अगर आपको कभी पता चले कि आप एक सांस्कृतिक धरोहर से परिचित हैं, जहां आप बचपन में विचरण किया करते थे परंतु शनै शनै वह एक विकृत रूप में परिवर्तित हो गया क्योंकि कुछ लोग उसे अपने मजहब का प्रतीक मानते हैं, तो आप क्या करेंगे? अगर आप विरोध करेंगे तो हो सकता है कि कुछ लोग आपका समर्थन करने के बजाए आपको अल्पसंख्यक विरोधी बताने में लग जाएंगे। जी हां, वर्तमान भारत में स्थिति यहीं है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे हमारे ऐतिहासिक धरोहर और हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत किसी की निजी संपत्ति नहीं है और वह मजार आदि से काफी ऊपर है।
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यहां समझिए क्या है मामला?
हाल ही में एक महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी निर्णय के जरिए ASI, सासाराम में मौर्य साम्राज्य से जुड़े एक महत्वपूर्ण शिलालेख को कट्टरपंथी इस्लामिस्टों से पुनः प्राप्त करने में सफल रहा। बिहार के सासाराम में कट्टरपंथियों द्वारा सम्राट अशोक के लगभग 2300 वर्ष पुराने शिलालेख पर कब्जा कर, उसे मजार बनाने के मामले में एक नई जानकारी सामने आई है। मंगलवार (29 नवंबर 2022) को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा, “सम्राट अशोक के शिलालेखों का लंबे समय तक अतिक्रमण किया गया। अब इस जगह की चाबी, जो एक संरक्षित स्मारक है, जिला अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद ASI के अधिकारियों को सौंप दी गई है।”
Emperor Asokan’s Minor Rock Edict at Sasaram in Rohtas, Bihar was encroached for long.
The key of the site, which is a protected monument, was handed over to officials of @ASIGoI after intervention of district authorities. pic.twitter.com/mDS8MpyBO2
— Archaeological Survey of India (@ASIGoI) November 29, 2022
इतना ही नहीं, ये भी बताया गया कि सासाराम (232 या 231 ईसा पूर्व) में मिले शिलालेख में ब्राह्मी लिपि में आठ पंक्तियां हैं। शिलालेख का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है। शिलालेखों में संभवतः बुद्ध की मृत्यु का उल्लेख करने वाली एक तिथि भी शामिल है लेकिन इसकी कोई ठोस जानकारी अभी तक नहीं मिली है।
मालूम हो कि रोहतास की चंदन पहाड़ी में स्थित महान मौर्य सम्राट अशोक के एक ऐतिहासिक शिलालेख पर मजार बना दी गई थी। पूरे देश में अशोक के ऐसे आठ शिलालेख हैं, जिनमें बिहार में केवल एक ही है। इस शिलालेख पर चूने की पोताई करवाकर चादर चढ़ा दी गई थी। इसके बाद से इसे सूफी संत की मजार घोषित कर सालाना ‘उर्स’ का आयोजन किया जा रहा था। यही नहीं, शिलालेख की घेराबंदी करने के बाद कट्टरपंथियों द्वारा उसके गेट पर ताला लगाकर रखा जा रहा था।
कई जगहों पर देखने को मिल चुका है यह मामला
अब ये तो हुई अशोक के शिलालेख की बात परंतु क्या आपको पता है कि इनके शिलालेख के अतिक्रमण के अतिरिक्त ऐसे कई धरोहर भी हैं, जिनपर या तो इस्लामिस्टों ने कब्जा जमाया हुआ है या फिर किसी अन्य असामाजिक तत्व ने अपना आधिपत्य स्थापित किया हुआ है। उदाहरण के लिए हाल ही में पश्चिम बंगाल में रवीन्द्रनाथ टैगोर के पैतृक संपत्ति पर कब्जे की खबर सामने आई थी। दरअसल, सत्ताधारी टीएमसी ने टैगोर की पैतृक संपत्ति पर कब्जा कर अपना ऑफिस तैयार कर लिया था, जिसे लेकर कोर्ट ने उसे फटकार भी लगाई थी।
अभी तो हमने राम जन्मभूमि परिसर और ज्ञानवापी परिसर पर प्रकाश भी नहीं डाला है अन्यथा ये विषय एक अलग ही मोड़ ले लेता। परंतु हमारी ऐतिहासिक धरोहर और सांस्कृतिक विरासत पर कट्टरपंथियों के साये को अनदेखा भी नहीं किया जा सकता है। अब पाकिस्तान में ही देख लीजिए। जिस स्तम्भ को तोड़कर भगवान नरसिंह अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने हेतु प्रकट हुए थे, वह न केवल जीर्ण शीर्ण हो चुका है अपितु वहां के लोग उस स्थान को एक सार्वजनिक शौचालय के रूप में प्रयोग में लाते हैं। तो क्या हम अपने धरोहरों को इस मंच तक ले जाना चाहते हैं?
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