हिंदू संस्कृति की महान/पवित्र किताबों को ऑनलाइन लेकर आया BORI

व्यासजी के महाभारत का उत्कृष्ठ संस्करण इसी थिंक टैंक ने दिया है। इनके संस्करण एजेंडा रहित होते हैं।

भारत विद्या

भारत विद्या: ब्रेवहार्ट में एक बड़ा ही अनोखा संवाद है, “इतिहास वही लिखता है, जिसने नायकों को सूली पर चढ़ाया हो!” यह बात अपाच्य अवश्य है परंतु कटु सत्य भी है, एक सत्य यह भी है कि इतिहास में कभी-कभी परिवर्तन लाने हेतु बहुत बड़े युद्ध नहीं लड़ने पड़ते, कुछ छोटे और परंतु महत्वपूर्ण कदम भी पर्याप्त होते हैं। ऐसा ही एक कदम खोज निकाला है पुणे में भंडारकर इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएंटल लर्निंग ने, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में ऑनलाइन कोर्स लॉन्च की है।

तो, इसमें नयी बात क्या है? अधिकारियों ने कहा है कि धर्म, साहित्य, दर्शन, शासन और नीति-निर्माण, खगोल विज्ञान, गणित, विज्ञान, चिकित्सा, कला, वास्तुकला, इतिहास और संस्कृति जैसे विषयों को भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट (बीओआरआई) द्वारा अपने ऑनलाइन शिक्षण मंच ‘भारत विद्या’ के माध्यम से पेश किए जाने वाले पाठ्यक्रमों के हिस्से के रूप में शामिल किया गया है।

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वर्तमान में छह पाठ्यक्रम पेश किए जा रहे हैं

डिजिटल पहल के समन्वयक चिन्मय भंडारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को कहा कि स्कूल और कॉलेज में केवल निश्चित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है और विषय का एक बड़ा हिस्सा अनछुआ रह जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए हमारी इस पहल का उद्देश्य शैक्षणिक संस्थानों को विशेषज्ञता और संसाधन प्रदान करना है।’’

वर्तमान में संस्थान द्वारा छह पाठ्यक्रम पेश किए जा रहे हैं: वेद विद्या, दर्शन, डिजिटल संस्कृत शिक्षा, महाभारत का परिचय, कालिदास एवं भाषा और पुरातत्व के बुनियादी सिद्धांत।

तो भारत विद्या में नया क्या है? नया ये है किि ये सभी पाठ्यक्रम किसी भी प्रकार के विद्वेष या विचारधारा से मुक्त होंगे। हमने सदैव देखा है कि कैसे इतिहास को किसी न किसी विचारधारा की बलि चढ़ाया गया, आंखों देखी इतिहास बहुत ही कम रचा और लिखा गया है। परंतु ऐसा अब और नहीं होगा।

वैसे भी, इस दिशा मे भंडारकर इंस्टीट्यूट अग्रणी संस्थान रहा है, वो भी बहुत पहले से। स्मरण है बी आर चोपड़ा की अद्वितीय महाभारत? इसका मूल स्त्रोत क्या था? वेदव्यास जी द्वारा रचित महाकाव्य महाभारत, जिसके सबसे आधुनिक और सबसे उत्कृष्ट संस्करण को संकलित करने का पुण्य कार्य इसी भंडारकर संस्थान ने किया था।

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वर्तमान शिक्षा नीति

इसके अतिरिक्त ये कार्य वर्तमान शिक्षा नीति को भी कहीं न कहीं आत्मसात करता है। उदाहरण के लिए एक वर्ष पूर्व केंद्र सरकार की शैक्षणिक, महिला, बाल विकास, युवा एवं खेल संबंधित संसदीय स्टैन्डिंग कमेटी ने में विज्ञप्ति जारी की, जिसमें ईमेल के माध्यम से स्कूली स्तर पर इतिहास के पुस्तकों में बदलाव करने पर ध्यान देने की बात की गई। इसके लिए अंतिम सीमा 15 जुलाई तय की गई।

इस नीति के अनुसार इन बातों पर प्रमुख तौर से ध्यान दिया जाएगा कि कैसे भारतीय नायकों के बारे में ऐतिहासिक पुस्तकों में से भ्रामक कंटेट को हटाया जाए और उन्हें उनका उचित सम्मान दिया जाए। चाहे वो मराठा नायकों के बारे में कहा गया असत्य हो या फिर सनातनी क्रांतिकारियों को भारतीय इतिहास में स्थान न मिलना हो, ऐसी बहुत सी बातें हैं जिन पर अब मंथन किया जा सकेगा। इसके साथ ही भारतीय इतिहास के सभी कालों का समानुपातिक संदर्भ सुनिश्चित करने की दिशा में काम किया जायेगा।

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उचित और सही जानकारी

इसके अलावा ‘भारत विद्या’ के माध्यम से भारतीय इतिहास के बारे में सभी कालखंडों के बारे में उचित और सही बातें समाहित करने पर भी जोर दिया जा सकेगा। यही नहीं, गार्गी और मैत्रेयी से लेकर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई, चांद बीबी, रानी चिनम्मा जैसी वीरांगनाओं के बारे में उचित वर्णन भी किया जाएगा।

ये केंद्र सरकार द्वारा भारतीय इतिहास के वास्तविक नायकों को उनका उचित मान सम्मान और उनका गौरव देने की दिशा में एक अहम कदम भी है। साथ ही साथ जिस प्रकार से मार्क्सवादियों ने देश के इतिहास को क्षति पहुंचाई है उस पर भी मरहम लगाने का यह सधा हुआ प्रयास है।

बता दें कि बच्चों के कोर्सबुक से लेकर एनसीईआरटी की पुस्तकों तक ऐसे न जाने कितने उदाहरण हैं, जहां पर देश के बच्चों को इतिहास के नाम पर भ्रामक तथ्य और कभी-कभी तो सफेद झूठ तक पढ़ाया गया है। जो तुगलक कभी मेवाड़ या विजयनगर जैसे साम्राज्यों से नहीं जीत पाया, उसे इतिहासकारों द्वारा एक अनोखे और प्रतापी शासक के तौर पर दिखाने का जबरदस्ती प्रयास किया गया। एक समय तो रोमिला थापर और बिपन चंद्रा जैसे इतिहासकारों पर प्रश्न उठाना अपराध माना जाता था। इनकी कही बातें मानो पत्थर की लकीर थी और कुछ वामपंथियों के लिए तो आज भी है।

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कुछ ही महीनों पहले जब शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बताया था कि किस प्रकार से नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय इतिहास के गौरवशाली क्षणों को उनका उचित स्थान दिया जाएगा, तो अधिकतर लोगों ने इसे हंसी में उड़ा दिया था। लेकिन अब हमारे पास एक सुनहरा अवसर है कि हम केंद्र सरकार की रणनीति को मजबूत कर पूर्व में हुई गलतियों को सुधार करें और एक नए, एवं सशक्त इतिहास का निर्माण कर करें। ऐसे में भंडारकर संस्थान का वर्तमान कदम भारतीय इतिहास के पुनरुत्थान की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाएगा, और देश को उसके वास्तविक इतिहास से पुनः परिचित कराने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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