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अमर चंद बांठिया- 1857 की क्रांति के ‘भामाशाह’ के बारे में कितना जानते हैं आप?

वीर अमर चंद बांठिया ने कभी कोई हथियार नहीं उठाया, लेकिन फिर भी अंग्रेज इस योद्धा से इतने डर गए कि इन्हें सरेआम चौराहे पर फांसी दी गई थी। इतिहास की किताबों में इनकी कहानी कभी बताई ही नहीं गई।

TFI Desk द्वारा TFI Desk
11 November 2022
in इतिहास
Amar chand Banthia

Source- TFI

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देश की आजादी हेतु संघर्ष में हमारे वीरों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व अपर्ण कर दिया और हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। इनमें कई योद्धाओं ने अपने शस्त्रों से दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए तो वही कई योद्धाओं ने बिना शस्त्र उठाए ही अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए। उन्हीं में से एक थे अमर चंद बांठिया (Amarchand Banthiya), जिन्होंने गोरों के खिलाफ अनोखी लड़ाई लड़ी औऱ अंग्रेजों के खिलाफ उठी पहली क्रांति यानी 1857 की क्रांति के ‘भामाशाह’ बन गए। लेकिन इस महान वीर के बारे में इतिहास की किताबों में हमें बहुत ज्यादा कुछ बताया नहीं गया है, जबकि ऐसे योद्धाओं के कारण ही भारत को आजादी मिल सकी। अमर चंद बांठिया जैसे लोग शहीद तो हुए लेकिन वो गुमनाम हो गए या यह कहा जा सकता है कि उन्हें गुमनाम कर दिया गया। इस लेख में हम अमर चंद बांठिया के बारे में आपको विस्तार से बताएंगे।

और पढ़ें: सरदार पटेल और वीपी मेनन ने कैसे रचा आधुनिक भारत का इतिहास?

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अमर चंद बांठिया का योगदान

अमर चंद बांठिया जैन समाज से आते थे। वो एक व्यापारिक परिवार से थे। उनका जन्म राजस्थान के बीकानेर में हुआ था। कारोबार में घाटा होने के कारण वह परिवार के साथ ग्वालियर आ गए थे। उस समय ग्वालियर पर सिंधिया शासकों का राज था। उसी दौरान बांठिया की ईमानदारी और उनके आर्थिक प्रबंधन की समझ की चर्चा ग्वालियर के सिंधिया घराने में हुई और सिंधिया राजघराने की ओर से उन्हें सिंधिया रियासत का खजांची बना दिया गया। ये ज़िम्मेदारी मिलने के बाद बांठिया बड़ी लगन और सूझ-बूझ के साथ राजकोष का संचालन करने लगे। सिंधिया घराने के बेशकीमती ख़ज़ाने के रख-रखाव और लेन-देन का जिम्मेदारी अमर चंद बांठिया (Amarchand Banthiya) की थी और वो अपनी ज़िम्मेदारी बड़ी ही वफ़ादारी से निभा रहे थे।

Amarchand Banthia
Source- Google

बांठिया ने 1857 की क्रांति में अतुलनीय योगदान दिया था। उन्होंने महारानी लक्ष्मीबाई को संकट की घड़ी में बड़ा सहयोग दिया था। दरअसल, 1857 की क्रांति के दौरान महारानी लक्ष्मीबाई अपने सेनानायक राव साहब, तात्या टोपे और रानी बैजाबाई के साथ अंग्रेजों के खिलाफ भयंकर युद्ध लड़ रही थीं। लेकिन दूसरी ओर उनके सैनिकों को कई माह से वेतन नहीं मिला था, जिससे उन्हें कई तरह की कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था और स्थिति बेहद दयनीय बनी हुई थी। इसी दौरान उन्होंने महारानी लक्ष्मीबाई की सेना की सहायता हेतु ग्वालियर रियासत का खजाना खोल दिया। उस भयंकर संकट के समय में अमर चंद बांठिया क्रांतिकारी सैनिकों के लिए ‘भगवान’ बनकर आए और उनकी आर्थिक मदद की।

आपकों बता दें कि सिंधिया वंश के राजाओं ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ कई लड़ाईयां लड़ी थीं लेकिन इस क्रांति में वे निष्पक्ष रहे और युद्ध में सिंधिया वंश के राजा, महारानी लक्ष्मीबाई की सहायता करने के बजाय अंग्रेज़ों से मिल गए। महाराजा जीवाजीराव सिंधिया भले ही अंग्रेज़ों से मिले हुए थे लेकिन उनकी सेना में अंदर ही अंदर क्रांति की आग सुलग रही थी। जैसे ही क्रांति की चिंगारी ग्वालियर सैन्य दल पर पड़ी तो सिंधिया के सैनिकों ने बगावत शुरु कर दी और उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में कंधे से कंधा मिलाकर अपना योगदान दिया। 18 जून 1858 को महारानी लक्ष्मीबाई ने युद्ध में ऐतहासिक बलिदान दिया और हमेशा के लिए अमर हो गईं।

हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए बांठिया

बाद में अमर चंद बांठिया के द्वारा रानी लक्ष्मीबाई के सहयोग को अंग्रेज सरकार ने राजद्रोह माना। जिसके बाद अंग्रेजों ने सर्राफा बाजार में स्थित उन्हें एक नीम के पेड़ से सरेआम फांसी पर लटका दिया। शहीद अमर चंद बांठिया ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को अपने गले से लगा लिया। शहीद अमर चंद बांठिया (Amarchand Banthiya) को अपने किये पर कोई पछतावा नही था। ग्वालियर के सर्राफा बाजार का यह पेड़ आज भी शहीद अमर चंद बांठिया की शहादत की गवाही देता है।

अमरचंद बांठिया
Source- Google

अमर चंद बांठिया (Amarchand Banthiya) ने 1857 की क्रांति में अपनी जान की बाजी लगाकर क्रांतिकारियों की मदद की और अपना बलिदान दे दिया। बेशक इस युद्ध में अमर चंद बांठिया ने कोई शस्त्र ना उठाया हो लेकिन उनके इस बलिदान को किसी से कम नहीं आंका जा सकता। अमर चंद बांठिया को पता था कि जो कुछ वो कर रहे हैं, उसका क्या अंजाम होगा। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए क्रांतिकारियों की हर मुमकिन मदद की। बांठिया की मदद का ही नतीजा था कि क्रांतिकारियों की सेना फिर नए जोश और नए जज़्बे के साथ मजबूती से अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ने के लिए मैदान में डटकर खड़ी हो गई। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में असंख्य लोगों ने अपनी कुर्बानियां दी हैं लेकिन इनमें से बहुत से लोग अमर चंद बांठिया की तरह ही गुमनाम हो गए, जिन्हें हमें जानने की जरूरत है।

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