चंद्रकांता- वह सीरियल जिसे बंद करने के लिए स्वयं दूरदर्शन को कदम उठाने पड़े

चंद्रकांता ने मूल पुस्तक की भावना को न केवल नष्ट किया अपितु उसका ऐसा उपहास उड़ाया कि दूरदर्शन को इस धारावाहिक को बंद कराने का निर्णय लेना पड़ा।

Chandrakanta – the great fantasy novel by Devki Nandan Khatri, that Neerja Guleri destroyed in its TV adaptation

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कल्पना कीजिए कि आपके हाथ में एक ऐसी पुस्तक है जिसका रूपांतरण करने से आप विश्व के सबसे सुप्रसिद्ध क्रियेटर बन सकते हैं। पुस्तक भी तो ऐसी है, जिसे कहीं न कहीं टीपकर जेके रोलिंग मैडम आज ‘हैरी पॉटर’ के माध्यम से नोट छाप रही हैं। परंतु उसके रूपांतरण के नाम पर आपको थमा दिया जाए ऐसा उत्पाद जिसे देख तो अयान मुखर्जी भी बोले, ब्रो ये तो दिमाग का दही करने में मेरा भी बाप निकला। कुछ तो बात रही होगी चंद्रकांता के टीवी संस्करण में जिसे देखकर टीआरपी को भाव भी न देने वाले दूरदर्शन ने भी इनके निर्माताओं से बोला ओ बस कर भाई, बंद कर अपना टीन टपाड़ा।

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देवकीनंदन खत्री का चंद्रकांता उपन्यास

हिन्दी साहित्य में रुचि रखते हो और चंद्रकांता नहीं पढ़े हो तो क्या खाक साहित्य पढ़े हो? देवकीनंदन खत्री द्वारा रचित ये उपन्यास 1888 में प्रकाशित हुआ और इतना लोकप्रिय हुआ कि इसके कई भाषाओं में अनुवाद केवल इसलिए किया गया कि जानें आखिर चंद्रकांता थी कौन?

मूल कथा है विजयगढ़ की एक राजकुमारी चंद्रकांता से जिसे प्रेम एक शत्रु राजघराने नवगढ़ के राजकुमार वीरेंद्र विक्रम सिंह से होता है। अब ये शत्रुता कैसे हुई चंद्रकांता को पाने के लिए राजकुमार को क्या यत्न करने पड़ते हैं और क्या क्या बाधाएं उत्पन्न होंगी इसके लिए आपको उपन्यास पढ़ना होगा।

इस उपन्यास में गुप्तचरी, अभियांत्रिकी माने इंजीनियरिंग और फांतासी का ऐसा गजब का मेल है कि आपको लगेगा कहीं लॉर्ड ऑफ द रिंग्स और हैरी पॉटर इन्हीं से तो प्रेरित नहीं? हम मजाक नहीं कर रहे, जिस प्रकार से वीरेंद्र विक्रम का सहायक गुप्तचर तेज सिंह शत्रुओं के दांवों को ध्वस्त करता है, वो अपने आप में आपको रोमांच से भर देगा और जिस प्रकार से चंद्रकांता को बचाने हेतु वीरेंद्र विक्रम को अनेक बाधाओं से गुजरना होता है वो औरों के लिए ‘तिलिस्म’ होगा, परंतु ध्यान से देखें तो है तो वे बेजोड़ शिल्पकारी एवं अभियांत्रिकी का अद्भुत प्रदर्शन।

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चंद्रकांता का टीवी संस्करण

परंतु क्या चंद्रकांता का टीवी संस्करण इन मायनों पर खड़ा उतरा? बिल्कुल नहीं, उल्टे इसने मूल उपन्यास का उपहास उड़ाने का कोई प्रयास अधूरा नहीं छोड़ा। उदाहरण के लिए मूल संस्करण में क्रूर सिंह एक चुगलखोर था, जो बस इधर की बात उधर करता था और उसके अय्यार उसके साथ इसलिए थे क्योंकि वह नवगढ़ और विजयगढ़ को ध्वस्त कर उनका इस्लामीकरण करा देता। जी हां, ऐसी बातें मूल उपन्यास में बिना लाग लपेट लिखी गई है और देवकीनंदन खत्री ने तो मुस्लिम तुष्टीकरण को ऐसे निकाल फेंका, जैसे चाय में से मक्खी।

परंतु टीवी संस्करण में क्रूर सिंह को ऐसा दिखाया, जैसे वो कितनी बड़ी तोप है। इतना ही नहीं उसे मसखरा भी बनाया गया ताकि उसका महत्व बढ़ जाए। हमें अखिलेन्द्र मिश्रा के अभिनय से कोई बीर नहीं, परंतु कम से कम स्क्रिप्ट पर तो ध्यान दे देते। स्क्रिप्ट से स्मरण हुआ मुकेश खन्ना जी क्या कर रहे थे? आज जो तुष्टीकरण के विरुद्ध हैं, यहां सांप सूंघ गया था जब जांबाज जैसा किरदार निभाया, जो मूल उपन्यास का भाग भी नहीं था। जब भी आते थे पीछे आयतें बजवाते थे और स्वयं बोलते थे, “या अली, मदद!” ये कौन से राष्ट्र सेवा है बंधु?

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और तेज सिंह, बंधु तेज सिंह अगर वास्तव में एक जीते जागते मनुष्य होते तो दूरदर्शन से पहले वे नीरजा गुलेरी के घर पर तलवार लेकर दौड़ पड़ते। चंद्रकांता में उनका महत्व सर्वोच्च था, परंतु टीवी सीरियल में उन्हें कोई खास महत्व दिया ही नहीं गया। उनसे ज्यादा सीन तो शायद नागार्जुन को  ब्रह्मास्त्र में मिले होंगे और यह चंद्रकांता प्रेमियों के लिए मजाक का विषय नहीं था। शायद इसीलिए जन विरोध को देखते हुए 1996 में इस सीरियल को मध्य में ही बंद करना पड़ा। नीरजा गुलेरी ने कोर्ट के चक्कर भी लगाए परंतु हाथ कुछ न लगा। जब बोए पेड़ बबूल के, तो आम कहां से लोगे?

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