वीरांगना रानी दिद्दा के जीते जी जम्मू कश्मीर पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं कर सका गजनवी

दिद्दा इतनी तीक्ष्णबुद्धि की थीं कि वह चंद मिनटों में बाजी पलट दिया करती थी. आज जिस गुरिल्ला वार फेयर पर दुनिया चालाकी से जंग लड़ती है वह इसी रानी की देन है.

रानी दिद्दा

Source- TFI

RANI DIDDA history in Hindi: रानीलक्ष्मी बाई और अहिल्याबाई का नाम तो आप सबने खूब सुना होगा परन्तु क्या आपने “साम्राज्ञी दिद्दा” का नाम सुना है। अगर नहीं सुना है तो आज हम आपको “रानी दिद्दा” (RANI DIDDA) के बारे में बताएंगे जोकि भारतीय इतिहास की एक ऐसी महिला योद्धा थीं, जिन्होंने अपने समय में न केवल कई युद्ध जीते बल्कि लगातार 23 वर्षों तक शासन भी किया। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे साम्राज्ञी दिद्दा, सम्राट ललितादित्य की सच्ची उत्तराधिकारी थी, जिन्होंने 45 मिनट में दुश्मन के 35,000 सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।

कश्मीर, जिसका नाम सुनने के बाद आज लोगों के दिमाग में बम, बंदूक और कट्टरपंथ की छवि कौंध जाती है। परन्तु क्या? आज जो कश्मीर है वह हमेशा से ही ऐसा हुआ करता था। इसका जवाब है- बिल्कुल नहीं। अपितु कश्मीर एक ऐसी भूमि हुआ करती थी जहां रानी दिद्दा (RANI DIDDA) जैसी सशक्त महिला ने 23 वर्षों तक शासन किया और अपने समय के विरोधियों के रातों की नींद उड़ा दी थी। साम्राज्ञी दिद्दा की बात की जाए तो इनके बारे में “कवि कल्हण” ने अपनी पुस्तक “राजतरंगिणी” में बहुत विस्तार से लिखा है।

और पढ़ें: ललितादित्य मुक्तपीड mode activate हो चुका है- अब भारत चीन पर चढ़ाई कर रहा है, और यह अच्छी बात है

रानी दिद्दा (RANI DIDDA) का जीवन 

कल्हण के अनुसार, दिद्दा, राजा सिंहराज की पुत्री थीं और उन्होंने 979 ई. से 1003 ई. तक जम्मू-कश्मीर पर शासन किया था। यही नहीं, दिद्दा की वीरता की बात की जाए तो वो अपने समय की सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक थीं। जिसका उदाहरण अरब आक्रांता महमूद गजनवी है। महमूद गजनवी भारत के बाकी भागों पर आक्रमण कर रहा था परन्तु 1013 ई. तक उसने कश्मीर पर आक्रमण नहीं किया, जबकि दिद्दा की मृत्यु 1003 ईं में ही हो गई थी। इसका अर्थ यह है कि दिद्दा की सेना बहुत शक्तिशाली थी और इसी भय के कारण वह आक्रमण नहीं कर रहा था।

RANI DIDDA के व्यक्तिगत जीवन के बारे में बात की जाए तो 26 वर्ष की आयु में उनका विवाह उत्पल वंश में पर्वगुप्त के बेटे क्षेमगुप्त के साथ हुआ था। क्षेमगुप्त अपने पिता पर्वगुप्त की मृत्यु के बाद 950 ई. में सिंहासन पर बैठे थे परन्तु वह अयोग्य शासक साबित हुए, जिन्हें राज काज में कम शराब पीने और जुआ खेलने में अधिक रूचि थी। इसलिए राजगद्दी पर कुछ समय के बाद रानी साम्राज्ञी दिद्दा के हाथ में चली जाती है और 958 ई. में क्षेमगुप्त की मृत्यु होने के बाद पूर्णरूप से राज काज का संचालन दिद्दा द्वारा ही चलाया जाता है।

परन्तु रानी के सिंहासन पर बैठने के कारण मंत्री और कश्मीर के क्षेत्रीय राजा खुश नहीं होते हैं और रानी के खिलाफ विद्रोह कर देते हैं। जिसके कारण रानी को कई छोटे-बड़े युद्धों का सामना करना पड़ता है। रानी युद्ध लड़ने के बाद अब और अधिक शक्तिशाली हो जाती हैं और अपने राजकाज की ओर पूर्ण रूप से ध्यान देने लगती हैं। रानी दिद्दा (RANI DIDDA) ने सिर्फ युद्ध ही नहीं लड़े अपितु अपने शासनकाल के दौरान तांबे और सोने के सिक्कों की भी शुरुआत की थी, जिन पर लक्ष्मी जी की प्रतिमा बनी होती थी। साथ ही कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए दिद्दा ने कश्मीर में 64 से अधिक मंदिरों का निर्माण भी करवाया था, जिसमें से एक शिव मंदिर दिदारा मठ के नाम से जाना जाता था। हालांकि, आज के समय यह मंदिर मौजूद नहीं है।

इतिहास के पन्नों में इन्हें चुड़ैल रानी का दर्जा दिया गया

RANI DIDDA इतनी तीक्ष्णबुद्दि थी कि वह चंद मिनटों में बाजी पलट दिया करती थी। आज जिस गुरिल्ला वार फेयर पर दुनिया चालाकी से जंग लड़ती है वह इसी रानी की देन है। चुड़ैल रानी के इतिहास को खंगालने पर पता चलता है कि उन्होंने 35000 सेना की टुकड़ी के सामने 500 की छोटी सी सेना की सहायता से 45 मिनट में युद्ध जीत लिया। इतिहास के पन्नों में इन्हें चुड़ैल रानी का दर्जा इसलिए दिया गया क्योंकि उनकी दिमागी ताकत के आगे अच्छे-अच्छे राजा नतमस्तक रहे थे। जब राजा महाराजा हार जाते तो अपनी मर्दानगी छुपाने के लिए दिद्दा को चुड़ैल कहना शुरू किया और फिर दिद्दा चुड़ैल रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई।

ज्ञात हो कि जब भी कश्मीर के वीर शासकों की बात होती है तो ललितादित्य का नाम सबसे ऊपर आता है। कश्मीर में ललितादित्य मुक्तपीड, कार्कोट राजवंश के एक हिन्दू कायस्थ सम्राट थे और उन्होंने 724 ई. से 761 ई. तक शासन किया था। यही नहीं, उन्होंने अपने साम्राज्य का मध्य एशिया से लेकर बंगाल तक विस्तार किया था। उसके बाद कश्मीर में अगर कोई शक्तिशाली शासनकर्ता हुआ तो वो रानी दिद्दा ही थीं औऱ कोई अन्य नहीं। एक प्रकार से कहा जाए तो रानी दिद्दा (RANI DIDDA) को वीरता के संबंध में ललितादित्य मुक्तापीड के समकक्ष ही माना जाना चाहिए। यदि साम्राज्ञी दिद्दा के बारे में संक्षेप में कहा जाए तो वो एक उच्च कोटि की रानी थीं, जिन्होंने न केवल अपने शासनकाल के दौरान राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त किया बल्कि कला, संस्कृति के निर्माण क्षेत्र में भी अपना अहम योगदान दिया था।

और पढ़ें: ललितादित्य मुक्तपीड – जिन्होंने तुर्की और अरबी आक्रांताओं को उनके राज्य में घुसकर मारा!

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.

Exit mobile version