मृत्युशय्या पर पड़ा था जूट उद्योग, प्लास्टिक बैन के बाद फिर जी उठेगा!

मोदी सरकार में जूट उद्योग के दिन फिर रहे हैं!

jute industry

प्लास्टिक एक ऐसी दीमक है जो हमारे पर्यावरण को धीरे-धीरे निगलती जा रही है। वर्षों से हम अपने रोजमर्रा की जिंदगी में प्लास्टिक का अंधाधुंध उपयोग करके पर्यायवरण को दूषित करते आ रहे हैं। प्लास्टिक पर्यावरण के लिए तो हानिकारक है ही इसके साथ ही यह हमारे सेहत को भी बड़ा नुकसान पहुंचाती है। ऐसे में इससे छुटकारा पाना ही एकमात्र विकल्प है। भारत ने तो इस दिशा ने बड़ा कदम बढ़ाते हुए जुलाई माह में ही एकल उपयोग यानी सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हालांकि प्लास्टिक बैन होने से एक लाभ जूट उद्योग को भी मिलता दिख रहा है। लगभग खत्म होने की कगार पर पहुंचा जूट उद्योग एक बार फिर से जीवित होता नजर आ रहा है।

भारत में एक जुलाई 2022 को एकल उपयोग यानी सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा चार वर्षों पूर्व देश में सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की शपथ ली थीं। प्लास्टिक के विरुद्ध युद्ध में पहला कदम आगे बढ़ाते हुए सरकार द्वारा देश में सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग पर बैन लगाया। एक जुलाई 2022 से सभी राज्यों में कम उपयोगिता और अधिक कूड़ा पैदा करने वाली 19 वस्तुओं के निर्माण, भंडारण, आयात, वितरण, बिक्री और उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया था।

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जूट उद्योग को मिल रहा नया जन्म

वहीं जब से इस सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगा है, तब से जुट के कारोबार में एक बार फिर उछाल मिलता हुआ देखने को मिलने है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है सिंगल यूज प्लास्टिक के जाने के बाद अब जूट का एक नया जन्म हो रहा है। दरअसल, पिछले कुछ दशकों में देखें तो जूट उद्योग ने काफी ज्यादा संघर्ष किया है। विभाजन से पूर्व का समय ऐसा था जब भारत और विशेष रूप से बंगाल का एकाधिकार हुआ करता था। कच्चे जूट के साथ-साथ तैयार टाट-बोरियां विभिन्न देशों में भेजी जाती थीं। यही कारण है कि भारत में जूट को ‘गोल्डेन फाइबर’ यानी ‘सोने का रेशा’ भी कहा जाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में भी जूट उद्योग महत्वपूर्ण योगदान देता आ रहा था। परंतु फिर यह उद्योग धीरे-धीरे कर अपनी बदहाली की ओर पहुंचने लगा।

ऐसा इसलिए क्योंकि इसे टक्कर देने के लिए कम खर्चीले वाले अनेकों विकल्प बाजार में आ गये थे। वहीं किसानों ने भी इसकी जगह दूसरी फसलों की तरफ रूख करना शुरू कर दिया था और साथ ही मिलों में निवेश की कमी आ गयी। हालांकि जुट ने तब भी हार नहीं मानी थी। लगातार यह अपनी जगह बनाने के लिए प्रयास में लगा रहा। अब दुनिया प्लास्टिक की जगह किसी विकल्प की तलाश में है और ऐसे में जूट उद्योग वह विकल्प बनता नजर आ रहा है।

कोलकाता में एक व्यापार निकाय इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन के एक शीर्ष अधिकारी राघवेंद्र गुप्ता ने इस पर कहा कि “प्राकृतिक अब फैशन बनता चला जा रहा है। जूट से अधिक पर्यावरण के अनुकूल कुछ भी नहीं है।”

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बढ़ रही है जूट की मांग

राघवेंद्र गुप्ता के अनुसार वैश्विक जूट बैग का बाजार साल 2021 में 2.3 अरब डॉलर से बढ़कर 2026 में 3.38 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है। भारत के द्वारा साल 2021 में निर्यात किए जाने वाले जूट उत्पादों में लगभग 400 मिलियन डॉलर के एक-चौथाई के लिए शॉपिंग बैग शामिल थे और पिछले पांच वर्षों में देश के जूट बैग का निर्यात तीन गुना से अधिक हो गया है। वहीं अमेरिका भारतीय जूट उत्पादों के लिए सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, जो पिछले साल 25.5% बढ़कर लगभग 100 मिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है।

प्रधानमंत्री ने भी की अपील

विशेषज्ञों की मानें तो जूट उद्योग के उत्पादों में विविधता लाने से इसके निर्यात के बाजार खोलने में काफी सहायता मिलेगी। जूट उद्योग को लेकर यह अच्छी खबर आ रही है और इसी बीच सरकार ने अनिवार्य जूट पैकेजिंग को 30 दिसंबर 2022 तक के लिए बढ़ा दिया था। कुछ दिनों पूर्व टेक्सटाइल मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए नोटिफिकेशन के अनुसार अनिवार्य जूट पैकेजिंग की लिमिट को 30 सितंबर से तीन महीनों तक के लिए बढ़ा दिया गया था। इन नियमों के अंतर्गत अनाज में 100 फीसदी जूट पैकज का प्रयोग किया जाना अनिवार्य है। वहीं चीनी के लिए 20 फीसदी तक के जूट बैग के प्रयोग होना चाहिए। इसके चलते जुट के कारोबार को सरकार के द्वारा और भी अधिक प्रोत्साहन मिला है।

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सरकार जूट उद्योग को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में पूरी तरह से जुटी हुई है। सितंबर में अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से त्योहारों पर स्वदेशी सामानों की ज्यादा खरीदारी करने और प्लास्टिक बैग की जगह जूट के बैग का उपयोग करने की अपील की है। मोदी सरकार जूट उद्योग के पुनर्जीवन में कामयाब भी होती नजर आ रही है।

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