कभी दुनिया की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी रही BBC अपनी अंतिम सांसे ले रही है

आज BBC के 100 वर्ष पूरे हो गए, यहां उसके कुकृत्यों को भी जान लीजिए!

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बीबीसी के 100 साल: BBC यानी British Broadcasting Corporation का नाम सुनकर सबसे पहले आपके दिमाग में क्या आता है? निश्चित तौर पर आप इसे पत्रकारिता जगत का स्तंभ कहेंगे, सबसे बड़ी मीडिया कंपनी कहेंगे और इसे लेकर कई तरह की बाते करेंगे लेकिन आप कभी भी उसके स्याह पक्ष को जानने की कोशिश नहीं करेंगे. इसमें आपकी कोई गलती नहीं है क्योंकि इस मीडिया हाउस ने आपकी आंखों पर लंबे समय से पट्टी बांध रखी है. बीबीसी और एजेंडा एकदूसरे के पूरक हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है. कभी लोगों का पसंदीदा होने वाले BBC की हालत आज के समय में कैसी है यह भी किसी से छिपा नहीं है. हाल ही में भारत में इसके बोरिया बिस्तर समेटने की खबरें भी सामने आई थी. लेकिन क्या आप BBC की ऐसी हालत के पीछे का महत्वपूर्ण कारण जानते हैं? BBC के हाशिये पर जाने की क्या वजह है, आप जानते हैं? क्या आप जानते हैं कि आज ही के दिन 1922 (बीबीसी के 100 साल) में बनी यह कंपनी अपनी अंतिम सांसे क्यों ले रही है? हम यह आपको बताएंगे लेकिन चलिए उससे पूर्व इसके इतिहास से अवगत होते हैं!

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बीबीसी के 100 साल: बीबीसी की शुरूआत

दरअसल, ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) यूनाइटेड किंगडम का राष्ट्रीय प्रसारक है. वेस्टमिंस्टर, लंदन में ब्रॉडकास्टिंग हाउस में इसका मुख्यालय है; यह दुनिया का सबसे पुराना राष्ट्रीय प्रसारक है और कर्मचारियों की संख्या के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा प्रसारक है. ज्ञात हो कि इसमें कुल मिलाकर 22,000 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें से 19,000 से अधिक सार्वजनिक क्षेत्र के प्रसारण में हैं. जॉन रीथ ने 1922 (बीबीसी के 100 साल) में आज ही के दिन यानी 18 अक्टूबर को इंग्लैंड में इसकी शुरूआत की थी, जिनकी मृत्यु 1971 में हो गई.

ध्यान देने वाली बात है कि कुछ शौकिया स्टेशनों के बंद होने के बाद बीबीसी ने 14 नवंबर 1922 को अपना पहला डेली रेडियो सर्विस शुरू किया था. धीरे धीरे इसका विस्तार होना शुरू हुआ. 1932 में बीसीसी के जरिए ही किंग जॉर्ज पंचम ने ब्रिटेन और दुनिया के दूसरे हिस्सों के लिए पहला रॉयल क्रिसमस मैसेज दिया था. आज यह अपनी सेवाओं का दुनिया की 40 से अधिक भाषाओं में प्रसारण करता है. इनका प्रसारण ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के अलावा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, टीवी और रेडियो पर भी होता है. इसमें कोई संदेह नहीं कि इस क्षेत्र में इसकी इंट्री लाजवाब थी लेकिन धीरे-धीरे इसकी कुकृत्य लोगों के समक्ष सामने आने लगे और इसकी क्लास लगनी शुरू हो गई.

अगर हम बीबीसी हिंदी की बात करें तो इसकी शुरूआत 1940 में हुई थी. प्रारंभ में यह रेडियो के माध्यम से संचालित होती थी लेकिन वर्ष 2020 में इसे बंद कर दिया गया. वर्तमान में यह वेबसाइट, टीवी और डिजिटल प्लेटफॉर्म आदि पर संचालित हो रही है. हाल ही में यह खबर सामने आई थी कि बीबीसी अपनी सेवाओं को समाप्त करने जा रहा है जिसमें भारत में संचालित सेवायें प्रमुख हैं. ब्रिटेन सरकार के लगातार लाइसेंस शुल्क फ्रीज के कारण बीबीसी को अपनी विश्व सेवाओं में गहरी कटौती की घोषणा करने के लिए विवश होना पड़ा. बीबीसी ने चीनी, हिंदी और अरबी सहित कम से कम दस भाषाओं में रेडियो आउटपुट का उत्पादन न करने की घोषणा की. हालांकि, बीबीसी ने कवरअप करने की कोशिश की और कहा कि उसने अपना खर्च करने के अभियान के तहत यह निर्णय लिया, जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल उलट है.

बीबीसी के विवाद और पतन की कहानी

बीबीसी ने अपने शुरूआती दिनों में जो पकड़ बनाई, धीरे-धीरे वह सब इसके एजेंडे की बलि चढ़ गई. व्यूज और लाइक्स कमाने के लिए ‘फेक’ और ‘एजेंडाधारी कंटेंट’ परोसकर यह वर्षों तक लोगों को दिग्भ्रमिक करती रही! कई बार इस कंपनी को अपना एजेंडा चलाते हुए भी देखा गया और इस पर सवाल भी उठे. भारत में भी इस कंपनी ने जमकर अपना एजेंडा चलाया और कई बार तो मामला काफी आगे बढ़ गया. आइए हाल के वर्षों भारत में किए गए इसके कुछ कुकृत्यों से आपको अवगत कराते हैं-

निर्भया डॉक्यूमेंट्री विवाद- बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री को लेकर जमकर बवाल मचा था. ज्ञात हो कि भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद बीबीसी ने इसका प्रसारण कर दिया था, जिसके बाद उन्हें सरकार की ओर से नोटिस भी जारी किया गया था. सरकार की ओर से कड़ा रुख अपनाने के बावजूद बीबीसी ने निर्भया कांड पर बनी डॉक्यूमेंट्री को चार चैनलों पर दिखाया. बता दें कि 16 दिसंबर 2012 को घटी गैंगरेप की घटना पर बीबीसी ने डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसमें गैंगरेप मामले के दोषी मुकेश कुमार का इंटरव्यू शामिल था. जिसका भारत में प्रसारण प्रतिबंधित था लेकिन तय समय से दो दिन पहले ही बीबीसी ने इसका प्रसारण कर दिया. हालांकि भारत में इसका प्रसारण नहीं किया गया लेकिन यह युट्यूब पर आसानी से उपलब्ध था. बाद में गृहमंत्रालय के कहने पर डाक्युमेंट्री को युट्यूब से भी हटा लिया गया.

मादा पांडा कांडबीबीसी महिला विरोधी है, इसका प्रमाण वर्ष 2011 में देखने को मिला था. दरअसल, बीबीसी ने वर्ष 2011 की 12 सर्वश्रेष्ठ महिलाओं की सूची बनाई थी और उसे सार्वजनिक किया था, जिसमें इस मीडिया कंपनी ने चीनी मादा पांडा तियान तियान स्वीटी को महिलाओं की सूची में स्थान दिया था. जिसे लेकर पूरी दुनिया में बीबीसी की थू थू हुई थी.

प्रसार भारती को प्रचार भारती’- बीबीसी और प्रसार भारती के बीच कड़वाहट की शुरुआत दंगों के दौरान रिपोर्टिंग से ही शुरू हो चुकी थी. भारतीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इन दंगों में दिल्ली पुलिस की भूमिका पर कई सवाल उठाए थे और पक्षपात करते हुएएक दंगाई समूह का साथ देने का आरोप लगाया था. इससे जुड़े कई वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे. प्रसार भारती और बीबीसी के बीच यह विवाद चल ही रहा था, इस बीच इसमें प्रसार भारती के पूर्व सीईओ जवाहर सरकार कूद पड़े और उन्होंने प्रसार भारती को प्रचार भारती की संज्ञा दे डाली. उसके बाद तो बवाल मचना तय था.

दरअसल, 8 मार्च 2020 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर बीबीसी ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें प्रसार भारती के तत्कालीन सीईओ शशिशेखर वेम्पित को भी आमंत्रित किया गया था लेकिन उन्होंने बीबीसी पर एकपक्षीय, तथ्यहीन और भारत विरोधी रिपोर्टिंग का आरोप लगाते हुए आमंत्रण को ठुकरा दिया. उसके बाद जवाहर सरकार का बयान सामने आया था और फिर प्रसार भारती की ओर से शशिशेखर के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान चला था. साथ ही बीबीसी की भी जमक धुलाई हुई थी.

यह तो कुछ ही उदाहरण हैं. ऐसे अनेक उदाहरण अभी भी सार्वजनकि डोमेन में पड़े हैं जिनपर चर्चा की जाए तो उपन्यास लिखा जा सकता है! किसी ने सही ही कहा है कि सफलता जल्द ही सर चढ़ कर बोलने लगती है और बीबीसी के साथ भी यही हुआ, जो अब उसके विनाश का कारण बन रहा है. इसके अलावा वैक्सीन को लेकर भ्रामक खबरें फैलान, एजेंडा चलाना, अनुच्छेद 370 पर बकलोली करना और चागोस पर चुप हो जाना, कश्मीर को ‘इंडियन ऑक्यूपाइड कश्मीर’ कहना और उत्तरी आयरलैंड को ‘ब्रिटिश ऑक्यूपाइड आयरलैंड’ कहने पर सांप सूंघ जाना, भारत को मुस्लिम विरोधी देश कहना, जय श्री राम के नारे को हिंसक बताने समेत कई ऐसे मामले हैं, जो प्रदर्शित करते हैं कि बीबीसी पत्रकारिता करने के अलावा सबकुछ करता है! बीबीसी हिंदी की वेबसाइट पर चलने वाली तमाम खबरों का झुकाव भी एकपक्षीय ही प्रतीत होता है. इसके अलावा हर खबर में एजेंडा ही इसकी पहचान है! ऐसे में कहा जा सकता है कि बीबीसी की जैसी शुरूआत हुई थी और जैसे इस कंपनी ने पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना ली थी, अब धीरे धीरे इसके कृत्य ही इसके विनाश की पटकथा लिख रहे हैं. लेकिन कंपनी सीख लेने के बजाए आज भी अपने कुत्सित एजेंडे को सर्वोपरि रखते हुए उस पर काम कर रही है. ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब पूर्णरूप से BBC रसातल में पहुंच जाएगी.

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