जयशंकर ने पाकिस्तान को लेकर एक बार फिर अमेरिका की बैंड बजा दी

इस बार बहुत तगड़ा वाला दिया है!

अमेरिका पाकिस्तान

पश्चिमी देशों का जोर हमेशा से इस बात पर रहा है कि कैसे भी करके भारत को कमजोर किया जाए। इन लोगों ने हमेशा भारत की संस्कृति से लेकर यहां की एक-एक चीज को हीन भावना से देखा है। इन सबके बाद भी भारतीय संस्कृति अब काफी तेजी से आगे बढ़ रही है। ऐसे में इन सभी पश्चिमी देशों को हमेशा यह कुलबुलाहट रहती है कि आखिर ऐसा क्या करें जिससे भारत स्वयं में अपमानित महसूस करे और इसीलिए आजकल ये सभी भारत को रूस के मुद्दे पर विचित्र प्रकार के बयान देने के लिए उकसाते हैं लेकिन मजे की बात यह कि इन लोगों को उल्टा मुंह की ही खानी पड़ जाती है।

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भारत का विराट स्वरूप 

पश्चिमी देशों की जो दूसरे देशों को नीचा दिखाने की नीति है उसका अंजाम आज उन्हें ही भुगतना पड़ रहा है। उन्हें लगा था कि यदि वे भारत की मदद नहीं करेंगे तो भारत कभी आर्थिक और रक्षा के क्षेत्रों में विस्तार ही नहीं कर सकेगा। इसके विपरीत भारत ने प्रत्येक मोर्चे पर अपना विराट स्वरूप अपनाया है और स्थितियां ऐसी हैं कि भारत जहां आर्थिक क्षेत्र में दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी महाशक्ति है तो वहीं रक्षा क्षेत्र में भारत के हथियार विदेशों द्वारा खरीदे जा रहे हैं। पश्चिम देशों की दिक्कत यह है कि रूस से भारत इतने हथियार क्यों खरीदता है।

एक समय था जब रूस से जुड़े सवालों पर सीधे जवाब देने से भारत बचता हुआ नजर आता था लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों में भारत लगातार पश्चिमी देशों की धुनाई कर रहा है और इसका एक और उदाहरण भी अब सामने आ गया है। दरअसल, ऑस्ट्रेलिया में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बड़ा बयान देते हुए आरोप लगाया कि पश्चिमी देशों ने हमेशा भारत को कमतर आंका है। वे यहां अपनी समकक्ष से मुलाकात के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे और यहीं उन्होंने पश्चिमी देशों को लपेट दिया।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि भारत के पास सोवियत और रूसी हथियार इसलिए अधिक हैं, क्योंकि पश्चिमी देशों ने इस क्षेत्र में अपने पसंदीदा साथी के रूप में एक सैन्य तानाशाह को चुना और दशकों तक भारत को हथियारों की आपूर्ति नहीं की। आपको बता दें कि सैन्य तानाशाह से जयशंकर का इशारा प्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान था जो भारत के साथ उलझने के लिए हमेशा तत्पर रहता है और उसे पश्चिमी देशों से सबसे ज्यादा हथियार मिलते रहे हैं जिसमें मुख्य भूमिका अमेरिका की रही है।

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जयशंकर ने पश्चिमी देशों को लताड़ा

ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग के साथ एक संवाददाता सम्मेलन में जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत और रूस के बीच लंबे समय से संबंध हैं जिसने निश्चित तौर पर भारत के हितों को साधा है। पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए जयशंकर ने कहा कि हमारे पास सोवियत और रूस निर्मित हथियार काफी अधिक हैं, इसके कई कारण हैं। आपको भी हथियार प्रणालियों के नफा-नुकसान पता हैं और इसलिए भी क्योंकि कई दशकों तक पश्चिमी देशों ने भारत को हथियारों की आपूर्ति नहीं की, बल्कि हमारे सामने एक सैन्य तानाशाह को अपना पसंदीदा साझेदार बनाया।

इसमें कोई शक नहीं है कि रूस भारत को सैन्य साजो-सामान का प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है। दोनों देश इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि मॉस्को पर पश्चिमी प्रतिबंधों के मद्देनजर उनके बीच किस तरह का भुगतान तंत्र काम कर सकता है। भारत में रूसी राजदूत डेनिस अलीपोव ने पिछले महीने कहा था कि रूस ने वाशिंगटन के दबाव और अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम के प्रतिबंधों के बावजूद अपनी सबसे उन्नत, लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली एस-400 की भारत को समय पर आपूर्ति की है।

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रूस के साथ साझेदारी पर बोले जयशंकर

एस जयशंकर ने रूस के साथ साझेदारी को लेकर कहा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे पास जो होता है, हम उसी की डील करते हैं। हम जो फैसले लेते हैं, वह हमारे भविष्य के हित के साथ-साथ वर्तमान के हालात को भी परिलक्षित करते हैं। मुझे लगता है कि हर सैन्य टकराव की तरह मौजूदा सैन्य टकराव (यूक्रेन-रूस) की भी अपनी सीख है। मुझे भरोसा है कि हमारे पेशेवर सैन्य साथी, इसका ध्यान से अध्ययन कर रहे होंगे। ऐसा नहीं है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पहली बार रूस के मुद्दे पर खुलकर बयान दिया है।

इससे पहले जब यूरोप में एक इंटरव्यू के दौरान पत्रकार ने पूछा था कि भारत रूस यूक्रेन युद्ध में कच्चा तेल खरीद कर पर्दे के पीछे से रूस को आर्थिक मदद दे रहे हैं। इस मुद्दे पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुखरता से कहा था कि वे केवल भारत के लोगों का हित देख रहे हैं और यदि भारत को रूस से सस्ता तेल मिल रहा है तो वो अवश्य रूसी कच्चा तेल खरीदेंगे। इसके अलावा एस जयशंकर ने उलटा सवाल दागते हुए यह पूछ लिया था कि यदि यूरोपीय देश रूसी गैस ख़रीद रहे हैं तो क्या वे यूक्रेन के खिलाफ रूसी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की नीयत से कर रहे हैं।

इससे पहले भी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका में अपने एक बयान में अमेरिका को ही लताड़ लगा दी थी। एस जयशंकर ने अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों की ‘मजबूती’ पर सवाल उठाए थे और कहा था कि इस्लामाबाद के साथ वॉशिंगटन के संबंध ‘अमेरिकी हितों’ की पूर्ति नहीं करते हैं। जयशंकर ने कहा था कि यह एक ऐसा रिश्ता है जिससे न पाकिस्तान को लाभ हुआ और न ही अमेरिका को कुछ फायदा पहुंचा। अहम बात यह है कि कुछ हफ्तों पहले ही अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले को पलटते हुए पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान के बेड़े के रखरखाव के लिए 45 करोड़ डॉलर की वित्तीय सहायता को मंजूरी दी है। अमेरिका के फैसले पर भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अपने अमेरिकी समकक्ष लॉयड ऑस्टिन के समक्ष चिंता जाहिर की थी।

जब अमेरिका ने पाकिस्तान की सहायता की 

ये वह दौर है जब विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रत्येक मौकों पर अमेरिका और पश्चिमी देशों को धोबी-पछाड़ लगा रहे हैं। 1971 के युद्ध में जब भारत को अमेरिका की मदद चाहिए थी तो अमेरिका ने पाकिस्तान को मदद देना शुरू कर अपने जंगी जहाज उतारने का ऐलान किया था। वहीं इस मामले में रूस तुरंत कूदा और यह ऐलान कर दिया कि वो भी भारत की मदद के लिए अपने युद्धपोत भारतीय समुद्री क्षेत्र में भेजेगा। स्पष्ट है कि अमेरिका भारत के खिलाफ खड़ा था और रूस भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर। जाहिर है कि अमेरिका के साथ उस समय पश्चिमी देशों ने भी भारत का विरोध ही किया था।

ऐसे वक्त में भारत के लिए हथियारों की पूर्ति केवल रूस द्वारा ही होती थी। इसके चलते मिग जहाज से लेकर टैंक और युद्धपोत सभी की तकनीक में रूसी छाप है‌।‌ दूसरी ओर यदि पाकिस्तान को देखें तो उसे हमेशा भारत के विरोध में अमेरिका का साथ ही मिला है। एक अनुमान के मुताबिक साल 1948 से 2013 के बीच में अमेरिका ने पाकिस्‍तान को 30 अरब डॉलर की सहायता दी थी। इनमें से आधी सहायता पाकिस्‍तानी सेना के लिए थी। अमेरिका सोवियत संघ के खिलाफ पाकिस्‍तान को अपना घनिष्‍ठ सहयोगी मानता था। वहीं पाकिस्‍तान अमेरिका को भारत के खिलाफ काउंटर बैलेंस के रूप में देखता था। अमेरिका ने पाकिस्‍तान को पैटर्न टैंक दिए जिसका इस्‍तेमाल उसने भारत के खिलाफ 1965 के युद्ध में किया था। भारत के वीर जवानों ने इन अमेरिकी टैंकों को तबाह करके पाकिस्‍तान और अमेरिका दोनों को तगड़ी चोट दी थी।

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आज भी अमेरिका पाकिस्तान का सहायक है 

अमेरिका ने जो पहले किया वो आज भी सतत जारी है। नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में करोड़ों डॉलर के एफ-16 पैकेज का ऐलान बाइडन प्रशासन की ओर से किया गया है। पाकिस्‍तान ने अरबों डॉलर तालिबान के खिलाफ अमेरिकी जंग के दौरान कमा लिए। यही नहीं अमेरिका और पाकिस्‍तान ने साल 1979 से लेकर 1989 तक अफगान मुजाहिद्दीनों को फंडिंग देने के लिए आपस में सहयोग किया। इन मुजाहिद्दीनों ने सोवियत संघ की सेना के खिलाफ जंग छेड़ दी। अमेरिका ने स्ट्रिंगर मिसाइलों से लेकर कई घातक हथियारों की आपूर्ति की। यही नहीं साल 2002 में तो अमेरिका ने पाकिस्‍तान को गैर नाटो सहयोगी देश का दर्जा दे दिया। पाकिस्‍तान सोवियत संघ के खिलाफ बनाए गए गठबंधन सीटो और सेंटो का सदस्‍य रह चुका है।

अमेरिका ने साल 2006 में पाकिस्‍तान से 3.5 अरब डॉलर के हथियार की डील‌ साइन की थी। पाकिस्‍तान को अमेरिका से 36 एफ-16 फाइटर जेट मिले थे। अमेरिका ने पाकिस्‍तान को हारपून समेत कई तरह की मिसाइलें, बम और तोपें भी दीं। यही नहीं जब रोनाल्‍ड रीगन अमेरिका के राष्‍ट्रपति थे तब भी उन्‍होंने पाकिस्‍तान को 40 एफ-16 फाइटर जेट दिए थे। इन्‍हीं एफ-16 विमानों का इस्‍तेमाल पाकिस्‍तान ने भारत के मिग-21 पर हमला करने के लिए किया था। यह दिखाता है कि भारत को कमजोर करने की नीति के तहत अमेरिका और पश्चिमी देशों ने हमेशा पाकिस्तान की मदद की।

इसके बावजूद पाकिस्तान हमेशा भारत से मुंह की खाया है और इन जंग में भारत के साथ रूस आंख बंद करके खड़ा रहा है। यही कारण है कि आज जब यूक्रेन अमेरिका के बहकावे में आकर रूस से युद्ध को बढ़ावा देता जा रहा है और न झुकने की ढीटता कर रहा है तो भारत भी रूस को युद्ध रोकने की सलाह खुलकर नहीं दे रहा है क्योंकि मूल रूप से तो रूस यूक्रेन के बीच हो रहा यह युद्ध नाटो बनाम रूस ही है जिसमें रूस ने अकेले ही अमेरिका समेत नाटो देशों की धज्जियां उड़ा रखी हैं।

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