शिवराज पाटिल- एक ऐसे गृह मंत्री जिनके रहते मालेगांव जैसी त्रासदी हुई और 26/11 तक रोक नहीं पाए

इन्हें सोनिया गांधी का संरक्षण प्राप्त था!

शिवराज पाटिल

सेवा और चाटुकारिता में स्पष्ट अंतर होता है। जब सेवा की जाती है, तो वो इच्छा से होती है, उसमें अपनापन भी होता है और कभी न कभी उसके परिणाम अप्रत्याशित होते हैं। परंतु चाटुकारिता के परिणाम कभी भी हितकारी नहीं हुए है। समाज के लिए तो बिल्कुल नहीं और शिवराज पाटिल (Shivraj Patil) इसी का जीता जागता प्रमाण है।

राजनीति में चाटुकारिता कोई नयी बात नहीं है। आपको एक स्तर के पश्चात जी हुज़ूरी करके कार्य करना ही पड़ता है। परंतु शिवराज पाटिल का स्तर ही कुछ अलग था। वे सोनिया गांधी की इतनी जी हुज़ूरी करते थे कि उन्हें 2004 में लोकसभा चुनाव हारने के पश्चात भी गृह मंत्रालय जैसा अति महत्वपूर्ण पदभार सौंपा गया। पहली बार ऐसा हुआ जहां न तो देश के प्रधानमंत्री और न ही गृहमंत्री जनता द्वारा चुनकर संसद में निर्वाचित हुए थे। ऐसे खासमखास थे शिवराज पाटिल।

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कई शहरों में हुए बम धमाके

इस खासमखास होने का दुष्परिणाम संपूर्ण राष्ट्र को भुगतना पड़ा। राष्ट्रीय सुरक्षा, प्रशासन सब तेल लेने चला गया था। कई लोग कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव ने किसी केंद्रीय मंत्री के रूप में सबसे खराब कार्य किए थे। परंतु ऐसा लगता है कि उनका शिवराज पाटिल से परिचय नहीं हुआ था।

DW नामक न्यूज पोर्टल के एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के अनुसार

गृह मंत्री के रूप में शिवराज पाटिल के कार्यकाल के दौरान भारत के कई शहरों में बम धमाके हुए जिसके चलते कई बार उनके इस्तीफे की मांग उठी लेकिन वह पद पर बने रहे। भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत डेविड मलफर्ड ने अपने एक संदेश में कहा था कि बैंगलोर, अहमदाबाद, जयपुर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुवाहाटी, समझौता एक्सप्रेस, ओडिशा, कर्नाटक, जम्मू और कश्मीर में आतंकी गतिविधियां सामने आने लगी थी।

इसी समय दिल्ली के बम विस्फोटों के पश्चात बाटला हाउस में छुपे आतंकियों का जब दिल्ली पुलिस ने एनकाउंटर किया, तो उन्हें प्रशंसित करने के बजाए कुटिल मीडिया और वामपंथियों के समक्ष झोंक दिया गया, जो पुलिस को किसी भी तरह भक्षक सिद्ध करने में जुटी थी और इस दौरान शिवराज पाटिल मूकदर्शक बने हुए थे। ऐसा लग रहा था मानो देश भगवान भरोसे चल रहा है और यही वास्तविक सत्य भी था क्योंकि शिवराज पाटिल को गृह मंत्रालय का ग भी संभालना नहीं आता था।

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सोनिया गांधी करती रही बचाव, लेकिन फिर…

लेकिन 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमले के बाद स्थिति बदल गई। अमेरिकी राजदूत के मुताबिक कांग्रेस पार्टी मुश्किल राजनीतिक परिस्थितियों में थी और नुकसान कम करने के लिए उसने शिवराज पाटिल को विदा करना बेहतर समझा। ऐसे माहौल में गृह मंत्री को हटाना जरूरी हो गया था। चार साल के अपने कार्यकाल में उन्होंने पूरी तरह से अपनी अक्षमता को दिखाया।

परंतु 26/11 में हुआ क्या था? डेविड मलफर्ड ने अपने संदेश में लिखा कि पाटिल के इस्तीफे की मांग बार बार उठने पर सोनिया गांधी उनका बचाव करती रहीं। लेकिन मुंबई हमले के बाद अपार असंतोष एवं जनविरोध को देखते हुए इस बार वह भी कुछ नहीं कर सकीं। खुफिया केबल के मुताबिक कांग्रेस भारत की जनता को संदेश देना चाहती थी कि उसने मुंबई हमलों को गंभीरता से लिया है। मलफर्ड ने संदेह भी जताया कि यह कदम देर से उठाया गया है और शायद इसका लाभ कांग्रेस को 2009 के लोकसभा चुनावों में न मिले।

इसके अतिरिक्त यह भी सामने आया कि गृह मंत्रालय विभिन्न सुरक्षा रिपोर्ट्स पर कुंडली मारकर बैठी रही और 26/11 की जानकारी होने पर भी कोई एक्शन नहीं किया। लेते भी कैसे, हिन्दू आतंकवाद की नौटंकी जो प्रचारित करनी थी। रॉ अलर्ट में हमले की संभावित टारगेट लिस्ट में नरीमन पॉइंट समेत अन्य लक्ष्यों का जिक्र किया था, जिसमें भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल को एजेंसी द्वारा 20 नवंबर 2008 को जारी किया गया अलर्ट भी शामिल था। यह अलर्ट घुसपैठ करने वाले जहाज अल हुसैनी के बारे में था जिसने कराची के केटी बंदरगाह से अपनी यात्रा शुरू की थी।

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रॉ के तत्कालीन प्रमुख चतुर्वेदी के अनुसार 26/11 के हमलों को नहीं रोक पाने के लिए बाद में उन्हें निशाना बनाया गया था, वो साल 2009 में एजेंसी से रिटायर हुए। उनके बाद मध्य प्रदेश के आईपीएस कैडरमेट अनिल धस्माना 2017 में रॉ के प्रमुख बने और वर्तमान में राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO) के अध्यक्ष हैं।

आईबी ने इन चेतावनियों का इस्तेमाल भारत की वाणिज्यिक राजधानी में यहूदी ठिकानों पर हमलों सहित आसन्न आतंकी हमलों की तीन चेतावनियों को जारी करने के लिए किया था। यह कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के नेतृत्व वाली तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा स्थापित आरडी प्रधान जांच आयोग की डी-वर्गीकृत रिपोर्ट से स्पष्ट है। प्रधान रिपोर्ट राज्य के गृह विभाग और मुंबई पुलिस दोनों द्वारा खतरों की बुद्धिमान धारणा की कमी के बारे में बात करती है। साथ ही विशेष रूप से 9 अगस्त 2008 को ताजमहल होटल, ओबेरॉय होटल और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर संभावित हमलों पर आईबी से अलर्ट का उल्लेख करती है।

इसके अतिरिक्त हमले के प्रमुख सजिशकर्ताओं में से एक डेविड हेडली ने जून 2010 में एनआईए को बताया कि सितंबर में मुंबई पर पहला प्रयास विफल रहा क्योंकि नाव समंदर में डूब गयी थी। 26/11 का दूसरा प्रयास आतंकियों के लिहाज से सफल और घातक था क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्रालय, राज्य के गृह विभाग और मुंबई पुलिस सभी इससे अनजान थे। हमलों में छह अमेरिकी नागरिकों और चार इजरायली नागरिकों के मारे जाने के साथ सीआईए और मोसाद दोनों मुंबई नरसंहार को रोकने में भारत की विफलता के लिए परेशान थे। इसके बावजूद दोनों एजेंसियों और उनकी सरकारों ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को नवीनतम तकनीक का उपयोग करके जले हुए मोबाइल फोन और आतंकवादियों के जीपीएस सेट से सुराग निकालने में मदद की।

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मुंबई हमलों के दौरान सूट बदलने में व्यस्त थे

फलस्वरूप केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल, राज्य के गृह मंत्री आरआर पाटिल और मुंबई पुलिस आयुक्त हसन गफूर ने इस घटना के बाद अपनी नौकरी गंवा दी। शिवराज पाटिल 26/11 के समय स्थिति का डटकर सामना करने के लिए कम और सूट बदलने के लिए अधिक चर्चा में आए, जिसके कारण NSG भी देर से डेप्यूट हुई और कई लोग मारे गए। मुंबई में हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ भारत जवाबी सैन्य कार्रवाई के मूड में था, लेकिन आठ महीने बाद यह बदल गया।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि शिवराज पाटिल वो व्यक्ति थे, जिनके कारण भारत की सुरक्षा और भारत की छवि काफी मलिन हुई। पलानीअप्पन चिदंबरम ने तो बस मृत देह का अस्थि पंजर किया है।

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