सनातन संस्कृति में वैसे तो सभी धर्म ग्रंथ अद्भुत, अतुलनीय और पूजनीय हैं परंतु भगवान श्रीराम की जीवन गाथा “रामायण” की बात ही कुछ अलग हैं। माना जाता हैं कि रामायण का पाठ करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति स्थापित होती हैं। इसके साथ ही अगर रामायण के पात्रों को साहित्यिक दृष्टि से देखा जाए तो प्रत्येक पात्र अपने-आप में रहस्यों से भरे हुए हैं। यह इतने रहस्यमयी हैं कि प्रत्येक पात्र के ऊपर एक-एक पुस्तक अलग से लिखी जा सकती है। आज हम रामायण के शक्तिशाली और बुद्धिमान पात्र महाबली हनुमान जी के बारे में बात करने जा रहे हैं।
हनुमान जी एक ऐसे इष्ट हैं जो न केवल बलशाली हैं अपितु अपने चातुर्य के लिए भी जाने जाते हैं। परंतु आज के समय में हनुमान जी छवि सिर्फ एक बलशाली देवता के रूप में स्थापित कर दी गई है। जबकि वे बलवान तो थे ही परंतु अपने बल का कहां और कैसे उपयोग करना है वे बहुत अच्छे से जानते थे। यही नहीं हनुमान जी को एक प्रकार से अहिंसक भी कहा जा सकता है क्योंकि वे अति होने पर ही हिंसा करते थे जोकि स्वभाविक है।
और पढ़े: सच्ची रामायण: शबरी के बेर में भी घुसाया गया एजेंडा, सच कभी आपके सामने आने ही नहीं दिया गया
रामायण में हनुमान जी के चातुर्य का कई स्थानों पर उल्लेख भी मिलता है। उदाहरण के लिए जब ऋषिमुख पर्वत पर भगवान राम और लक्ष्मण धनुष के साथ प्रवेश करते हैं तो सुग्रीव उन दोनों की भुजाओं और धनुष को देखकर भयभीत हो जाते हैं और सोचने लगते हैं ये हमें मारने के लिए आए हैं इसलिए इनसे या तो युद्ध लड़ना होगा या फिर इस पर्वत को छोड़कर भागना होगा। परंतु इसके बाद हनुमान जी कहते हैं कि पहले इनके बारे में पता कर लिया जाए कि ये दोनों इस पर्वत पर क्यों आए हैं उसके बाद कुछ निर्णय लिया जाएगा।
हनुमान जी एक तपस्वी का वेश धारण कर लक्ष्मण जी के समीप जाते हैं और उनसे बात करते हैं। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि हनुमान जी ने तपस्वी का ही वेश क्यों धारण किया किसी और का भी वेश धारण कर सकते थे। इसके पीछे का कारण है कि उस समय में तपस्वियों या ऋषियों से कोई झूठ नहीं बोलता था इसलिए हनुमान जी ने भगवान राम और लक्ष्मण का ऋषिमुख पर्वत पर आने का उद्देश्य जानने के लिए तपस्वी का रूप धारण किया। इस कथा को वाल्मीकि रामायण के इस श्लोक में प्रदर्शित किया गया है-
कपि रूपम् परित्यज्य हनुमान् मारुतात्मजः |
भिक्षु रूपम् ततो भेजे शठबुद्धितया कपिः ||
अर्थात् हनुमान जी कपि यानी बंदर का वेश त्याग एक तपस्वी का वेश धारण कर लक्ष्मण के पास उनसे बात करने के लिए जाते हैं।
और पढ़े: सच्ची रामायण- 6: क्या सच में लक्ष्मण जी ने ली थी रावण से दीक्षा ?
इसके बाद भगवान राम और लक्ष्मण से बहुत समय तक हनुमान जी का संवाद चलता है और इस संवाद में हनुमान जी वेदों तक की बात करते हैं। जिसके बाद लक्ष्मण जी कहते हैं-
न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः |
न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् ||
अर्थात् तुम तीनों वेदों के बारे में बात कर रहे हो कोई सामान्य व्यक्ति तो हो नहीं। कौन हो तुम?
अब ये तो हुई ऋषिमुख पर्वत की बात, जहां कई स्थानों पर हनुमान जी का चातुर्य देखने को मिलता है। इसके बाद रामायण के लंका कांड में हमें चातुर्य देखने के लिए मिलता है जब वे रावण की लंका को देखने के लिए जाते हैं। परंतु चातुर्य के इतने प्रमाणों को देखने के बाद भी तथाकथित बुद्धिजीवी लोग कहते हैं कि हनुमान जी बुद्धिमान नहीं थे, क्योंकि संजीवनी बूटी लाने के लिए उन्होंने द्रोणागिरी पर्वत को ही पूरा उठा लिया था। इसलिए इस बात पर बुद्धजीवियों से कहना चाहेंगे कि हनुमान जी के पास समय का अभाव था और वे पेशे से कोई वैद्य नहीं थे इसलिए उन्होंने अपने बल का प्रयोग सही स्थान किया और द्रोणागिरी पर्वत को उठा लिया। इससे बड़ा चातुर्य का प्रमाण क्या हो सकता है।
रामचरित मानस की रचना करने वाले तुलसीदास ने भी लिखा है कि-
विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर।
हनुमान जी के चातुर्य होने पर किसी भी प्रकार की कोई शंका नहीं होनी चाहिए। क्योंकि वाल्मीकि रामायण से लेकर रामचरित मानस तक सभी ग्रथों में हनुमान जी को बलवान होने के साथ-साथ बुद्धिमान होने के भी प्रमाण मिलते हैं।
और पढ़े: सच्ची रामायण-4: रावण कोई साहसी योद्धा नहीं था बल्कि एक कायर था जो सभी से मार खाता था
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।