नूतन, हेमा मालिनी और सुलक्षणा– संजीव कुमार की ‘दुखद प्रेम कहानी’ का ये है पूरा सत्य

सत्य के और भी रूप होते हैं

संजीव कुमार

मेरी भीगी-भीगी सी पलकों पे

रह गए जैसे मेरे सपने बिखर के

जले मन तेरा भी किसी के मिलन को

अनामिका, तू भी तरसे

जिस चलचित्र से ये गीत अमर हुआ था, किसे पता था कि ये कोई आम गीत नहीं एक पीड़ा थी, जो वास्तव में वो नायक जी रहा था और जो भाग्य में एक अलग ही स्याही से लिखी गयी थी। विचित्र भाग्य होते हैं कुछ लोगों के, कुछ को बिन मांगे सब कुछ मिल जाता है और कुछ को सब योग्यता होने के बाद भी कुछ भी प्राप्त नहीं होता।

हरिहर जेठाभाई जरिवाला यानी संजीव कुमार को उनकी प्रतिभा का उचित सम्मान तो नहीं ही मिला और न ही कभी उनकी प्रेयसी उन्हें मिल पायी। लेकिन क्या यही पूर्ण सत्य है?

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संजीव कुमार की एक्टिंग

इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी संजीव कुमार में। जिस स्कूल से पंकज त्रिपाठी, मनोज बाजपेयी जैसे बालक निकलते थे, ये उसके हेडमास्टर हुआ करते थे। अभिनय इनके बाएं हाथ का खेल था और आंखों से अभिनय करने की कला तो मानों इन्हें स्वयं देवताओं से आशीर्वाद में मिली थी। कोशिश, दस्तक, खिलौना, नया दिन नई रात जैसी फिल्म इनकी अद्भुत कला का जीता जागता प्रमाण है।

परंतु जैसे इनके अभिनय के लिए इन्हें पर्याप्त कद और सम्मान फिल्म उद्योग से नहीं मिला, वैसे ही इनका जीवन भी कुछ ऐसा ही था। इनका जीवन इनके ही एक फिल्म, ‘अनामिका’ की भांति था, अंतर बस इतना था कि वे अपनी प्रेयसी को पा ही नहीं सके। ये हम हमेशा सुनते पढ़ते आते हैं कि संजीव कुमार को उनका प्रेम नहीं मिला लेकिन इस फैलाए गए सत्य से परे भी एक सत्य है। संजीव कुमार को सबने निरंतर एक दिलजले देवदास के रूप में रूपांतरित किया है, जो मानो गुरुदत्त के बिछड़े हुए रिश्तेदार थे। परंतु सत्य का रूप एक ही है, अंतर इस बात से होता है कि आप किस पक्ष से सुनते हैं।

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संजीव कुमार के प्रशंसक

संजीव कुमार के प्रशंसक जुटाए नहीं जाते थे, वह स्वत: बन जाते थे। अब व्यक्तित्व ही जिसका इतना आकर्षक हो, वो क्यों नहीं लोगों का चहेता बनेगा। अपने युवा अवस्था में वह कई लड़कियों के प्रिय थे और इन्हीं में से एक थीं नूतन। जी हां, वही नूतन जिनके परिवार से काजोल और रानी मुखर्जी एवं मोहनीश बहल जैसे कलाकार निकले हैं।

अब आयु में नूतन संजीव से बड़ी थी एवं विवाहित भी, परंतु योग्यता और प्रतिभा की प्रशंसा कौन नहीं करता? परंतु भाग्य को कुछ और ही स्वीकार था। रिपोर्ट्स के मुताबिक वर्ष 1969 में फिल्म ‘देवी’ की शूटिंग चल रही थी। इस फिल्म में नूतन के को-एक्टर संजीव कुमार थे। नूतन सेट पर अकेले ही रहना पसंद करती थीं, वह अधिक किसी से बात नहीं करती थीं। मगर, धीरे-धीरे संजीव कुमार से उनकी दोस्ती बढ़ी। लेकिन, दूसरी तरफ इस बढ़ती दोस्ती पर न जाने कहां से अफेयर की अफवाहें उड़ने लगीं। रिपोर्ट्स के मुताबिक इसे लेकर खबरें भी छपने लगी थीं, जबकि उस वक्त तक नूतन शादी कर चुकी थीं और वह एक बेटे की मां थीं।

अपने दौर की दिग्गज अभिनेत्रियों में गिनी जाने वाली नूतन बहुत सौम्य और शांत स्वभाव की थीं। सेट पर वह अपने काम से काम रखा करती थीं। अपने को-स्टार्स के साथ कभी उनकी अनबन नहीं हुआ करती। मगर, एक दिन ऐसा हुआ कि गुस्से से तमतमाई नूतन ने फिल्म के सेट पर अपने को-एक्टर को सरेआम तमाचा जड़ दिया। वह एक्टर कोई और नहीं बल्कि संजीव कुमार थे। हमेशा चुप रहने वाली नूतन का ऐसा गुस्सा सेट पर मौजूद सभी लोगों को हैरान कर गया। बाद में पता चला कि एक अफवाह की वजह से यह हुआ।

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सत्य तो कुछ और ही था

हुआ ये था कि एक दिन फिल्म ‘देवी’ के सेट पर नूतन की नजर एक मैगजीन पर गई। जिसके माध्यम से नूतन को भी अपने और संजीव कुमार के अफेयर की अफवाह के बारे में पता चला। यह बात नूतन को कतई पसंद नहीं आई। रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्हें जब ये पता चला कि खुद संजीव कुमार ने यह अफवाह फैलाई है तो उनके गुस्से का ठिकाना ही नहीं रहा। उन्हें इतना गुस्सा आया कि उन्होंने भरे सेट पर संजीव कुमार के तमाचा जड़ दिया। नूतन ने इस बात का जिक्र वर्ष 1972 में एक इंटरव्यू के दौरान किया था।

परंतु सत्य तो कुछ और ही था। असल में पति रजनीश बहल के दबाव में नूतन ने संजीव को तमाचा जड़ा, क्योंकि उन्हें दोनों की मित्रता नहीं पसंद थी और संजीव बिना कुछ कहे सेट से निकल गए। उन्होंने दोबारा नूतन के साथ कार्य न करने की कसम खाई और ये भी कहा कि उन्हें अविलंब, बिना शर्त क्षमा याचना नूतन से चाहिए। परंतु बाद में मामला हाथ से बाहर चल गया और न चाहते हुए भी सार्वजनिक हो गया।

फिर आया वो युग, जब संजीव कुमार को पुनः प्रेम हुआ और इस बार लगा कि घर तो बस ही जाएगा, वह कोई और नहीं बल्कि ‘ड्रीम गर्ल’ हेमा मालिनी थीं। कहा जाता है कि हेमा मालिनी ने संजीव कुमार को दरकिनार कर दिया, जिसके कारण संजीव नशे में रहने लगे परंतु वास्तविक सत्य यहां भी कुछ और है।

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महिला ही महिला की दुश्मन

कहते हैं कि महिला ही महिला की सबसे बड़ी शत्रु है और यहां हेमा के लिए वो शत्रु उन्हीं की मां सिद्ध हुईं। वह हेमा के जीवन के हर निर्णय लेती थीं और इस कारण जो प्रेम कथा एक सफल मंच तक जा सकती थी उसने दुर्भाग्यवश दम तोड़ दिया।

संजीव कुमार की बायोग्राफी, ‘एन एक्टर्स एक्टर’ नामक किताब में हुए खुलासे के मुताबिक, हेमा और संजीव फिल्म सीता और गीता के गाने हवा के साथ साथ की शूटिंग के दौरान करीब आए थे। इस गाने की शूटिंग के दौरान दोनों स्केटिंग करते हुए घायल हो गए थे और यही हादसा दोनों को करीब ले आया था। कई लोगों को यही लगता है कि इसी दौरान दोनों एक-दूसरे की ओर आकर्षित हो गए थे। संजीव कुमार की मां को भी हेमा पसंद थीं, परंतु हेमा की मां को ये बात पसंद नहीं आई, क्योंकि उसके लिए करियर सर्वोपरि था। इसके बाद संजीव और उनकी मां जब हेमा के घर उनका हाथ मांगने पहुंचे तो एक्ट्रेस की मां ने शादी की मंजूरी देने से इनकार कर दिया और यहीं से दोनों की प्रेम कहानी का अंत हो गया।

यहां पर एक बात ध्यान देने वाली है कि अब इस बीच संजीव कुमार कई हृदयाघात झेल चुके थे और उनके परिवार में एक अजब रीत थी – कोई भी पचास वर्ष की आयु नहीं पार कर पाता। लेकिन इसी बीच एक अभिनेत्री उनके कला की दीवानी बनीं और ऐसी दिवानी बनीं कि वह उन्हीं का नाम जपने लगीं। इस कन्या का नाम था सुलक्षणा पंडित।

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इस बार संजीव कुमार पीछे हट गए

परंतु इस बार संजीव कुमार पीछे हट गए, दो कारणों से। एक तो ये कि सुलक्षणा आयु में काफी छोटी थी और दूसरी यह कि वह उन्हें जीते जी वैधव्य के दिन नहीं देना चाहते थे। संजीव कहीं न कहीं जानते थे कि उनके साथ क्या होने वाला है और हुआ भी वही। चौथे हृदयाघात से 1985 में उनकी असामयिक मृत्यु हो गई। परंतु सुलक्षणा ने तब भी उनका साथ नहीं छोड़ा और आजीवन अविवाहित रहीं।

इस बात को बहुत प्रसारित किया गया कि संजीव कुमार शराब के नशे में धुत्त रहते थे लेकिन उनके जीवन का सत्य बहुत कम लोग ही जानते हैं। हालांकि संजीव कुमार के जाने के बाद भी उनके साथ न्याय नहीं हुआ क्योंकि रही सही कसर उनको शराब में धुत्त, प्रेम में विफल देवदास साबित करने पर तुली खबरों ने पूरी कर दी। काश, संजीव कुमार के भाग्य की स्याही किसी अलग रंग से लिखी गयी होती।

Chief Source – An Actor’s Actor

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