वीरेंद्र सहवाग– जिनके आउट होते ही TRP धड़ाम हो जाती थी

एक ओजस्वी क्रिकेटर जिसने भारत का नाम ऊंचा किया

वीरेंद्र सहवाग

“मेरा काम है बॉल को बाउंड्री के बाहर पहुंचाना”

इतना स्पष्ट दृष्टिकोण बहुत ही कम बल्लेबाज़ों का देखने को मिला है, वो भी तब जब वो भारत से हो। अधिकतम बल्लेबाज़ समय लेकर जांचकर, परखकर अपने कौशल का प्रदर्शन करते थे। आक्रामक बल्लेबाज़ हमारे देश में कम ही होते थे। परंतु वीरेंद्र सहवाग अलग ही मिट्टी के बने थे, जिनके लिए गेंद का एक ही काम था – उनके बल्ले से पिटना।

एक ओजस्वी क्रिकेटर

आज इस ओजस्वी क्रिकेटर का 44वां जन्मदिन है। प्यार से उन्हें सभी “वीरू” ही कहते हैं। वैसे उन्हें “नज़फ़गढ़ के नवाब” व “आधुनिक क्रिकेट के ज़ेन मास्टर” के रूप में भी जाना जाता है। वे दायें हाथ के आक्रामक सलामी बल्लेबाज तो रहे ही किन्तु आवश्यकता के समय दायें हाथ से ऑफ स्पिन गेंदबाज़ी भी की। उन्होंने भारत की ओर से पहला एकदिवसीय मैच 1999 में व पहला टेस्ट मैच 2001 में खेला था। अप्रैल 2009 में सहवाग एकमात्र ऐसे भारतीय बने जिन्हें “विजडन लीडिंग क्रिकेटर ऑफ द ईयर” के खिताब से नवाज़ा गया। उन्होंने अगले वर्ष भी इस ख़िताब को फिर जीता।

सहवाग हर भारतीय क्रिकेटर की भांति कपिल देव और सचिन तेंदुलकर से काफी प्रेरित थे, और प्रारंभ में उन्हीं का अनुसरण करते थे। “नज़फगढ़ के नवाब”, “मुल्तान के सुल्तान” और “जेन मास्टर ऑफ़ माडर्न क्रिकेट” जैसे अनेक उपनामों से नवाज़े जाने जाने वाले वीरेंद्र सहवाग ने अपना पहला अन्तरराष्ट्रीय मैच 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ खेला था। इस मैच में सहवाग एक रन बनाकर चलते बने और गेंदबाजी के दौरान तीन ओवरों में 35 रन दे डाले। इसके बाद सहवाग को काफी समय तक टीम में शामिल नहीं किया गया। दिसंबर 2000 में जिम्बाब्वे के खिलाफ घरेलू सीरीज में सहवाग को फिर से टीम में शामिल किया गया। अगस्त 2001 में श्रीलंका और न्यूजीलैंड के खिलाफ ट्राई सीरीज में सहवाग ने पारी की शुरुआत करते हुए कैरियर का पहला अर्धशतक जमाया। इसी सीरीज में न्यूजीलैंड के खिलाफ 69 गेंदों पर शतक ठोककर सहवाग ने अपने हुनर का नमूना पेश किया।

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सहवाग का भाग्य बदल गया

परंतु सहवाग का भाग्य बदला दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध टेस्ट शृंखला में। यहाँ उन्होंने अपने पहले ही टेस्ट में शतक ठोंका। अपने आक्रामकता के लिए चर्चित सहवाग का इसी शृंखला में विनाश हो सकता था, क्योंकि दूसरे टेस्ट में मैच रेफरी माइक डेनेस ने भारतीय टीम के कई खिलाड़ियों पर अतार्किक आरोप लगाते हुए उन्हे प्रतिबंधित किया, जिसमें सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग समेत कई खिलाड़ी शामिल थे।

यहां तक कि भारत में भी माइक डेनेस के इस कदम का खुलकर विरोध किया गया। सड़कों पर डेनेस के खिलाफ खूब प्रदर्शन हुए और पुतले जलाए गए। यहां तक कि संसद में भी इस मुद्दे को उठाया गया, जहां कहा गया कि डेनेस नस्लवादी हैं। टीम इंडिया के पूर्व कोच और पूर्व भारतीय क्रिकेटर रवि शास्त्री डेनेस के खिलाफ इस प्रदर्शन का चेहरा बने। बाद में सहवाग को छोड़कर सभी खिलाड़ियों की सजा माफ कर दी गई, क्योंकि सहवाग को नियमानुसार अनुशासन का उल्लंघन करने पर दंड तो भुगतना ही पड़ता –

सौरव गांगुली द्वारा सहवाग जैसे नवोदित खिलाड़ी के बचाव में आने का उन्होंने भरपूर सत्कार किया, और उन्होंने ताबड़तोड़ रन बनाने प्रारंभ किए। ऐसी कोई चैंपियनशिप नहीं थी, जहां वे आते ही रन बरसाने प्रारंभ नहीं करते थे। प्रारंभ में ये टेकनीक पूरी तरह सफल नहीं थी, परंतु यही आक्रामकता उनका सिग्नेचर स्टाइल बन गया।

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2004 वाली यादगार पारी

परंतु सबसे यादगार पारी थी 2004 वाली, जब पाकिस्तान दौरे पर सहवाग ने मुल्तान में 309 रनों की यादगार पारी खेली थी। भारत के लिए तिहरा शतक लगाने वाले पहले बल्लेबाज बने थे। सहवाग ने मुल्तान का तिहरा शतक सिर्फ 364 गेंदों में आया था लेकिन 4 साल बाद उन्होंने सबसे तेज ट्रिपल सेंचुरी का विश्व रिकॉर्ड बना दिया।

पाकिस्तान दौरे पर गई टीम इंडिया का पहला टेस्ट मैच मुल्तान में था। उस मैच में सौरव गांगुली की अनुपस्थिति में कार्यवाहक कप्तान राहुल द्रविड़ ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग फैसला किया था। सहवाग उस दिन पूरे पाकिस्तान को दहला दिया। अपने बल्ले से उन्होंने पाकिस्तान के एक-एक गेंदबाजों की खबर ली। शोएब अख्तर जैसे गेंदबाज लाचार नजर आ रहे थे। अपनी 309 रनों की पारी में सहवाग ने 38 चौके और 6 छक्का मारा।

जब सहवाग आउट होते हैं, तो आधे दर्शकों का मूड पहले ही ऑफ हो जाता था, टीवी स्वत: बंद हो जाते। ये कीर्तिमान उनसे पूर्व केवल सचिन और कपिल पाजी ने ही कमाया था, परंतु अब सहवाग भी उस योग्य बन चुके थे। उदाहरण के लिए मार्च 2010 में उन्होंने हैमिल्टन में न्यूजीलैंड के खिलाफ सिर्फ 60 गेंदों पर शतक बनाया था। टेस्ट क्रिकेट में पहले विकेट के लिये सबसे बड़ी साझेदारी का रिकार्ड भी सहवाग के ही नाम है। राहुल द्रविड़ के साथ 410 रन की साझेदारी बना करके वीरू ने कीर्तिमान बनाया था। एकदिवसीय क्रिकेट मैच में उनका सर्वाधिक स्कोर 219 रन है। जो एक विश्व रिकॉर्ड था, जिसे बाद में रोहित शर्मा ने 264 रन बना कर तोड़ा।

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टेस्ट मैच में तिहरा शतक

सहवाग पहले भारतीय खिलाड़ी हैं जिन्होंने टेस्ट मैच में तिहरा शतक जड़ा है। सर डोनाल्ड ब्रेडमैन और ब्रायन लारा के बाद सहवाग दुनिया के तीसरे ऐसे बल्लेबाज हैं जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में दो बार तिहरा शतक बनाने का कीर्तिमान स्थापित किया है। अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में किसी बल्लेबाज द्वारा यह सबसे तेज गति से बनाया तिहरा शतक (319 रन) भी है। तीन सौ उन्निस रन बनाने के लिये उन्होंने सिर्फ़ 278 गेंद ही खेलीं। तीस से ज्यादा औसत के साथ सहवाग का स्ट्राइक रेट दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसके अलावा वह दुनिया के एकमात्र ऐसे क्रिकेट खिलाड़ी हैं जिन्होंने टेस्ट मैचों में दो तिहरे शतक बनाने के साथ एक पारी में पाँच विकेट भी हासिल किये।

“वीरेन्द्र सहवाग भारत का ऐसा बल्लेबाज़ जिससे दुनिया का हर गेंदबाज खौफ खाता है” यह मानना है इमरान ख़ान से लेकर रिचर्ड हेडली और बॉब विलिस के दिल में खौफ पैदा करने वाले विवियन रिचर्डस का।

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दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ युसूफ पठान ने यादगार तूफानी पारी खेलने के बाद पत्रकारों से कहा था “वीरेंद्र सहवाग के बेखौफ अंदाज ने उन्हें इस कदर खेलने के लिए प्रेरित किया।” सहवाग भारतीय टीम को बहुत तेज शुरुआत देते हैं और गेंदबाजों पर शुरू से ही हावी हो जाते हैं। सहवाग अगर अपने फॉर्म में हों तो किसी भी आक्रमण को ध्वस्त करने की क्षमता रखते हैं। सहवाग जब तक क्रीज पर रहते हैं तब तक विरोधियों के माथे पर उनकी क्रीज पर मौजूदगी का खौफ साफ-साफ देखा जा सकता है। ऐसे में सहवाग का दूसरा नाम आक्रामकता होना अपने आप में उनके अद्वितीय कौशल का परिचायक है।

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