3 दिन, 52 करोड़
विक्रम वेधा फ्लॉप: अगर विजयदशमी को जोड़ लें तो ऋतिक रोशन की बहुचर्चित फिल्म विक्रम वेधा ढंग से 60 करोड़ भी नहीं कमा पाएगी, 100 करोड़ तो भूल जाइए और मैं केवल भारत की बात कर रहा हूं। बॉलीवुड की बदनाम बस्ती में एक और फिल्म जुड़ने जा रही है और मूल निर्देशक को उठाने की योजना भी पूर्णत्या असफल रही।
अब प्रश्न ये उठता है- इतने दांव पेंच करने, इतने प्रमोशन एवं इतने PR के बाद भी ये फिल्म ओपनिंग वीकेंड में मात्र 38 करोड़ कुछ घरेलू बॉक्स ऑफिस पर ही क्यों कमा पायीं? क्या ये कॉमरेड मणि रत्नम द्वारा प्रदर्शित ‘पोन्नियन सेल्वन’ से टक्कर मिलने की वजह से हुआ है? हो सकता है पर उस अनुसार तो पुष्पा और द कश्मीर फाइल्स को फ्लॉप हो जाना चाहिए था, क्योंकि ये ‘83’ और ‘राधे श्याम’ जैसी फिल्मों से भिड़ी थी। अंत में दोनों फिल्मों का क्या हाल हुआ था, आप बेहतर जानते हो।
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फ्लॉप विक्रम वेधा फिल्म! में ओरिजिनल वाली बात नहीं
तो विक्रम वेधा के फ्लॉप होने का मूल कारण क्या है? सिर्फ दो- मूल फिल्म की भावना का सम्मान नहीं करना और तरीके में बदलाव नहीं करना। हर फिल्म का भाग्य ‘जर्सी’ जैसा नहीं होता, जो मूल फिल्म की भावना का सम्मान करते हुए भी बॉक्स ऑफिस पर पिट जाए।
विक्रम वेधा का मूल बजट कितना था? 11 करोड़। रीमेक का कितना? 175 करोड़? इतना अंतर किस खुशी में? कहते हैं कई दृश्य ऐसे थे, जिसके लिए ऋतिक रोशन यूपी में कथित तौर पर पसीना बहाने को तैयार नहीं थे और जिनके लिए या तो मुंबई में या फिर UAE में फिर से सेट बनाना पड़ा। इसके अतिरिक्त मूल फिल्म जैसी चटक भावना, उसके जैसा भौकाल आत्मसात करना, सबके बस की बात नहीं थी। यही फिल्म अगर अर्जुन दास या विद्युत जामवाल कर रहे होते या फिर सैफ अली खान को वेधा की भूमिका दिए होते, तो स्थिति कुछ और होती। ऋतिक रोशन से अवधी बुलवाना माने लालू यादव से शुद्ध तेलुगू में गीत गवाने की बात करने की आशा रखना हुआ। विजय सेतुपति के प्रभाव को आत्मसात करने की बात तो भूल ही जाइए।
रीमेक तो कबीर सिंह, दृश्यम भी थीं
दूसरी बात है रीमेक करने की कला होना। कबीर सिंह को आज भी लोग एक अच्छी फिल्म मानते हैं, बताए क्यों? क्योंकि मूल फिल्म की भावना से कोई समझौता नहीं किया गया। उल्टे उसमें धारा के विपरीत जाकर एक व्यक्ति की मानसिक दुर्दशा को बिना लाग लपेट के दिखाया गया। अब दृश्यम स्मरण है न? हां मोहनलाल वाली? उसका भी रीमेक हुआ था हिन्दी में, निशिकांत कामत द्वारा। परंतु क्या मूल फिल्म की भावना से खिलवाड़ हुआ? क्या कोई छेड़छाड़ हुई? नहीं, उल्टे अब 2 अक्टूबर इसलिए स्मरण में नहीं आता कि किसी मोहनदास करमचंद गांधी का जन्मदिन है पर इसलिए कि विजय सलगांवकर और उनका परिवार पणजी क्या करने थे, और वहां क्या खाया थे उन्होंने। इसे कहते हैं प्रभाव, इसे कहते हैं भौकाल।
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परंतु बॉलीवुड में रीमेक भी थोक के भाव बिक रहे हैं। जब राघव लॉरेंस ने अपनी ही फिल्म ‘कंचना’ का रीमेक ‘लक्ष्मी’ के तौर पर बनाया था, तो हम सभी ने देखा था कि किस प्रकार से एक सामाजिक रूप से अहम कॉमेडी का बंटाधार करके रख दिया गया था। पिछले वर्ष अभी नेटफ्लिक्स पर सरोगेसी जैसे गंभीर विषय से जुड़ी एक फिल्म रिलीज हुई थी ‘मिमी’। ये न सिर्फ एक मराठी फिल्म ‘माला आई वायची’ का रीमेक है, बल्कि ट्रेलर से ही स्पष्ट होता है कि फिल्म में मूल विषय से क्या खिलवाड़ हो सकता है, क्योंकि आधी से अधिक कहानी तो ट्रेलर ने ही स्पष्ट कर दी है।
लेकिन जो उद्योग एक ऐसे देश से गाने तक चुरा ले, जिसने बार बार हमारे देश पर आतंकी हमले करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, तो उससे आप रचनात्मकता की आशा कैसे कर सकते हैं? आपको विश्वास नहीं होगा, लेकिन ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ का एक गाना असल में पाकिस्तानी सेना के गीत ‘तू थोड़ी देर और ठहर जा’ से ही उठाया गया है। आगे आप स्वयं समझदार हैं।
दर्शक भी जिम्मेदार हैं
इसके अलावा अगर बॉलीवुड के आगामी प्रोजेक्ट्स पर नजर डाली जाए तो ओरिजनल क्या है? रीमेक के अलावा यदि कुछ है तो केवल बायोपिक। अगर राजा कृष्ण मेनन की बहुप्रतिष्ठित ‘पिप्पा’ को छोड़ दें, तो हमारे पास ‘राम सेतु’, ‘दृश्यम 2’ , ‘मेरी क्रिसमस’, एवं ‘मैदान’ जैसी फिल्में प्रदर्शन को तैयार है, जो वर्षों से अटकी पड़ी है। परंतु इसके अलावा कुछ अलग, कुछ नया बॉलीवुड में कहां है? इसके लिए केवल बॉलीवुड के निर्माता, अभिनेता और लेखक ही नहीं, बल्कि काफी हद तक स्वयं दर्शक भी जिम्मेदार हैं।
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चाहे वजह कोई भी हो, एक अच्छी और सच्ची फिल्म के ट्रेलर के लिए ही जितने लाइक्स, व्यूज और शेयर होने चाहिए, उससे दस गुण ज्यादा लाइक्स और शेयर्स तो ‘राधे’ के ट्रेलर पर दिख जाते हैं। ऐसे में बॉलीवुड के साथ दर्शकों को भी कुछ हद तक अपने विचारों और अपने विकल्पों पर आत्ममंथन करना पड़ेगा। समस्या है तो समाधान भी निकलेगा।
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