आयुष्मान खुराना: एक ऐसे अभिनेता जो स्वयं को ही बर्बाद करने पर तुले हैं

कुछ अलग करने के चक्कर में कबाड़ा कर रहे हैं आयुष्मान!

ayushmann khurrana

जिस तरह से आटे में नमक होना खाने के स्वाद को बढ़ा देता है, उसी तरह नमक में आटा होना पूरे स्वाद को बिगाड़ कर रख देता है। यह बात अगर बॉलीवुड को जाकर कोई बता दें तो शायद उसका कुछ कल्याण हो जाएगा। आज बॉलीवुड का जो भी हश्र हो रहा है वो उसकी स्वयं की ही देन है। बॉलीवुड ने आज फिल्मों को एक तरह से धंधा बनाकर रख दिया है। लाभ कमाने के लालच में बॉलीवुड का स्तर इतना गिर गया है कि उसने उन विषयों का भी व्यावसायीकरण करना शुरू कर दिया है, जिनपर शायद उसका कभी ध्यान भी नहीं गया होगा।

बॉलीवुड कई सारे जरूरी मुद्दे या फिर विषय पर अच्छी फ़िल्में बनाने में नाकाम रह चुका है जिससे राष्ट्रवाद, सामाजिक बदलाव और सांस्कृतिक पुनरुत्थान शामिल है। मिशन मंगल, गुंजन सक्सेना और सम्राट पृथ्वीराज इसका एक जीता जगता सबूत है।  इन सभी फिल्मों के विषय भले ही महत्वपूर्ण थे, लेकिन बॉलीवुड में इनको ही बर्बाद करके रख दिया गया था।

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नयी फिल्म लेकर आए हैं आयुष्मान खुराना

विशेष और सेंसिटिव मुद्दों की बात हो और बॉलीवुड के आयुष्मान खुराना का नाम न आए ऐसा तो ही नहीं सकता है। आयुष्मान खुराना बॉलीवुड के उन गिने-चुने कलाकारों में से एक ही जिन्होंने अधिकतर ऐसी फिल्मों में अभिनय किया है जिनका विषय लीग से हटकर होता है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अभी हाल ही में आयुष्मान की एक नयी फिल्म “डॉक्टर जी” ने सिनेमाघरों में दस्तक दी है। लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद आपको ये बात समझ आ जाएगी कि आयुष्मान खुराना भी अब बॉलीवुड के उन कलाकारों की लिस्ट में शामिल होते जा रहे हैं, जो अपने करियर को स्वयं ही डूबाने का कार्य कर रहे हैं और करियर के ग्राफ को नीचे गिरा लिया है।

“डॉक्टर जी” फिल्म की बात करें तो इसमें आयुष्मान खुराना, रकुल प्रीत और शेफाली शाह अहम भूमिका में हैं। इस फिल्म में आयुष्मान खुराना ने एक स्त्री रोग विशेषज्ञ का किरदार निभाया है। फिल्म की शुरुआत बहुत ही ढीली होती है और उनकी सोशल कॉमेडी में कॉमेडी कुछ सही बैठती नज़र नहीं आ रही है। मेल-फीमेल वाली बातें और बच्चे के जन्म से जुड़ी बातें यह सबकुछ अब जनता के लिए शायद थोड़ी पुरानी होती जा रही हैं और दर्शक इन सबको देख देखकर बोर हो गये हैं। फिल्म देखते हुए शुरुआती एक घंटे तक आप कई बार यह सोचने को विवश हो जाएंगे कि आखिर इसका मतलब क्या है?

भले ही इससे पहले आयुष्मान खुराना ने कई जरूरी सामाजिक मुद्दों पर काम किया हो लेकिन इस फिल्म में वो ओवर द टॉप और ओवर स्मार्ट डायलॉग्स की वजह से थोड़ा पीछे रह गए हैं। “सोनू की टीटू की स्वीटी” फिल्म का एक मशहूर डायलॉग है ‘बात कहने का एक तरीका होता है’। शायद आयुष्मान खुराना इसी बात को ही भूल गए हैं। भले ही इस फिल्म को दर्शकों को एक खास संदेश देने की दृष्टि से बनाया गया होगा लेकिन फिल्म के अजीबो-गरीब वर्णन ने इसे बिगाड़ कर रख दिया।

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अहंकार में डूबे हैं आयुष्मान

हमारे बॉलीवुड जगत में कई ऐसे सितारे मौजूद हैं, जिन्होंने अपने कला की शक्ति और अभिनय कौशल से लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई है। आज भी वो अपनी जमीनी हकीकत से पूरी तरह से वाकिफ हैं। उनमें से अगर किसी से उनके अभिनेता या स्टार होने पर सवाल पूछा जाता है तो वो स्वयं को एक केवल एक कला प्रेमी की ही परिभाषा देते हैं। उदहारण के लिए- मनोज वाजपेयी, पंकज त्रिपाठी जैसे कलाकारों को देख लीजिए। परंतु वहीं दूसरी ओर आयुष्मान खुराना ने अपने कई साक्षात्कारों में खुद को एक बड़े “स्टार” करार दिया है।

उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा“बहुत से लोग एक स्टार की स्थिति को कम आंकते हैं। वे कहते हैं कि वे ‘अभिनेताओं’ को बहुत पसंद करते हैं। लेकिन एक स्टार एक जन्मजात एमबीए होता है, एक स्टार एक जन्मजात एक पीआर व्यक्ति होता है और उसमें बहुत सारे गुण मौजूद होते हैं जो कि सिर्फ एक अभिनेता के पास नहीं हो सकते हैं। एक अभिनेता होने की तुलना में एक स्टार बनना ज्यादा कठिन है।”

एक बॉलीवुड मीडिया पोर्टल को दिए अन्य इंटरव्यू में आयुष्मान ने अपनी ‘जोखिम लेने की क्षमता’ के बारे में स्वयं की बढ़-चढ़कर तारीफ की थी। उन्होंने खुद को पूरे हिंदी फिल्म उद्योग में सबसे बहादुर अभिनेता के रूप में  बताया, जिसने किसी भी चरित्र प्रकार को अछूता नहीं छोड़ा है। उन्होंने कहा- “मुझे लगता है कि मैं बहुत बहादुर हूं। मुझे किसका नाम लेना चाहिए? मुझसे ज्यादा बहादुर किसे कहा जा सकता है? मेरे पास ऐसा क्या बचा है जो कोई और कर सकता था या करने की सोच सकता था? इसलिए मैं सबसे बहादुर हूं।”

इन सभी बातों से एक चीज तो स्पष्ट रूप से समझ आती है कि आयुष्मान खुराना में भी अंहकार की कमी नहीं है, इसलिए तो वो स्वयं का ही गुणगान करने में लगे रहते हैं। लोगों को जागृति की ओर ले जाते-जाते वे खुद ही एक अहंकार की सीढ़ी पर चढ़ने वाले व्यक्ति बन गए हैं, क्योंकि आत्मविशवास और अहंकार के बीच एक बहुत ही महीन सी रेखा होती है, जिसे समझना आवश्यक होता है। इसी अहंकार के चलते उनकी पिछली कुछ फिल्मों में कहानी और लोगों को सही संदेश देने की जगह आयुष्मान अब किसी और ही दिशा में जाते नज़र आ रहे हैं। कहानी में सटीक संदेश देने की बजाय इनके विषयों का ही वे अपमान कर रहे हैं।

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आयुष्मान के करियर ग्राफ जा रहा नीचे 

देखा जाए तो आयुष्मान ने उनके दशक भर के अपने करियर में कई फिल्मों में काम किया हैं। इन सभी फिल्मों का बस एक ही मकसद था जनता को सही संदेश देना। लेकिन शायद अब वो अपनी सभी फिल्मों से ऐसा कर पाने में नाकाम हो रहे हैं। आइये देखते है उनकी कुछ फिल्मों का ग्राफ…

 Movie Name Budget World-wide Collection Theatrical Release
Badhai Ho Rs 29 cr Rs 221.4 cr Oct 2018
Andhadhund Rs 32 cr Rs 456.9 cr Oct 2018
Dream Girl Rs 28 cr Rs 200 cr Sept 2019
Bala Rs 25 cr Rs 171.5 cr Nov 2019
Article 15 Rs 30 cr Rs 93.08 cr Nov 2019
Shubh mangal zyada saavdhan Rs 25 cr Rs 86.39 cr Feb 2020
Chandigarh Kare Aashiqui Rs 30 cr Rs 41.23 cr Dec 2021
Anek Rs 45 cr Rs 10.89 cr May 2022

जैसा कि इस सूची में देखने मिल रहा है महामारी के बाद आयुष्मान की फिल्में हिट श्रेणी में रहने में पूरी तरह से विफल रही हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत “विक्की डोनर” में एक स्पर्म डोनर की भूमिका निभाकर की थी। यह फिल्म लोगों के दिलों को छू गई थी। फिर आयुष्मान ने एक के बाद एक अच्छी फिल्में की, जिसमें बधाई हो, अंधाधुंध जैसी अनेकों फिल्में शामिल रहीं। परंतु इसके बाद उन्होंने शुभ मंगल ज्यादा सावधान में एक समलैंगिक व्यक्ति की भूमिका निभाई, बाला में एक गंजा आदमी,  ड्रीम गर्ल में एक महिला आवाज वाली एक टेलीकॉलर की भूमिका निभाई। अब डॉक्टर जी को भी कुछ खास प्रतिक्रिया मिल नहीं रही। ऐसे में इस फिल्म का भगवान ही मालिक हैं। कुल मिलकर अगर देखा जाए तो वह भी बॉलीवुड के कुछ “सितारों” के कुछ  सितारों की तरह बस एक ही जोन को पकड़ें आगे बढ़ते जा रहे है। उन्होंने अपनी जोखिम लेने वाली छवि का लाभ उठाना और उसका व्यवसायीकरण करना शुरू कर दिया है।

उन्होंने अपनी एक्सपेरिमेंट करने की चाहत में फिल्मों के बेसिक इंग्रीडिएंट यानी स्टोरी को ही बाहर कर दिया है। आयुष्मान अपने करियर के ग्राफ को नीचे ले जाने के लिए स्वयं ही जिम्मेदार नजर आते हैं। ऐसे में यह बेहद ही आवश्यक हो जाता है कि आयुष्मान अपने पैटर्न में कुछ बदलाव करें। उनको यह बात समझ लेनी चाहिए कि दर्शकों उनके पैटर्न के माध्यम से कुछ ऐसा देखना चाहते हैं जिसमें विषय और अभिनय का अनोखा मिश्रण हो।

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