मणि रत्नम उस दौर का अर्बन नक्सल है, जब अर्बन नक्सल होना ‘कूल’ नहीं होता था

मणि रत्नम की वास्तविक कहानी जान लीजिए!

mani ratnam

आजकल कॉमरेड मणि रत्नम के मजे ही मजे हैं। एक ओर तमिल फिल्म उद्योग में इन्होंने गर्दा उड़ा रखा है, दूसरी ओर इनकी फिल्म ‘पोन्नियन सेल्वन-1’ को क्रिटिक्स का प्रेम मिल रहा है सो अलग। सुनने में आ रहा कि ठीक-ठाक कमाई भी हो रही। अब कॉमरेड के लिए तो लाभ अनुचित है, परंतु वो कहते हैं न कि बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया।

कॉमरेड मणि रत्नम उच्च कोटी के अर्बन नक्सली हैं, वो भी तब से जब यह टर्म इतना प्रचलन में भी नहीं था।

और पढ़ें- आखिर कट्टरपंथी इस्लामिस्ट मणि रत्नम से इतना चिढ़ते क्यों हैं?

कुत्सित विचारधारा को थोपने का प्रयास

‘पोन्नियन सेल्वन-1’ को लेकर काफी मिश्रित प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। जितनी लोग इसकी भर-भर के प्रशंसा कर रहे हैं उतनी ही लोग इसकी आलोचना भी कर रहे हैं। परंतु कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि इसमें भी मणि रत्नम ने तमिलनाडु के वर्तमान राजनीति की कुत्सित विचारधारा को थोपने का प्रयास किया है। उदाहरण के लिए चोल साम्राज्य के समय शैव और वैष्णव समुदाय के बीच चल रही तनातनी को इन्होंने अलग तरह से और काफी नकारात्मक रूप से चित्रित करने का प्रयास किया है।

परंतु ई तो कॉमरेड मणि रत्नम है बंधु। जब हम और आप जानते भी नहीं थे कि प्रोपगेंडा का होता है तब इन्होंने उसमें पीएचडी कर ली थी, गोल्ड मेडल सहित। इन्होंने 80 के दशक में ही गॉडफादर से प्रेरणा लेते हुए नायकन बना ली, जो मुंबई के शक्तिशाली बाहुबली, वरदराजन मुदलियार पर कथित तौर पर आधारित थी।

परंतु प्रश्न तो अब भी उठता है कि मणि रत्नम और अर्बन नक्सली? युवा देखी है? उसमें बेईमान और धूर्त कौन? लालन सिंह! कहाँ से? बिहार! ईमानदार और मेहनती कौन? माइकल मुखर्जी, जो एक वामपंथी छात्र नेता है, जिससे प्रभावित होकर एक बिगड़ैल आईएएस अफसर का बेटा भी छात्र राजनीति में उतर आता है। मतलब धूर्त है तो बिहारी, ईमानदार है तो ईसाई/कम्युनिस्ट/नास्तिक/ स्टूडेंट।

और पढ़ें- “हिंदी फिल्मों में हिंदी ही नहीं है”, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, अजय देवगन के बाद अब मनोज वाजपेयी ने उठाए सवाल

रावण फिल्म स्मरण है?

ये तो कुछ भी नहीं है बंधु। रावण फिल्म स्मरण है? 2010 में आई थी, जिसके बारे में काफी लंबी चौड़ी चर्चा की जाती थी? तब मणि रत्नम इसके निर्देशक थे, और ये रामायण का आधुनिक वर्जन था। इसमें इनके अनुसार राम और सीता आज के युग में वन गमन करते थे, और सिया का हरण हो जाता है। परंतु, सिया रावण के परिवेश और उसके दुख दर्द से प्रभावित होती है और जब वह लौट आती है तो वह रावण की ओर आकर्षित होने लगती है। येे तो कुछ भी नहीं है, यहां रावण पिछड़े वर्ग के हैं, और लक्ष्मण को मूर्छित नहीं किया जाता, अपितु उनका सर मुंडवाया जाता है। इतना ही नहीं, जब देव यानी आधुनिक राम अपनी सिया पर संदेह करते हैं तो वह विद्रोह करने पर आ जाती है।

तालियां बजती रहनी चाहिए इन बंधुवर के लिए, जो आदिपुरुष के कथित इफ़ेक्ट्स पर इतना हाय तौबा मचा रहे हैं, यहां तो शुतुरमुर्ग की भांति खोपड़िया भूमि में धंसाए थे। यहां नहीं संस्कृति का अपमान हो रहा था या यहां सोने की घड़ी मिल गई थी?

परंतु अगर दूसरे पक्ष का चित्रण ऐसे ही करें, तो? 1992 में रोजा में आतंकवाद को मानवीय स्वरूप देने के पश्चात बंधु लेके आए ‘बॉम्बे’। अब बहती गंगा में हाथ धोना किसे नहीं पसंद, सो यह भी घुस गए। राम जन्मभूमि आंदोलन के विरुद्ध गंगा जामुनी तहज़ीब का झण्डा बुलंद कर यह पहुंच गए अपनी सेकुलर कथा लेकर, इतनी सेकुलर कि जो वास्तव में मुस्लिम था उसे बना दिया हिन्दू और जो हिन्दू था उसे बना दिया मुसलमान। गजब का सेक्युलरिज्म है।

और पढ़ें- वरदराजन, मस्तान, दाऊद एवं अन्य – कैसे संगठित माफिया ने मुंबई, क्रिकेट, राजनीति और बॉलीवुड को लंबे समय तक नियंत्रित किया

बमों का उपहार दिया

परंतु ये मणि अन्ना थे, अनिल शर्मा तो थे नहीं कि सन्नी पाजी को लाएंगे, हैंड पंप उखाड़ेंगे और बॉक्स ऑफिस से लेकर घर नोट से भर रहे होंगे। जिस समुदाय को प्रसन्न करने का यह विशेष प्रयास कर रहे थे, उसी ने उन्हें बमों का उपहार दिया। जी हां, फिल्म के प्रदर्शित होते ही कट्टरपंथी मुसलमानों ने मणि रत्नम के घर पर बम बरसाए।

हाऊ सेड इज दिस एण्ड हाऊ बैड इज दैट, कन्टिन्यू

दिल से तो देखी ही होगी? उसके कर्णप्रिय गीतों से अलग, एक महीन एजेंडा भी था। नायिका आतंकी क्यों बनी, कभी ध्यान दिया इस पर? फिल्म के अनुसार हमारे सुरक्षाबल के जवान अत्याचारी थे और उन्होंने उसे आतंकी बनने पर विवश किया। दुर्भाग्य था कि उस समय फिल्म में शाहरुख खान थे, के के मेनन नहीं।

परंतु कॉमरेड मणि रत्नम ने भी तय कर लिया, अपने को तो पैसा कमाना है, चाहे जैसे भी। जब चियान विक्रम ‘पोन्नियन सेल्वन’ के प्रोमोशन के समय बृहदेश्वर मंदिर की गौरव गाथा सुनाने लगे, तो हमें भी लगा, भला हिन्दी और हिन्दू विरोधी तमिल फिल्म उद्योग में आज सूर्य किस दिशा में उगा है?

और पढ़ें- इन 5 साम्राज्यों की शौर्य गाथा सिल्वर स्क्रीन पर लाना आवश्यक है और बॉलीवुड के हाथों तो बिल्कुल नहीं

चियान विक्रम ने मंदिर के बारे में बात की थी

हाल ही में ‘पोन्नियिन सेल्वन’  के एक प्रोमोशनल कार्यक्रम में जनता को संबोधित करते समय चियान विक्रम तंजावुर के विश्व प्रसिद्ध भगवान शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर के बारे में बात की, और बताया कि कैसे यह एक सुनहरा अवसर है हमारे विस्तृत इतिहास को चित्रित करने का। इस साक्षात्कार के अनुसार, किसी ने बड़ा सही बोला कि हां उधर तो इमारत हैं, उधर तो ऐसे भवन जो सीधे खड़े भी नहीं हैं, पर हमारे भवन तो विद्यमान हैं और वे 6 भूकंप झेल चुके हैं। जानते हैं क्यों? क्योंकि जिस पद्वति से उन्हें बनाया गया है, उसमें तब न कोई प्लास्टर था, न सहायता के लिए कोई क्रेन अथवा बुलडोज़र। असल में उनकी एक बाहरी दीवार थी, फिर एक कॉरिडोर था और फिर एक ढांचा था, जो काफी ऊंचा था, जिसके कारण वह इतनी आपदाएं झेलने में सक्षम था। इस सम्राट ने 5000 बांध अपने समय में बनाए एवं अपने समय में जल प्रबंधन मंत्रालय भी बनाया।”

परंतु वे इतने पर नहीं रुके। उन्होंने आगे ये भी कहा, ये सब 9वीं शताब्दी में हो रहा था जब उस समय हमारे नौसेना का प्रभुत्व समूचे जगत में व्याप्त था और अमेरिका का अस्तित्व भी नहीं था। इंग्लैंड को बड़ा मानते हैं, पर उसपर तो वाईकिंग्स ने चढ़ाई कर रखी थी, और यूरोप तो इस समय डार्क एज में था, तो आपको नहीं लगता हमें अपने इतिहास का उत्सव मनाना चाहिए?”

और पढ़ें- बुल, बिस्वास, दसवीं – अभिषेक बच्चन, जिन्हें बॉलीवुड में अब तक उचित सम्मान नहीं मिला

अपने एजेंडे के लिए कुछ भी कर सकते हैं

परंतु मणि रत्नम की बात ही कुछ और है, हमें भूलना नहीं चाहिए कि ये वही मणि रत्नम हैं जो अपने एजेंडे के लिए कुछ भी कर सकते हैं, इरुवर स्मरण है? 1997 में प्रदर्शित यह तमिल फिल्म आज भी भारत के अविस्मरणीय फिल्मों में से एक गिनी जाती है, जिसमें मोहनलाल, तब्बू, प्रकाश राज एवं ऐश्वर्या राय ने बेहतरीन कार्य किए थे। परंतु क्या आपको पता है कि ये किस पर आधारित थी? ये द्राविड़ राजनीति के दो सशक्त आधार स्तंभों पर बनी थी, मरुधुर गोपालन रामचंद्रन एवं मुथुवेल करुणानिधि। अब सोच लीजिए, कॉमरेड रत्नम का दृष्टिकोण कहां तक जा सकता है।

परंतु बंधुवर का एक पक्ष और भी है, जो हर कॉमरेड में नहीं होता – प्रॉफ़िट, और यह वस्तु दिखी ‘गुरु’ में। यह कहने को एक शक्तिशाली उद्योगपति पर आधारित थी, जिसके तौर तरीके निस्संदेह अच्छे नहीं थे, परंतु वह प्रभावशाली अवश्य था। लेकिन फिल्म उससे प्रभावित होने वाले मीडिया एवं उसके विरुद्ध कार्य करने वाले लोगों पर आधारित थी। यहां वे उद्योगपति और उद्यमिता को निस्संदेह नकारात्मक बनाना चाहते थे, परंतु हुआ ठीक उल्टा।

और पढ़ें- नेपोटिज़्म का एक दूसरा पहलू भी है, और ये अभिषेक बच्चन से बेहतर शायद कोई नहीं जानता

सच कहें तो कॉमरेड मणि रत्नम के इस विचित्र स्वभाव को न आप अपशब्द सुना सकते हैं, न आप प्रशंसा के पुलिंदे बांध सकते हैं, परंतु एक बात तो माननी ही होगी, जो भी हो ये बंधु अपने विचारों का पक्का है, झुकेगा नहीं।

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.

Exit mobile version