Khakee: The Bihar Chapter Review – नीरज पांडे ने मजेदार वेब सीरीज़ बनाई है

पुलिसिया तेवर और बाहुबलियों के टकराव के बीच खाकी का रंग चटक दिखता है। वेब सीरीज़ देखते वक्त रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

Khakee The Bihar Chapter Review

Source- TFI

“अच्छा बता तेरा रैंक कम आया था जो तुझे बिहार कैडर दिया गया?”

“अरे मंगल ग्रह पर नहीं जा रहा हूँ, बिहार जा रहा हूँ, हिस्टोरिकल जगह है!”

Khakee: The Bihar Chapter Review: यह एक संवाद है जो परिलक्षित करता है परिवर्तन को, जो बताता है कि सब कुछ गलत नहीं है बस दृष्टिकोण का अंतर है। जिस बिहार को सब अपराध और लूटपाट की दृष्टि से देखते हैं, वहां अपराध के अतिरिक्त भी बहुत कुछ है और यही ‘खाकी – द बिहार चैप्टर’ का सार है। ‘खाकी – द बिहार चैप्टर’ के जरिए नीरज पांडेय, बिहार के अपराध जगत और राजनीतिक वातावरण को बिना लाग लपेट के दिखाने में काफी हद तक सफल हुए हैं। आज इस लेख में हम इसी बेहतरीन वेब सीरीज Khakee: The Bihar Chapter का Review करने जा रहे हैं।

13 अगस्त, 2006

अपने वचन के अनुरूप शेखपुरा के तत्कालीन एसपी अमित लोढ़ा महतो गैंग के आतंक को खत्म करने में सफल रहते हैं क्योंकि उन्होंने पिंटू महतो के साथ साथ अशोक महतो को भी धर दबोचा, जिसने लगभग समूचे बिहार में आतंक मचा रखा था। इसी रोमांचकारी यात्रा पर उन्होंने एक बहुचर्चित पुस्तक भी लिखी ‘बिहार डायरीज़’, जिस पर आज यह वेब सीरीज़ नेटफ्लिक्स इंडिया पर प्रसारित हो रही है। इसे रचा है नीरज पांडे ने, लिखा है उमाशंकर सिंह ने और निर्देशित किया है रंगबाज़ फ़ेम भव धूलिया ने।

Khakee The Bihar Chapter Lead Cast

Khakee: The Bihar Chapter Review

अब नेटफ्लिक्स इंडिया पर अच्छी सीरीज़ मिलना माने कोयले की खदान में हीरा ढूंढने के समान है परंतु परम आश्चर्य, यही हुआ है नेटफ्लिक्स पर। बड़े दिनों के बाद उन्होंने एक ऐसी सीरीज़ पेश की है, जिसमें न जबरदस्ती का प्रोपेगेंडा है, न फालतू का ज्ञान है और न ही कोई ऐसी नौटंकी, जिसे देख आप अपना सिर दीवार पर भिड़ाने को विवश हो। वैसे भी जब नीरज पांडे हो साथ, तो फिक्र की क्या बात?

21 वीं सदी के प्रारम्भिक दशक के बिहार के पृष्ठभूमि में सेट इस वेब सीरीज़ ने बिहार के सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य को हर तरह से परखा है, चाहे सामाजिक हो, राजनीतिक हो या फिर आपराधिक। ट्रेलर में भले ही प्रतीत हुआ कि यह ‘मिर्जापुर’ या ‘भौकाल’ का बिछड़ा हुआ भ्राता होगा परंतु सत्य इससे भिन्न है। उदाहरण के लिए इस संवाद पर ध्यान दीजिए, जो बिहार और लगभग सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश (विशेषकर पूर्वांचल) के लिए एक जीता जागता सत्य है, “यहाँ ‘मैं’ नहीं, ‘हम’ चलता है सर। हम में न एक अपनापन है, प्यार है, पावर है । हम बम है सर!”

Khakee The Bihar Chapter Netflix poster | Source: Netflix

रही बात अभिनय की तो आम तौर पर ये देखना होता है कि किसने अच्छा अभिनय किया और किसने नहीं। परंतु ‘खाकी’ में तो यहां इस बात की प्रतियोगिता दिखाई पड़ती है कि किसने किससे बेहतर अभिनय किया है। इसमें भले ही करण टैकर ने अमित लोढ़ा के किरदार को अच्छे से आत्मसात किया है लेकिन वो इस सीरीज के इकलौते अभिनेता नहीं हैं, जिन्होंने बेहतर अभिनय किया है। एसआई रंजन कुमार के रूप में अभिमन्यु सिंह ने एक अलग छाप छोड़ी है। इस सीरीज़ के वो सूत्रधार भी हैं और बहुत कम ही ऐसा हुआ है जब उन्हें सकारात्मक किरदार निभाने का अवसर मिला है परंतु इस बार उन्होंने मौके पर छक्का जड़ते हुए इस भूमिका में चार चांद लगा दिए हैं।

Source: Netflix

इनके अतिरिक्त आशुतोष राणा ने आईजी मुक्तेश्वर चौबे के रूप में बिहार प्रशासन का वो पक्ष भी दिखाया है, जो सबकी जय भी करता है परंतु ये भी जानता है कि आप सदैव यथार्थ से भाग नहीं सकते। च्वयनप्राश साहू के रूप में जतिन सरना ने अपनी अलग छाप छोड़ी है परंतु जो सबसे प्रभावी निकले है, वह है अविनाश तिवारी, जो चंदन महतो का किरदार निभाते हुए दिखाई देते हैं। जातिवाद की आड़ में कुछ लोग कैसे अपराध को अपना अस्त्र बना लेते हैं, इस किरदार से बेहतर कोई नहीं समझा सकता और ये अविनाश तिवारी ने बखूबी किया है। यूं ही नहीं कहा गया है इस वेब सीरीज़ में, “आइए न हमरा बिहार में!”

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