कुंती :जीवन चरित्र एवं वैवाहिक जीवन
स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे की सत्यशोधक समाज के बारे में साथ ही इससे जुड़े कुछ तथ्यों के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें.
महाभारत में कुंती पांडवो की माता का नाम था। यदुवंश के राजा शूरसेन के यहाँ एक पुत्र जिसका नाम वसुदेव और एक पुत्री जिसका नाम कुंती, का जन्म हुआ था।कुंती का बचपन का नाम पृथा था जिसे बचपन में ही राजा शूरसेन ने अपनी बुआ के संतानहीन लड़के कुंतीभोज को गोद दे दिया। जहाँ कुंतीभोज ने इस कन्या का नाम कुंती रखा था।
कुंती का वैवाहिक जीवन –
विवाह योग्य होने पर कुंती का स्वयंवर रचा गया। जिसमे कई राजा और राजकुमारों ने भाग लिया जिसमें हस्तिनापुर के राजा पाण्डु को कुंती ने जयमाला पहनाकर पति रूप से स्वीकार कर लिया। कुंती का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहा। पांडु को दो पत्नियां कुंती और माद्री थीं।
कहा जाता आखेट के दौरान राजा पाण्डु ने हिरण समझकर मैथुनरत ने एक किदंम ऋषि को मार दिया था और मरते वक्त ऋषि ने शाप दिया था कि तुम भी मेरी तरह मरोगे, जब तुम मैथुनरत रहोगे। इस शाप के चलते पांडु अपनी पत्नियों के साथ जंगल चले जाते हैं।
कुंती का जीवन चरित्र:
- कुंती यदु वंश के राजा शूरसेन की पुत्री थी। बचपन में उनका नाम पृथा था। राजा शूरसेन के चचेरे भाई कुंतीभोज निःसंतान थे। उसने कुंती को उठाकर उसका पालन-पोषण किया। एक बार कुंती ने ऋषि दुर्वासा की सेवा की जो उनके स्थान पर इस तरह से आए थे कि वे प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा।
- दुर्वासा ने कुंती को वरदान देते हुए कहा मैं आपको एक ऐसा दिव्य मंत्र दे रहा हूं, जिसके उपयोग से आप किसी भी देवता को आमंत्रित कर सकते हैं। आवश्यकता पड़ने पर ही इसका प्रयोग करें। अपने कौमार्य में, कुंती ने जिज्ञासा से प्रकृति के तेजस्वी देवता सूर्य का ध्यान किया।
- उसने सूर्य जैसे उज्ज्वल बच्चे को जन्म दिया। सार्वजनिक अपवाद के डर से एकांत-अभ्यास के बहाने उन्हें 1 साल के लिए महल में कैद कर लिया गया था। भरोसेमंद नौकरानियों की मदद से, उसने अपने बेटे को जन्म दिया, जो बाद में कर्ण के नाम से जाना जाने लगा, और उसे नदी में फेंक दिया।
- उनका विवाह हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर्य के छोटे पुत्र पांडु से हुआ था। पांडु के बड़े भाई धृतराष्ट्र अंधे थे। पांडु ने अपने पराक्रम से कई राज्य जीते थे। वह हमेशा हिमालय में अपनी दो पत्नियों, कुंती और माद्री के साथ रहता था। पांडु अचानक तपेदिक के शिकार हो गए और बच्चे पैदा करने के लिए अयोग्य हो गए।
- दुर्वासा के वरदान से कुंती ने तीन पुत्रों को जन्म दिया, जो युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम थे। जब पांडु की दूसरी पत्नी माद्री ने कुंती के दूल्हे की मदद से अश्विनी कुमारों का ध्यान किया, तो उनसे नकुल और सहदेव पैदा हुए। पांडु की मृत्यु के बाद, कुंती और माद्री दोनों सती करना चाहते थे, लेकिन माद्री ने अपने दोनों पुत्रों का भार कुंती को सौंप दिया और वह पांडु के साथ सती हो गई।
- कुंती अत्यंत परोपकारी थीं। एक बार एक ब्राह्मण ने कुंती को नरभक्षी वक्राक्ष के अत्याचार के बारे में बताया और उससे मोक्ष का मार्ग पूछा। कुंती ने उस राक्षस को मारने के लिए भीम को भेजा और पराक्रमी भीम ने उस राक्षस को मार डाला। महाभारत युद्ध के दौरान, कुंती अपने पुत्रों की मृत्यु के बारे में सोचकर काँप जाती थी।
- उसने कृष्ण की सहायता से दुर्योधन को एक संधि प्रस्ताव भेजा था, ताकि युद्ध न हो, लेकिन दुर्योधन ने उसे अस्वीकार कर दिया। कुंती को राज्य की हानि, जुए में हानि, अपने पुत्र कर्ण का अपमान और अपनी बहू द्रौपदी का अपमान सहना पड़ा था। कुंती ने पांडवों से द्रौपदी के अपमान का बदला लेने के लिए भी कहा।
कुंती के बारें में तथ्य –
बचपन में अपने पिता यदुवंशी राजा शूरसेन द्वारा कुंतीभोज को गोद दे दिये जाने के कारण। कुंती अपने असली माता पिता से दूर रही। जिस कारण कुंती को अपने असली माता पिता का प्यार नही मिला।अपने महल में आए महात्माओं की सेवा करना कुंती अपना फर्ज मानती थी। जिस कारण महात्मागण उससे प्रसन्न रहते थे। इसी तरह एक बार ऋषि दुर्वासा ने कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर उसे एक ऐसा मंत्र दिया जिससे कुंती जिस देवता का स्मरण कती वह तत्काल देवता ही उसके समक्ष प्रकट होकर उसकी मनोकामना पूर्ण कर देता था। इस तरह कुंती को एक अद्भुत मंत्र मिल गया।
कुंती का संघर्ष –
राजा पांडु की मृत्यु के बाद कुंती के सामने अपने पुत्रो के लालन पोषण करना था। कुंती के संघर्ष की शुरआत यहीं से हुई थी। अपने पांडव पुत्रों के भविष्य के लिए उसने हस्तिनापुर राज्य की और प्रस्थान किया और अपने पति पांडु के सभी हितेशियों से मिलकर एवं सभी के सहयोग से कुंती ने राजमहल में अपनी जगह बनाने में सफलता हासिल की।
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