संयुक्त राष्ट्र से लेकर G20 तक, पीएम मोदी ने कुछ इस तरह रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख को स्पष्ट रखा

हर बार की तरह इस बार भी भारत ने बिना किसी के दबाव में आए और बीच के मार्ग वाली नीति को अपनाते हुए जी-20 सम्मेलन में शांति वार्ता की बात कह दी है।

रूस यूक्रेन युद्ध

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रूस और यूक्रेन युद्ध इसी साल फरवरी में शुरू हो गया था और इस तरह जल्द ही इस युद्ध को होते हुए एक वर्ष हो जाएगा। लंबे समय से चल रहा यह युद्ध शांत नहीं हो पा रहा है बल्कि आए दिन युद्ध से जुड़ी कोई न कोई नई सूचना आती ही रहती है। इन सब के बीच यदि भारत की बात करें तो विश्व में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरते जा रहे भारत के रूस के साथ बहुत पुराने, अटूट और गहरे संबंध हैं। ऐसे में अमेरिका युद्ध की शुरुआत से ही यूक्रेन के पक्ष में बोलने और रूस के लिए कड़वे रुख को अपनाने के लिए भारत पर दवाब बनाता रहा है लेकिन अब तक उसकी दाल नहीं गल सकी है।

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भारत का रुख हमेशा स्पष्ट रहा है

वहीं दूसरी तरफ भारत ने अपना एक अलग ही रास्ता निकाल लिया जिस पर चलकर वह लगातार आगे की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में रूस-यूक्रेन युद्ध को यदि हम भारत के परिप्रेक्ष्य में देखेंगे तो जान पाएंगे कि भारत ने किस तरह संयुक्त राष्ट्र से लेकर जी-20 तक रूस-यूक्रेन युद्ध पर अपना पक्ष हमेशा स्पष्ट रखा है।

दरअसल, भारत-रूस के संबंध सोवियत संघ (USSR) के समय से ही मित्रतापूर्ण रहे हैं और स्वतंत्रता के बाद भी भारत रूस की कई वस्तुओं का न केवल आयातक रहा बल्कि समाजिक रूप से भी उसके साथ जुड़ा रहा। उदाहरण के रूप में देखें तो जब भारत ने पाकिस्तान के साथ 1971 का युद्ध लड़ा था तब रूस ही वह देश था जिसने भारत की सहायता की थी। इसीलिए जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ तो भारत ने समय की मांग को देखते हुए किसी भी पक्ष में न जाने का फैसला किया और वैसे ही निर्णय लिए जो भारत के हित में हों।

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भारत ने अब तक रूस के बारे में क्या कहा

रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत होने से पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद(UNSC) में एक बैठक हुई थी जिसमें भारत को भी बुलाया गया था। वहीं भारत ने बीच का मार्ग निकालते हुए बैठक में वोटिंग न करने का फैसला किया था और कहा था कि अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए रचनात्मक कूटनीति की आवश्यकता है। ध्यान देना होगा कि यह तो एक उदाहरण है जब भारत रूस-यूक्रेन यूद्ध को लेकर अमेरिका के दवाब में आया ही नहीं और अपनी सूझबूझ से फैसला लिया था। इसके अलावा हाल ही में आयोजित हुए जी-20 सम्मेलन का उदाहरण भी हमारे सामने है जिसमें भारत ने बीच के मार्ग वाली नीति को अपनाते हुए शांति वार्ता की बात कह दी है।

अभी कुछ दिनों पहले ही अमेरिकी चैनल CNN ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी का इंटरव्यू लिया था जिसमें उनसे भारत में रूस से होने वाले तेल आयात को लेकर सवाल पूछे गए थे। उनसे पूछा गया कि भारत रूस से सस्ता होने की वजह से तेल निर्यात करता है। पुरी ने स्पष्ट जवाब देते हुए कहा था कि रूस से सिर्फ भारत ही तेल आयात नहीं करता बल्कि यूरोपीय देश भी भारत से कई गुना ज्यादा तेल आयात करते हैं। ऐसे कड़े जवाब केवल पुरी के ही नहीं है बल्कि भारत के विदेश मंत्री तो आए दिन पश्चिमी देशों के पटल पर कड़े जवाब देते ही रहते हैं।

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जी-20 का अध्यक्ष बन चुका है भारत

वर्तमान स्थिति को देखें तो इंडोनेशिया के बाली में जी-20 देशों की शिखर बैठक 16 नवबंर को आयोजित हुई थी और इसमें भारत को जी-20 के अध्यक्ष के रूप में चुन लिया गया है। अब सवाल यह है कि इसका रूस-यूक्रेन से क्या संबंध है? दरअसल, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे सभी प्रभावशाली देश इसके सदस्य हैं। ऐसे में आने वाले समय में भारत रूस-यूक्रेन यु्द्ध को शांत करवाने में एक पुल का भी काम कर सकता है। ऐसी उम्मीद इसलिए जताई जा रही है क्योंकि इस समय पश्चिमी देशों से लेकर रूस तक सभी से भारत के अच्छे संबंध हैं और सबको भारत की आवश्यकता है।

दूसरी तरफ रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार यह भारत के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। रूस-यूक्रेन यु्द्ध के बाद पूरी दुनिया दो धूव्रों में बंट चुकी है जिसमें एक अमेरिका के साथ है और दूसरा रूस के साथ है। वहीं भारत की स्थिति इस यु्द्ध को लेकर कुछ और ही है।

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भारत अब एक वैश्विक महाशक्ति है

वैश्विक राजनीति में एक समय भारत को दरकिनार करके देखा जाता था। दुनिया के कथित शक्तिशाली देशों का मानना था कि भारत अपनी स्वतंत्र वैश्विक कूटनीति बनाने में सक्षम नहीं है क्योंकि उसके पास जरूरी संसाधनों की भारी कमी है। वहीं रूस यूक्रेन युद्ध के मामले में भारत ने अपने रुख से दुनिया की सोच ही बदल दी है। इसका नतीजा यह है कि भारत को अब एक मुख्य वैश्विक महाशक्ति के रूप में देखा जा रहा है।

एक तरफ अमेरिका के साथ भी भारत के संबंध अच्छे हैं और दूसरी तरफ रूस तो है ही पुराना मित्र और ऐसे में फैसला लेना बड़ा चुनौतीपूर्ण है। परन्तु भारत ने इस धुव्रीकरण के जाल में न फंसते हुए अपने बीच के मार्ग वाली नीति अपनाई है और उसी पर निरंतर चल भी रहा है।

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