एप्पल सिंह से आंखों देखी और आगे- संजय मिश्रा का अद्भुत जीवन

ये हैं संजय मिश्रा के अजब गजब किस्से

sanjay mishra

“जब से तू आया है न, अपना आतंक ही खत्म हो गया है!”

“कोंकण की मिट्टी से निकला, उमरठ का मर्द मराठा, सूबेदार तानाजी मालुसरे!”

अब आप भी सोच रहे होंगे, ये कहां से कहां आ गए हम! पर ऐसी विविधताओं से भरा है संजय मिश्रा का संसार। कभी जिसने 1999 विश्व कप से पूर्व केबल टीवी पर एप्पल सिंह के रूप में लोगों को अपने अभिनय से चौंकाया था, वो शीघ्र ही अपने हास्य से लोगों के हृदय में स्थान बना लेगा, किसे पता था?

पर ऐसे ही हैं संजय मिश्रा। संजय मिश्रा का जन्मबिहार के दरभंगा में एक हिन्दू परिवार में 6 अक्टूबर  1963 को हुआ था। इनके पिता शम्भुनाथ मिश्रा  व्यवसाय से पत्रकार है। इन्होंने अपनी शिक्षा वाराणसी से केंद्रीय विद्यालय बीएचयू कैंपस से  पूर्ण की। तद्पश्चात इन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय यानि NSD में प्रवेश किया और सन 1989 में स्नातक हो गए।

और पढ़े: कॉमेडी के नाम पर हमारे सामने क्या-क्या नहीं परोसा जा रहा है?

मिरिंडा के एड से की करियर की शुरुआत

संजय मिश्रा ने अपना अभिनय मिरिंडा के एड से प्रारंभ किया, जिसमें वे सीधे अमिताभ बच्चन के साथ नजर आए। इसके पश्चात उन्होंने सीधा चंद्रप्रकाश द्विवेदी के विश्वप्रसिद्ध सीरीज़ ‘चाणक्य’ में कार्य किया और फिर छोटे मोटे रोल करते हुए 2000 के प्रसिद्ध सीरीज़ ‘ऑफिस ऑफिस’ नजर आए, जहां इन्होंने शुक्ला नामक भ्रष्ट अफसर का रोल करते हुए सबको अपने अभिनय से लोटपोट किया। यह उनके सुप्रसिद्ध एप्पल सिंह वाले एक्ट के ठीक एक वर्ष बाद आया, जिसके बाद उन्होंने मुड़कर नहीं देखा।

संजय मिश्रा ‘दिल से’, ‘बंटी और बबली’, ‘अपना सपना मनी मनी’, ‘आंखों देखी’, ‘फंस गए रे ओबामा’, ‘मिस टनकपुर हाजिर हो’, ‘आंखों देखी’, ‘प्रेम रतन धन पायो’, ‘मेरठिया गैंगस्टर्स’, ‘दम लगाके हाईशा ‘, ‘मसान’ और ‘कामयाब’ जैसी फिल्मों में कार्य कर चुके हैं। ‘आंखों देखी’ के लिए इन्हें फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर (क्रिटिक्स) का अवॉर्ड भी मिला। इन्होंने ही ‘तान्हाजी – द अनसंग वॉरियर’ के लिए बतौर सूत्रधार अपनी दमदार आवाज भी दी।

जब एक्टिंग छोड़ ढाबे में काम करने लगे थे

परंतु इस बीच उन्होंने बहुत कष्ट भी झेले थे। कहते हैं कि एक समय ये फिल्म उद्योग को त्यागने को उद्यत थे। परंतु ऐसा क्यों हुआ? इंडस्ट्री में अच्छा नाम कमाने के बाद एक दिन अचानक संजय मिश्रा ने अभिनय की दुनिया से मुंह मोड़ लिया और ढाबे पर काम करने लगे। वजह थी पिता का निधन पिता का निधन पिता का निधन। रिपोर्ट्स के मुताबिक संजय मिश्रा अपने पिता के बेहद करीब थे। उनके जाने के बाद वह इस कदर टूट गए कि एक्टिंग की दुनिया में लौटने का मन नहीं बना पाए और ऋषिकेश के एक ढाबे पर काम करने लगे। इसी दौरान रोहित शेट्टी फिल्म ‘ऑल द बेस्ट’ बना रहे थे। उन्होंने एक रोल के लिए संजय मिश्रा को याद किया। पहले तो संजय मिश्रा ने इनकार कर दिया, लेकिन बाद में रोहित शेट्टी ने उन्हें किसी तरह तैयार कर लिया।

और पढ़े: ऋषिकेश मुखर्जी: फिल्मकार जो सरल लेकिन ऐसी फिल्में बनाता था जिन्हें पीढ़ियां याद रखें

आज कॉमेडी को कॉमेडी कहें या कचरा, यह तय करना थोड़ा कठिन है। अधपकी खिचड़ी कहना तो खिचड़ी का अपमान है परंतु इस बात को अनदेखा नहीं कर सकते कि विश्व की सबसे कठिन कलाओं में से एक का कैसे चीर हरण किया जा रहा है। उसका कोई हिसाब नहीं है। वो कैसे? आज कॉमेडी के नाम पर या तो ऐसे चुटकुले सुनाये जाएंगे, जिनका वास्तविकता से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है या फिर उनमें कूट कूट कर नौटंकी और एजेंडा भरा होगा। इस समस्या पर चर्चित अभिनेता, कॉमेडियन एवं लेखक रिकी जर्वेस ने प्रकाश डाला, जब उन्होंने एक शो में ये बोला –

आज कॉमेडी के नाम पर केवल कचरा

इस क्लिप का अर्थ स्पष्ट था कि भाई इन लोगों के हिसाब से अल्पसंख्यकों का कोई सेंस ऑफ ह्यूमर नहीं हो सकता और जो लोग कथित रूप से शोषक हैं, वे भले स्वयं ही संख्या से अल्पसंख्यक क्यों न हो, उन्हें अपनी लड़ाई लड़ने का कोई अधिकार नहीं। यानी लोगों के लिए मनोरंजन बाद में आएगा, एजेंडा पहले आ जाएगा। यह अब केवल पाश्चात्य जगत तक सीमित नहीं है, इस विषबेल ने भारत में भी जड़ें जमा ली है। आज से कुछ वर्ष पहले तक क्या आपने कुशा कपिला, मुनव्वर फारूकी, कुणाल कामरा, समय रैना जैसे कॉमेडियन के बारे में सुना था? इनके उल्लेख मात्र पर आप आज भी खोपड़ी खुजाने लगेंगे – ये हैं कौन?

परंतु ये स्थिति आज से पूर्व तो थी नहीं? एक समय ऐसा भी होता था जब कलाकार वास्तव में लोगों को हंसाने के लिए प्रयास करते थे और उनके प्रयास में भरपूर परिश्रम होता था। अब सुरेंद्र शर्मा को ही देख लीजिए, जिनकी कॉमेडी में जान होती है। जिन्हें सुनना काफी लोग पसंद करते हैं और फूहड़ एवं अश्लील कंटेंट कभी भी इनकी डिक्शनरी में नहीं रहे हैं। लेकिन सुरेन्द्र शर्मा इस सूची में अकेले नहीं हैं। महमूद या परेश रावल जैसे हास्य कलाकार हो, चेतन सशीतल जैसे वॉइसओवर आर्टिस्ट हो या फिर राजू श्रीवास्तव, राजपाल यादव जैसे हास्य कलाकार, इनके चुटीले तंज ऐसे होते थे कि आज भी लोग न केवल इनके प्रशंसक हैं अपितु इनके अभिनय के लिए लालायित हैं। वैसे भी फिर हेरा फेरी के परम प्रिय कचरा सेठ को कैसे भूल सकते हैं?

और पढ़े: नेहा कक्कड़, संगीत के क्षेत्र की सबसे बड़ी आपदा है

ऐसे ही हैं अपने संजय मिश्रा, जो किसी भी रोल में ढल जाते थे, और जिन्हें लोगों को हंसाने के लिए सदैव अश्लील शब्दों की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। आज भी ये किसी रोल में आते हैं तो लोग अपने आप उस फिल्म को देखने के लिए उत्सुक होते हैं। इस वर्ष बॉलीवुड की एकमात्र हिट फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ईश्वर करें ये ऐसे ही सबका मनोरंजन करते रहे और सबको हंसाते रहे।

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version