कभी चौपाल का सोचा है? ओए मित्रों, चल बैठक लगाते हैं, ऐसे विचार अपने मित्रों, विशेषकर बाल सखाओं के साथ अक्सर आए होंगे। कुछ के लिए ये काम नमकीन, पकौड़े और पेय पदार्थों के साथ पूर्ण होते हैं तो कुछ के लिए एक टपरी और चाय, समोसे ही पर्याप्त हैं, बस बकैती जारी रहनी चाहिए। इसी का एक विकसित रूप है ब्रो कोड, जहां ऐसे ही चौपाल को एक संवैधानिक रूप दिया गया है। अब इसी बीच कन्याओं ने सोचा कि अगर ब्रो कोड हो सकता है, तो गर्ल कोड या सिस कोड क्यों नहीं? पर वो क्या है न, कथनी और करनी में अंतर होता है और कुछ जगह ये बहुत हानिकारक भी है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे महिला के हित के नाम पर OTT प्लेटफॉर्म वास्तव में महिला विरोधी बनते जा रहे हैं, जहां महिलाओं के हित और महिलाओं की इच्छा सदैव बैकसीट पर होती है।
बंधु अगर आप न्यूटन का सिद्धांत पढ़े हैं तो इतना तो जानते ही होंगे कि क्रिया की प्रतिक्रिया स्वाभाविक एवं निश्चित है। तो भई ब्रो कोड और बकैती को देखते ही लड़कियों के मन में विचार आया, जब लड़के कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं। बढ़िया, होना भी चाहिए, जब लड़के बकैत हो सकते हैं तो लड़कियों की बकैती का भी उचित चित्रण हो सकता है। परंतु समस्या यहीं है, ऐसा हुआ ही नहीं। महिलाओं की मित्रता या बकैती का आज तक ढंग से चित्रण किसी ने नहीं किया है और कृपया करके ‘फोर मोर शॉट्स प्लीज़’ या ‘अजीब दास्तान’ का उदाहरण मत दीजिएगा। यह अगर महिला सशक्तिकरण है न, तो फिर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ भी लोकतंत्र को पुनः जागृत करने के उद्देश्य से स्थापित की गई है और आम आदमी पार्टी भी आम आदमी के हितों में कार्य करती है, पर इस बारे में फिर कभी।
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महिलाओं को एक सांचे में ढालने का प्रयास कर रहा OTT
कुछ लोग ये भी कहेंगे कि क्या महिलाओं की बातें बताना, उनकी इच्छाएं दिखाना गलत हैं क्या? वो क्या, एक बंधुवर बहुत सही बात कहे थे, “तरीका होता है, जिन्हें ख्याल रखना हो, वो टॉन्ट मारकर नहीं कहते।” उदाहरण के लिए ‘फॉर मोर शॉट्स प्लीज़’। बात बात पर अंग्रेजी में अपशब्द बोलना, अश्लीलता की पराकाष्ठा पार करना, व्यभिचार को बढ़ावा देना और कोई विरोध मात्र भी करे तो उसे इतना अपमानित करना कि वह अवसाद में आ जाए, इसमें यही दिखाया गया है।
परंतु कथा यहीं पर समाप्त नहीं होती। इनके संवाद सुनकर तो एक बार को ‘गुंडा’ और ‘लोहा’ के लेखक भी अपनी पीठ थपथपाने लगेंगे कि कुछ भी हो, इतने लीचड़ तो कभी न थे। उदाहरण के लिए जब एक व्यक्ति को पता चलता है कि नायिका उसे धोखा दे रही थी और वह उसकी आलोचना करता था तो वह उल्टे उसे अपमानित करती है, मानो वह तो सर्वगुण सम्पन्न है, उसने उसका दोष बताकर उसे जज किया है और उसे जज करने का कोई अधिकार नहीं है।
भाई मेरे, इतना सरदर्द तो हीरोपंती 2 देखकर भी नहीं हुआ होगा जितना यह सब देखकर होता है, पर छोड़िए, किसे बता रहे हैं। लेकिन OTT प्लेटफॉर्म इस व्यभिचार, इस अनावश्यक समलैंगिकता को बढ़ावा देकर महिलाओं को ही एक सांचे में ढाल रहे हैं, बोले तो stereotype कर रहे हैं! ये प्लेटफॉर्म भारत में एक ऐसे कल्चर को प्रमोट कर रहे हैं, जिसका हमारी संस्कृति और सभ्यता से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। इनका हर कंटेंट वोक कल्चर के प्रभाव से ग्रसित दिखता है और उसका प्रभाव दर्शकों पर भी देखने को मिलता है। हाल ही में माधुरी दीक्षित की एक फिल्म मजा मा अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई थी, जिसमें उन्होंने लेस्बियन का किरदार निभाया है। अगर आप उनकी फिल्मी करियर पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि माधुरी दीक्षित ने अभी तक ऐसा कोई किरदार नहीं निभाया था लेकिन ‘वोकिज्म’ का प्रभाव ही ऐसा है।
अब सोचिए कि माधुरी दीक्षित की कितनी बड़ी फैन फॉलोइंग है और उनके इस किरदार को देखकर लोगों के मन पर क्या असर पड़ा होगा। विशेषकर बच्चियां, जो उनकी डांस की दिवानी हैं और उन्हें अपना आइडल मानती हैं, उन पर इसका कैसा असर पड़ेगा आप समझ सकते हैं।
OTT को समझना चाहिए कि पांचों उंगलियां कभी एक समान नहीं होती, हर महिला की अपनी इच्छा होती है परंतु एक लाठी से सबको हांकने की यह खुजली न केवल हास्यास्पद, अपितु हानिकारक भी है। ऐसे में महिलाओं की इच्छा, उनकी वास्तविक मित्रता को किसी ने ढंग से दिखाया ही नहीं है। जब चार लड़के बैठे हों तो आवश्यक नहीं कि वे किसी लड़की को अपशब्द बोलें पर जब चार लड़की एक साथ बैठे, तो वह सदैव किसी लड़के को अपमानित करे, ये धारणा कब से बिठाई गई, सोचा है आपने? क्या ये घृणित सोच नहीं बदलनी चाहिए?
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