“आ रहा हूँ, अधर्म का विध्वंस करने!”
वाह, इस संवाद पर तो तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठेगी और इसी शंखनाद के साथ ‘आदिपुरुष’ का महापर्व प्रारंभ हुआ है। परंतु, इस फिल्म की एक झलक से प्रतीत होता है कि यहाँ सब कुछ ठीक नहीं है। ओम राउत द्वारा निर्देशित यह फिल्म रामायण पर आधारित है, परंतु फिल्म का टीज़र देखकर ऐसा लग रहा है मानो फिल्म महाभारत पर आधारित नहीं बल्कि हॉलीवुड की पांच-सात फिल्मों और वेबसीरीज़ के ग्रेफिक्स की चोरी पर आधारित हो?
सर्वप्रथम बात करते हैं फिल्म की मूल भावना की। VFX पर चर्चा बाद में क्योंकि असली उत्पाद तो 12 जनवरी को ही सामने आएगा। परंतु अगर फिल्म का मूल उद्देश्य वाल्मीकि रामायण को वास्तविक रूप में रूपांतरित करना है तो यहाँ टीज़र में तो ऐसा कतई नहीं लगता। वानर का अर्थ है वन में निवास करने वाले नर, आधुनिक परिप्रेक्ष्य में जनजाति। इन्हे ‘बंदर’ या ‘मर्कट’ केवल लंका निवासी चिढ़ाने एवं अपमानित करने हेतु बोला करते थे, क्योंकि वे इनके जितने बलशाली, चतुर एवं चपल तो कतई नहीं थे। हनुमान की भूमिका निभाने वाले देवदत्ता नागे हनुमान कम किसी अजीब से जोकर प्रतीत हो रहे हैं। यही नहीं, वानर सेना में वानर वानर कम, विश्व भर से इम्पोर्ट किए हुए ‘वनमानुष’ अधिक प्रतीत होते हैं, जिसके कारण इनकी तुलना निस्संदेह कहीं ‘Monkey King’, तो कहीं ‘Planet of the Apes’ से हो रही।
अब आते हैं लंकेश पर, यानी सैफ अली खान पर। माना कि रावण को हमें सकारात्मक चित्रण नहीं देना था, परंतु आदिपुरुष का टीज़र देखकर तो स्वयं दशानन भी अपना चंद्रहास निकालकर ओम राउत और सैफ अली खान को दौड़ा लेगा। सोशल मीडिया पर ‘रावण में लाख बुराइयाँ थी’ वाला मीम अब वास्तव में सत्य प्रतीत हो रहा, क्योंकि वह रावण कम, एक मुस्लिम आक्रांता अधिक प्रतीत हो रहा है। टीज़र में भी जिस तरह से सैफ अली खान क्रियाएं कर रहे हैं, उससे ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वो रावण की नहीं बल्कि अलाउद्दीन खिलजी की भूमिका निभा रहे हों।
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वैसे, भी पदमावती के बाद अलाउद्दीन खिलजी, बॉलीवुड के लिए सुपर खलनायक बन गया है। हर डायरेक्टर अपनी फिल्म के खलनायक को खिलजी बनाकर पेश कर रहा है। इसका एक उदाहरण हमारे सामने तान्हाजी: द अनसंग वॉरियर भी है। इस फिल्म में भी खलनायक यानी सैफ अली खान को सनकी/पागल जैसा दिखाया गया था। उसी तरह की एक्टिंग और उसी तरह की हरकतें। यह सही है, कि अलाउद्दीन खिलजी की भूमिका रणवीर सिंह ने परद्मावत में अच्छी निभाई थी। उसकी बहशीपन, सनकीपन और पागलपन अच्छे से दिखाया था लेकिन सभी खलनायक अलाउद्दीन खिलजी नहीं हैं- यह बात बॉलीवुड समझ ही नहीं पा रहा। अलाउद्दीन खिलजी वास्तव में उतना बहशी था, इसलिए वो चल गया- लोगों को पसंद आया लेकिन सभी खलनायक उतने ही बहशी हो- उसी तरह की हरकतें करें या आवश्यक तो नहीं है और फिर रावण के साथ ऐसा क्यों? और कोई मुझे ये बताए कि इतना परफेक्ट ट्रिम कट त्रेता युग में कब से मिलने लगा? हेयरकट को देखकर, दाढ़ी को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वो राणव नहीं बल्कि कोई मौलाना हो। इसी परिप्रेक्ष्य में TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा ने कटाक्ष से परिपूर्ण ट्वीट किया, “रावनुददीन अली Targaryen बैठे Dracarys पर” –
Ravanuddin Ali Targaryen
Dracarys pic.twitter.com/PIVjfKguYx
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) October 3, 2022
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अब आते हैं इस फिल्म की मूल कड़ी, जानकी पर। किसी की एक छवि आपकी फिल्म को बना या बिगाड़ सकती है, परंतु अगर फिल्म में भी वही छुई मुई चाल हो तो कृति सैनन के होने न होने से क्या लाभ? आदिपुरुष में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका यदि किसी की होनी थी तो वह देवी सीता की ही होती, परंतु अपनी प्रथम झलक में कृति बहुत अधिक प्रभावशाली नहीं दिखी हैं।
मूल रामायण में सीता मैया एक सशक्त, परंतु प्रभावशाली व्यक्तित्व का परिचायक थीं, जिसे आत्मसात करने में दीपिका चिखालिया ने रामानंद सागर के बहुप्रतिष्ठित ‘रामायण’ में कोई प्रयास अधूरा नहीं छोड़ा। यहाँ तक कि एनिमेटेड रामायण में भी सीता मैया की वही छवि विद्यमान रही, जिसे नम्रता साहनी ने अपनी ध्वनि दी। अब यूं तो तुलना नहीं करनी चाहिए, परंतु सोचता हूँ कि मृणाल ठाकुर को इस भूमिका के लिए क्यों नहीं चुना गया। ‘सीता रामम’ में उन्होंने जैसे सीता महालक्ष्मी की भूमिका निभाई थी, उनका किरदार भले ही कुछ और था, पर उन्होंने देवी सीता की मूल भावना को आत्मसात करने का एक सार्थक प्रयास अवश्य किया।
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अब आते हैं इस फिल्म के मूल सारथी, ‘आदिपुरुष’, अर्थात प्रभास पर। पिछले कुछ समय से इनका भाग्य इनका साथ नहीं दे रहा है, और ‘राधे श्याम’ इसका साक्षात प्रमाण है। परंतु जैसे आदिपुरुष में इनकी छवि दिख रही है, यदि ऐसे ही वे पूरी फिल्म में रहे तो इनका कार्य बनने के बजाए बिगड़ जाएगा। मूंछ या बिना मूंछ की बात छोड़िए, श्री राम धीर गंभीर होते हैं, रौद्र और क्रोधित नहीं और ऐसे में वे लक्ष्मण के बिछड़े हुए भाई अधिक प्रतीत होते हैं. और लक्ष्मण का किरदार जो कर रहे हैं, उनपे तो जितनी कम चर्चा करें, उतना ही श्रेयस्कर।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि आदिपुरुष यदि गलत उद्देश्य से नहीं बनी है, तो इसका टीज़र निस्संदेह बहुत ही बेदर्दी से काटा गया है। अब इसे कोई चमत्कार ही बचा सकता है, अन्यथा यदि इसका ट्रेलर भी ऐसा ही रहा, तो ईश्वर ही जाने इसका भाग्य क्या होगा!
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