आखिर हम ग्लोबल हंगर इंडेक्स को इतनी गंभीरता से ले ही क्यों रहे हैं?

ग्लोबल हंगर इंडेक्स का आंकलन इस कारण सही नहीं है!

global hunger index

वैश्विक भूख सूचकांक यानी ग्लोबल हंगर इंडेक्स की नवीनतम रिपोर्ट को लेकर देश में हंगामा मचा है। कारण है इस सूची में भारत को 107वां स्थान दिया गया हैं। इसके लिए दुनिया के 136 देशों से आंकड़े जुटाये गये और इसके बाद 121 देशों की रैंकिंग की गई। यानी इस रिपोर्ट के अनुसार भुखमरी के मामले में इन 121 देशों में भारत 107वें नंबर पर आता हैं। सूची में पिछली बार के मुकाबले छह पायदान और नीचे खिसक आया है। हैरान करने वाली बात तो यह है कि वो पाकिस्तान जो फटे हाल है, वो श्रीलंका जो दिवालिया हो चुका है और वो नेपाल जिसकी हर बार भारत ही मदद करता है, यह सभी देश इस सूची में हमसे आगे हैं। अफगानिस्तान से ही भारत की स्थिति थोड़ी बेहतर है। वे इस सूची में 109वें स्थान पर है।

अब अगर पाकिस्तान, नेपाल की स्थिति को भारत से बेहतर बताया जाएगा, तो उस पर बवाल तो होना है ही। बीते दिन से ही इस पर काफी चर्चाएं हो रही हैं। लेकिन यहां सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि आखिर ग्लोबल हंगर इंडेक्स को लेकर इतना हंगामा हो क्यों रहा हैं? जो भी इस प्रकार के इंडेक्स बनाता है, उनका तो केवल एक निश्चित उद्देश्य है – भारत को बदनाम करना और वे केवल अपना कार्य ही कर रहे हैं। प्रश्न यह उठता है कि हम इसे इतनी गंभीरता से क्यों लेते हैं?

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चार पैमानों पर दी जाती है रैंकिंग

परंतु यदि हम गौर करें तो आप इस ग्लोबल हंगर इंडेक्स को मापने का तरीका देखेंगे तो इसमें ही बड़ा झोल पाएंगे। रैंकिंग की बात की जाए तो यह चार पैमानों पर दी जाती है। कुल जनसंख्या में कुपोषितों की आबादी कितनी है, पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में समुचित शारीरिक विकास नहीं होने की समस्या कितनी है, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में लंबाई नहीं बढ़ने की समस्या कितनी है और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर कितनी है?

यही कारण है कि भारत सरकार की तरफ से इस रिपोर्ट को लेकर काफी आपत्ति जताते हुए इसे सिरे से ही खारिज कर दिया गया। सरकार ने इस बात पर गौर कराया कि सूची जिस आधार पर तैयार की जाती है उन चार में से तीन तो बच्चों से ही जुड़े होते है। फिर भला वो पूरे देश की आबादी की जानकारी कैसे दे सकते हैं?

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भारत सरकार ने गिनाई हर एक समस्या

भारत सरकार ने इस रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा इसे पूरी तरह से नकार दिया। साथ ही यह भी कहा कि यह भारत की छवि और सरकार को बदनाम करने के षड्यंत्र का हिस्सा हैं।केंद्रीय महिला एवं बाल वि कास मंत्रालय ने इसे गलतियों का पुलिंदा करार दिया है। मंत्रालय के अनुसार – “यह रिपोर्ट गलत और भ्रामक सूचनाओं पर आधारित है। सूचकांक के मापदंड और कार्यप्रणाली वैज्ञानिक नहीं हैं।” मंत्रालय ने कहा कि इसके चार संकेतकों में से तीन बच्चों से जुड़े हैं, जो कि संपूर्ण आबादी की जानकारी नहीं देते हैं। चौथा और सबसे अहम सूचकांक कुल जनसंख्या में कुपोषित आबादी का है। यह केवल 3 हजार लोगों के बहुत ही छोटे सैंपल पर किए गए जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है।”

आज की स्थिति में यदि देखा जाए तो भारत के हालात काफी बेहतर हैं। हम ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं। वैश्विक मंदी के बीच भी भारत ही वो इकलौता देश है जो अच्छी स्थिति में स्वयं को पा रहा है। दुनिया भारत की मौजूदा परिस्थिति की प्रशंसा कर रही हैं। इन सबके बावजूद आखिर हम ग्लोबल हंगर इंडेक्स में इतने पीछे क्यों हैं और वो भी पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों से?

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भूख को नापने का GHI का पैमाना सही नहीं

इस संबंध पिछले वर्ष इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी ICMR ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। ICMR ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स मापने के पैमाने की जांच की और उसमे पाया कि भूख को नापने का GHI का पैमाना सही नहीं है। उसके अनुसार हर देश का अपना रहन सहन का तरीका होता है। हर देश की परिस्थितियां और पर्यावरण भिन्न है, इसलिए इसे नापने के लिए

हर देश का अपना पैमाना होना चाहिए। साथ ही GHI जिन चार स्तरों पर इसे मापता है, उन पर भूख नहीं नापी जाती। वे सेहत की स्थिति पता लगा सकती है। इसलिए इसे हंगर इंडेक्स नहीं कहा जा सकता।

वर्ष 2009-10 तक भारत अपने यहां की स्थिति का पता लगाने के लिए भूख से संबंधित कई तरह के सर्वे करता आ रहा था। इस प्रकार के सर्वे NSSO द्वारा कराए जाते थे, जिसको राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मान्यता प्राप्त है। इन सर्वे में लोगों से प्रश्न पूछे जाते थे कि क्या रोजाना आपको दो वक्त का खाना मिल रहा हैं?

देखा जाए तो वर्ष 2000 से ग्लोबल हंगर इंडेक्स निरंतर जारी कर रहा है और इसका उद्देश्य साल 2030 तक दुनियाभर में जीरो हंगर के लक्ष्य को हासिल कर करना है। इन मानकों के आधार पर ही विभन्न देशों को रैंक किया जाता है। यदि किसी देश को नौ या नौ से कम स्कोर दिया गया है तो इसका अर्थ है कि वहां की स्थिति बेहतर है और भूख की समस्या कम है। इसी प्रकार 10 से 19.9 तक के स्कोर वाले देशों में भूख की समस्या नियंत्रित स्थिति में मानी जाती है। इसके बाद 20.0 से 34.9 के बीच वाले स्कोर वाले देशों में भूख की समस्या गंभीर और 35.0 से 49.9 के बीच स्कोर वाले देशों में भूख की समस्या खतरनाक हैं। वही 50 से अधिक जिस देश को स्कोर मिले वहां के हालात बेहद ही खतरनाक मानी जाती है। भारत को 29.1 स्कोर दिया गया हैं, यानी ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार हमारे यहां स्थिति गंभीर श्रेणी में है।

देखा जाए तो भारत की इस सूची में रैंक लगातार गिरती ही चली जा रही है। वर्ष 2020 में भारत को 94वां स्थान मिला था। इसके बाद 2021 में 101वां और अब इस सूची में हमें और 107वें स्थान पर जगह दी गई हैं।

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जमीनी हकीकत से काफी अलग यह रिपोर्ट

परंतु ग्लोबल हंगर इंडेक्स की यह रिपोर्ट जमीनी हकीकत से काफी अलग दिखती है। वो भारत जिसने कोरोना महामारी के दौरान भी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के माध्यम से यह सुनिश्चित किया कि देश में कोई भूखा न सोए। उस भारत को पाकिस्तान, श्रीलंका से निचले स्तर पर बताना हास्यापद ही लगता है। वो पाकिस्तान जो बाढ़ आने पर हमसे अनाज मांगता हैं। वो नेपाल जिसकी किसी भी प्राकृतिक आपदा के दौरान भारत ही सबसे पहले सहायता करता है, ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार हमारे हालत उनसे भी खराब हो गए। खैर देखा जाए तो हमें इस तरह की रिपोर्ट को गंभीरता से लेने की आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि यह हमारे यहां की स्थिति का आंकलन कभी सही तरीके से नहीं कर सकता।

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