स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम पुष्पक विमान के बारें में जानेंगे एवं विमान के बारे में रोचक तथ्य के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें.
पुष्पक विमान का पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख
पुष्पक विमान- पुष्पक विमान का उल्लेख रामायण में मिलता है, जिसमें बैठकर लंका के राजा रावण ने सीता का हरण किया था. रामायण में वर्णित है कि युद्ध के बाद श्रीराम, सीता, लक्ष्मण तथा अपने अन्य सहयोगियों के साथ दक्षिण में स्थित लंका से अयोध्या पुष्पक द्वारा ही आये थे. पुष्पक पहले कुबेर के पास था, लेकिन रावण ने अपने भाई कुबेर से बलपूर्वक इसे हासिल कर लिया था. मान्यता है कि पुष्पक विमान का प्रारुप एवं निर्माण विधि ब्रह्मर्षि अंगिरा ने बनायी और निर्माण एवं साज-सज्जा भगवान विश्वकर्मा द्वारा की गयी थी. इसी से वह ‘देवशिल्पी’ कहलाये थे.
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण के अनुसार, जब हनुमानजी सीता की खोज करते हुए लंका पहुंचे तो उन्होंने देखा की रावण की लंका पूरी तरह सोने से बनी हुई है. सीता की खोज करते समय हनुमानजी ने पहली बार पुष्पक विमान देखा. पुष्पक की ऊंचाई ऐसी थी कि मानो वह आकाश को स्पर्श कर रहा हो. यह सोने से बना हुआ था और इसकी सुंदरता भी अद्भुत थी. इस विमान में कई दुर्लभ रत्न जड़े हुए थे और तरह-तरह के सुंदर पुष्प लगे हुए थे. इन फूलों के कारण पुष्पक ऐसा दिख रहा था, मानो किसी पर्वत पर अलग-अलग वृक्ष लगे हों और उनमें रंग-बिरंगे सुंदर पुष्प लगे हुए हों.
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण के सुंदरकांड के सप्तम सर्ग पुष्पक विमान विस्तृत विवरण बताया गया है. उस काल में अन्य सभी देवताओं के बड़े-बड़े और दिव्य विमानों में भी सबसे अधिक आदर और सम्मान पुष्पक को ही दिया जाता था. इस विमान में तरह-तरह के रत्नों से कई प्रकार के पक्षी और अलग-अलग प्रजातियों के सर्प बने हुए थे. पुष्पक में अच्छी प्रजाति के घोड़े भी बनाए गए थे. इस विमान का निर्माण विश्वकर्मा ने किया था. विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पकार हैं. पुष्पक को प्राचीन समय का सर्वश्रेष्ठ विमान माना जाता है. इसमें कई ऐसी विशेषताएं थीं जो अन्य किसी देवता के विमान नहीं थीं.
विमान की बनावट कैसी थी?
पुष्पक बहुत ही दिव्य और चमत्कारी था. ऐसा माना जाता है कि पुष्पक मन की गति से चलता था यानी रावण किसी स्थान के विषय में सिर्फ सोचता था और उतने ही समय में पुष्पक उस स्थान पर पहुंचा देता था. यह विमान रावण की इच्छा के अनुसार बहुत बड़ा भी हो सकता था और छोटा भी. इस कारण पुष्पक से रावण पूरी सेना के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक आना-जाना कर सकता था.
रावण का अंत कर लंका विजय करने के बाद भगवान श्रीराम पुष्पक से ही अयोध्या लौटे थे. प्रभु श्रीराम ने उपयोग के बाद पूजन कर यह दिव्य विमान वापस कुबेर को लौटा दिया था.
वहीं, अन्य पौराणिक धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि विमान का प्रारुप एवं निर्माण ऋषि अंगिरा द्वारा किया गया और इसका निर्माण एवं साज-सज्जा देव-शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा की गई थी.
ऋग्वेद में लगभग 200 से अधिक बार विमानों के बारे में उल्लेख मिलता है. इसमें कई प्रकार के विमान जैसे तीन मंजिला, त्रिभुज आकार के एवं तीन पहिए वाले हुआ करते थे.
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पुष्पक विमान के बारे में रोचक तथ्य
- यह विमान बहुत तेज गति से चलता था इसे मन की गति से चलाया जा सकता था. रावण इस पर बैठता व जहाँ उसकी इच्छा होती यह विमान उसी दिशा में चल पड़ता था. इसकी गति को मन से ही नियंत्रित भी किया जा सकता था.
- यह आज के विमानों से बहुत आधुनिक था जिसका प्रमाण इसके आकार को देखकर लगाया जा सकता हैं. इसमें ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया था जिससे इसके आकार को आवश्यकता के अनुसार छोटा या बड़ा किया जा सकता था. यह व्यक्तियों के बैठने की सुविधा के अनुसार अपने आप को बड़ा व छोटा कर लेता था.
- यह दिखने में एक पक्षी (मोर) के आकार का था जिसके दो पंख थे. रामायण में इसे एक सुंदर रथ की भांति दिखाया गया हैं जिसमे बीच में बैठने के लिए सिंहासन रखा होता हैं यह सिंहासन व बैठने का स्थल अपने आप बड़ा किया जा सकता था.
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