महान विजयनगर साम्राज्य की अद्भुत कहानी, जिसे दरबारी इतिहासकारों ने इतिहास में जगह ही नहीं दी

विजयनगर साम्राज्य की ओर मुगलों ने आंख उठाकर नहीं देखा, क्योंकि वो जानते थे कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो उनका क्या हश्र होगा। पढ़िए, गौरव से भर देने वाली कहानी।

विजयनगर साम्राज्य

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भारत के मध्यकालीन इतिहास में दिल्ली सल्तनत और दूसरे मुस्लिम शासकों की तो प्रमुखता से चर्चा होती है परन्तु जिस समय तुगलक और मुगल उत्तर भारत में कब्जा किए हुए थे, उसी समय दक्षिण भारत में एक समृद्ध और शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य भी अपने चरमोत्कर्ष पर था। जिसकी ताकत और समृद्धि की दुनियाभर के लोगों ने सराहना की है। वह था विजयनगर साम्राज्य। विजयनगर एक ऐसा अनोखा साम्राज्य था जिसकी समृद्धि को देखने के बाद दुनियाभर से भारत आने वाले उस समय के यात्री चौंक जाया करते थे। पुरातत्ववेत्ताओं ने जब इस सम्राज्य से जुड़ी चीजों को खोजा तो उन्हें देख पूरी दुनिया के इतिहासकार दंग रह गए थे। टीएफआई प्रीमियम में आपका स्वागत है। इस लेख में हम आपको विस्तार से विजयनगर साम्राज्य की उन कड़ियों से अवगत कराएंगे, जिन्हें ‘कुंठित’ इतिहासकारों ने सामने नहीं आने दिया या जिसके बारे में प्रमुखता से कोई बात नहीं की गई।

कर्नाटक से तमिलनाडु तक फैला हुआ था साम्राज्य

दरअसल, विजयनगर एक समृद्ध साम्राज्य हुआ करता था। इसकी नींव सन् 1336 ई. में हरिहरा और बुक्का राय नामक दो भाइयों ने रखी थी। ये अपनी समृद्धि के लिए दुनियाभर में जाना जाता था। परन्तु इसके इतिहास के बारे में हम्पी के अवशेषों की खोज होने के बाद पता चला था और ये खोज अंग्रेज खोजकर्ता कॉलिन मैकेन्जी ने सन् 1800 ई. में की थी। उसके बाद क्या था, दुनियाभर के इतिहासकार विजयनगर साम्राज्य के इतिहास के बारे में जानने लग गए।

विजयनगर सम्राज्य ने लगभग 300 वर्षों तक शासन किया था, जिसमें संगम, सालुव, तुलुव, अराविदु नाम के चार वंश हुए थे और इन चारों वंशों की राजधानी हम्पी हुआ करती थी। अराविदु सबसे अंतिम वंश था, जो कर्नाटक से लेकर तमिलनाडु तक फैला हुआ था। इन 300 वर्षों में विजयनगर सम्राज्य ने दुनिया को अद्भुत कला और संस्कृति से जुड़ी हुई अद्भुत चीजें दी जिनमें हम्पी के मंदिर हमारे सामने है।

विजयनगर सम्राज्य की खोज होने के बाद मिले साक्ष्यों से पता चलता है कि तत्कालीन समय में कई विदेशी दूत और यात्री यहां पर आए थे, जिन्होंने इस साम्राज्य के बारे में बहुत कुछ लिखा है। जैसे 15वीं और 16वीं सदी में आए इटली के व्यापारी निकोलो दे कोंटी, फारसी राजदूत अब्दुर रज्जाक, रूसी व्यापारी अफानासी निकितिन, दुआर्ते बारबोसा, पुर्तगाली डोमिंगो पेस और फर्नावो नूनिष हैं।

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रोम से होती थी विजयनगर साम्राज्य की तुलना

विजयनगर की भव्यता देख पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पेस ने इसकी तुलना उस समय के सबसे समृद्ध माने जाने वाले रोम से की थी। वहीं, अब्दुर रज्जाक जब भारत आया तो विजयनगर साम्राज्य को देख उसने लिखा ‘यह ऐसा नगर है, जैसा न आंखों ने पहले कभी देखा और न कभी जिसके बराबरी के नगर के बारे में सुना गया। यह ऐसा समृद्ध नगर है, जहां के जौहरी हीरे, मोती, पन्ना और माणिक्य सड़कों पर बेचते नज़र आते हैं।’

विजयनगर साम्राज्य में संगम वंश के राजा कृष्णदेव राय सबसे शक्तिशाली और विजयनगर को एक समृद्ध सम्राज्य का रूप देने वाले राजा हुए थे। इनका शासन सन् 1509 ई. से 1529 ई. तक रहा, जिसमें इन्होंने कला, संस्कृति, साहित्य और कृषि इत्यादि जैसे क्षेत्रों में बहुत बड़ा बदलावा किया था। ये स्वयं एक साहित्यकार थे और ‘अमुक्तमल्याडा’ नाम की किताब भी लिखी थी, जिसमें इनकी कविताओं का संकलन है। इसके अलावा इनके शासनकाल के दौरान मंडप, गोपुरम जैसी मंदिर निर्माण कला का भी जन्म हुआ था।

विजयनगर साम्राज्य में एक अद्भुत प्रशासनिक व्यवस्था का भी जन्म हआ था, जिसे नयंकारा के नाम से जाना जाता था। इस व्यवस्था के अंतर्गत Military Commander राजा के आदेश पर निश्चित भू-भाग में शासन किया करते थे और जब युद्ध होता तब ये राजा की सहायता करते थे। इस मिलिट्री कमांडर को अमरनायक के नाम से जाना जाता था।

दरबारी इतिहासकारों ने चंद पन्नों में सिमटा दिया

विजयनगर सम्राज्य में सामाजिक व्यवस्था का स्तर बहुत हद तक अच्छा था, जिसमें वैष्णव और शैव दो समुदाय हुआ करते थे जिन्हें राजा के द्वारा बराबर का सम्मान दिया जाता था। इसके अलावा महिलाओं की स्थिति काफी अच्छी हुआ करती थी। उदाहरण के लिए महिलाओं के क्लर्क और जजों के पदों पर होने के प्रमाण भी मिलते हैं। आर्थिक स्थिति की बात की जाए तो विजयनगर साम्राज्य की तुलना आज के किसी भी महानगर से लाख गुना बेहतर थी। विजयनगर सम्राज्य मध्यकालीन भारत का अद्भुत समय था जिसमें कई प्रकार कलाओं, मंदिरों और अद्भुत साहित्य का निर्माण हुआ। इसके अलावा विजयनगर साम्राज्य की खास बात यह है कि उस समय फला-फूला जिस समय देश में मुस्लिम शासकों का शासन हुआ करता था।

हमारे इतिहास में मुगलों का जमकर वर्णन किया गया है और दरबारी इतिहासकारों ने मुगलों को ही हर जगह प्रमुखता से स्थान दिया है लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ये वही मुगल थे, जो लाख कोशिशों के बावजूद विजयनगर साम्राज्य पर कब्जा जमाने में विफल रहे। ऐसा कहा जाता है कि मुगलों ने जब भी आंख उठाकर देखने की कोशिश की, हर बार उनकी बैंड बजा दी गई। इसके बावजूद हमारे इतिहास की पुस्तकों में हर जगह आपको मुगलों का वर्णन और उनके बारे में चिकनी चुपड़ी बातें मिल जाएगी परंतु ‘विराट’ विजयनगर साम्राज्य को चंद पन्नों में सिमटा दिया गया।

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