समय-समय पर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए सरकार भिन्न-भिन्न प्रकार की योजनाएं लेकर आती है। इसी के तहत साल 2019 के लोकसभा चुनाव के होने से पहले ही केंद्र सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की थी। इसके लिए संविधान में 103वां संशोधन भी किया गया था। तब से ही इस आरक्षण को लेकर लोगों की अलग-अलग राय है और इसे लेकर बहुत विवाद भी छिड़ता रहा है। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को रखने की बात की पुष्टि कर दी थी।
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कमजोर वर्गों को आरक्षण
EWS का अर्थ है आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण प्रदान करना। माना कि सरकार के द्वारा सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देने का निर्णय बहुत सराहनीय है लेकिन अगर इसके क्रियान्वयन की बात करें तो शायद वो इतना अच्छा नहीं है। उदाहरण के लिए EWS सर्टिफिकेट के लिए वही लोग आवेदन कर सकते हैं, जिनकी वार्षिक आय 8 लाख या फिर उससे कम हो।
इस मामले की सुनवाई में पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ ने EWS आरक्षण के पक्ष में 3:2 के अंतर से अपना निर्णय सुनाया था। इस आरक्षण की बात करें तो ये सिर्फ जनरल कैटेगरी यानी सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही मान्य है। इस आरक्षण से SC, ST, OBC को स्थान नहीं दिया गया है। अभी हाल के एक सर्वेक्षण की माने तो भारत में लगभग 69 प्रतिशत परिवार वित्तीय असुरक्षा और भेदभाव से ग्रसित है। इन परिवारों की औसत आय 23,000 रुपये प्रति माह है।
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आय 15,000 रुपये प्रति माह से भी कम
टीवी9 नेटवर्क के द्वारा प्रवर्तित Money9 द्वारा जारी एक बयान में बताया गया है कि भारत का पर्सनल फाइनेंस पल्स भारतीय परिवारों की आय, बचत, निवेश और खर्च का मानचित्रण करता है। “सर्वेक्षण से इस बात का पता चलता है कि 4.2 व्यक्तियों के एक भारतीय परिवार की औसत आय प्रति माह 23,000 रुपये की है। Money9 वित्तीय सुरक्षा सूचकांक सर्वेक्षण की माने तो 46 प्रतिशत से अधिक भारतीय परिवारों की आय 15,000 रुपये प्रति माह से भी कम है। वहीं “केवल 3 प्रतिशत भारतीय परिवारों का जीवन स्तर विलासितापूर्ण है और उनमें से अधिकांश उच्च आय वर्ग के हैं।”
वहीं अभी हाल ही में आई विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 की माने तो भारत में असमानता की दर बहुत अधिक निराशाजनक और चिंताजनक है। इस रिपोर्ट के अनुसार, देश के शीर्ष एक प्रतिशत लोगों के पास 22 % की आय है, संपन्न 10 % लोगों के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 % है। वहीं दूसरी ओर, 50 % जिसका मतलब है कुल आबादी के आधे लोगों के पास 13% की आमदनी है। इस रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017-18, 2018-19 और 2019-20 तक देश की कुल आय में शीर्ष 1 प्रतिशत आबादी का हिस्सा 6.14 प्रतिशत से बढ़कर 6.82 प्रतिशत तक हुआ है, वहीं शीर्ष 10 प्रतिशत की आय की भागीदारी 2017-18 में 35.18 प्रतिशत से कम होकर 2019-20 में 32.52 % तक ही रह गयी है। नीचे के 10 प्रतिशत में लगभग 1 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली है। वैसे तो सरकार ने इस रिपोर्ट को सिरे से नाकारा दिया है लेकिन कोरोना महामारी के बाद से जिस तरह से देश में बेरोजगारी की समस्या आई है वह ये रिपोर्ट मानने पर मजबूर करती है।
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EWS आरक्षण में आय सीमा अधिक है
वहीं अगर बात करें EWS की तो इसके सर्टिफिकेट के लिए वही लोग आवेदन कर सकते हैं जिनकी वार्षिक आय 8 लाख या फिर उससे कम हो। अगर किसी भी माध्यम वर्ग की आय की बात करें तो वो वार्षिक आय लगभग 2.5 लाख से 3 लाख के बीच में होती है। वहीं इसकी सीमा वार्षिक 8 लाख रुपये की आय को रखा गया है। जिससे आरक्षण के लाभ के लिए आवेदन करने वालों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाएगी। जिससे शायद सभी सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाएगा।
वहीं अगर इसे दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो वार्षिक 8 लाख की आय होने पर व्यक्ति शायद अपनी और अपने परिवार की ठीक तरह से देख रेख कर सकता है। वहीं वार्षिक 2.5 लाख से 3 लाख के बीच की आय कमाने वाला व्यक्ति शायद ऐसा न कर पाए। उदाहरण के लिए मान लीजिये कि एक व्यक्ति जिसकी वार्षिक आय 3 लाख रुपये है, वहीं एक दूसरा व्यक्ति है जिसकी वार्षिक आय 8 लाख रुपये है और दोनों ही इसके लिए आवेदन करते हैं तो इस आर्थिक रूप से कमजोर वाला आरक्षण किसे मिलना चाहिए? आपका जवाब होगा जिसकी वार्षिक आय 3 लाख रुपये है लेकिन अगर कहीं इस आरक्षण का लाभ उस 8 लाख की वार्षिक आय वाले व्यक्ति को मिल जाता है तब तो यह आरक्षण ही व्यर्थ हो जाएगा। क्योंकि इस आरक्षण का लक्ष्य ही है आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को लाभ प्रदान करना।
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आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देने का सरकार का निर्णय बहुत अच्छा है लेकिन अगर इसके क्रियान्वयन पर भी ठीक से ध्यान दिया जाए यह और अच्छा हो जाएगा और इसका लाभ सही व्यक्ति तक पहुंच पाएगा।
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