने कहा कि मैं फैसले का स्वागत करता हूं। अक्काई को कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
उन्होंने कहा कि यह घोषणा ‘तृतीय लिंग’ समुदाय को मुख्यधारा में शामिल करता है। अरे, कोई इन बंधुओं को बताए कि ‘पुरुष तृतीय लिंग’ कहा जाने वाला कोई समुदाय नहीं है। हो सकता है कि वे चंडीगढ़ करे आशिकी के भावनाओं में बह गए और उसी के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने ये बातें बोली हो कि वे ‘महिला से पुरुष में तब्दील हुए ट्रांसजेंडर पुरुष’ की बात कर रहे हैं।
परंतु बंधु, तुष्टीकरण और यथार्थ में आकाश पाताल का अंतर होता है और इसमें कोई संदेह नहीं कि यह निर्णय वामपंथी सोच से प्रेरित प्रतीत होता है। यह कुछ वैसा ही है जैसे बीजेपी राज्य में चुनावों से पहले राज्य के एलीट वामपंथी वर्ग को लुभाने की कोशिश कर रही हो जो कि बीजेपी समर्थकों के लिए एक आक्रोश का विषय हो सकता है।
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बोम्मई की तुलना योगी और हिमंता से होने लगी थी
गौरतलब है कि कर्नाटक में बीजेपी ने हिंदूत्व से जुड़े कई अहम फैसले किए हैं। हिजाब विवाद को लेकर कर्नाटक सरकार का रुख इतना स्पष्ट था कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को भी सरकार के हक में ही फैसला देना पड़ा। इसके चलते कर्नाटक में छात्राओं के लिए ड्रेस कोड निर्धारित हो गया। हिजाब पहनकर आने पर रोक लगी तो राष्ट्रीय राजनीति तक में भयंकर बवाल मचा लेकिन कर्नाटक सरकार टस से मस नहीं हुई।
इसके अलावा कर्नाटक में हुए दंगों के सांप्रदायिक मामलों में भी कर्नाटक सरकार ने दंगाईयों के खिलाफ कार्रवाई की जिससे बसवराज बोम्मई सरकार की छवि एक सशक्त सरकार की बनी। इन सबके बीच कर्नाटक सरकार चुनावों से पहले सही राजनीतिक ट्रैक पर चल रही थी लेकिन ऐसे फैसले ने राज्य सरकार की छवि पर एक धब्बा सा लगा दिया है। बसवराज बोम्मई जिनकी तुलना दक्षिण भारत के योगी और हिमंता के तौर पर की जाने लगी थी, उनके इस फैसले ने उन्हें किसी वामपंथी नेता का ठप्पा लगा दिया है।
ऐसे में आवश्यकता है कि बसवराज बोम्मई चुनावों से पहले ऐसे किसी भी फैसले से बचें जो कि हिंदुत्व की छवि को नुक़सान पहुंचाता हो। इसलिए सही यही होगा कि ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़े किसी भी फैसले को सोच समझकर लें नहीं तो संभव है कि इसके परिणाम कर्नाटक भाजपा के लिए दिक्कत वाले हो सकते हैं।
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