देश की राजधानी दिल्ली के छतरपुर में हुए श्रद्धा हत्याकांड की घटना ने लोगों का दिल और दिमाग दोनों हिलाकर रख दिया है। इस हत्याकांड के जघन्य अपराधी आफताब को दरिंदा, कातिल, लव जिहादी, क्रूर आदि जितने भी उपनामों से बुलाया जाए वो कम है। लेकिन फिर भी अपनी पूरी सोच समझ के साथ कुछ मीडिया संस्थान ने इतने भयानक और अविश्वसनीय जुर्म को अंजाम देने वाले अपराधी को फूड ब्लॉगर, बॉयफ्रेंड, आदमी और न जाने किन-किन अलंकारों से शोभित किया है। लेकिन ये क्या? बात यहीं खत्म नहीं होती बल्कि इस हत्यारे के साथ अब कथित तौर से ‘पागल, साइको और मानसिक रोगी जैसे शब्द को जोड़ने के प्रयास इन मीडिया संस्थानों के द्वारा किया जा रहा है। प्रश्न है आखिर ऐसा क्यों?
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खुलेआम घूमने वाला हत्यारा
किसी की बड़ी ही बेरहमी से हत्याकर उसके 35 टुकड़े करके कई महीनों तक निडरता से खुलेआम घूमने वाले को क्या ‘पागल, साइको और मानसिक रोगी जैसे शब्दों की संज्ञा देना उचित है? ये मीडिया संस्थान लोगों के बीच आफताब को लेकर इस तरह का नरेटिव सेट करके क्या उसे पागल करार देना चाहते हैं? लगता तो कुछ ऐसा ही है क्योंकि ऐसा लगने के कई उदाहरण दिख जाता हैं।
इस हत्याकांड पर NDTV की इस हेडलाइन को देखिए, जिसमें लिखा है- Man Who Killed Partner ‘Used To See Her Face’ After Keeping Head In Fridge (साथी को मारने वाला शख्स फ्रिज में सिर रखकर ‘उसका चेहरा देखता था’) इसे ऐसे लिखा गया है जैसे नृशंस अपराधी को मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा हो।
अब जरा आप ‘दैनिक जागरण’ की इस हेडलाइन को देखिए जहां पर ये कहने का प्रयास किया गया है कि श्रद्धा का हत्यारा मानसिक रूप से बीमार है। लेख की हेडलाइन पढ़िए- ‘कभी श्रद्धा के कटे सिर का मेकअप करता, कभी गुस्से में थप्पड़ मारता था आफताब’
जी के इस हेडलाइन को देखिए, लिखा है- ‘SHOCKING: Aftab Amin used to have S*X with other girls in the same house, keeping Shraddha’s severed HEAD in fridge!’ इसे इस तरह लिखा गया है कि पढ़ने वाले के दिमाग में तुरंत यह प्रश्न उठ जाए कि क्या आफताब साइको है, क्या वह मानसिक रूप से बीमार है?
TOI के इस हेडलाइन को भी देखकर पढ़ने वाले को साइको, पागल, मानसिक रूप से बीमार ही प्रतीत होगा आफताब- Looked at her head daily to keep memory alive: Accused Aaftab Poonawala.
अब जरा मामले को और समीप से समझिए। आफताब अमीन पूनावाला ने अपनी हिन्दू गर्लफ्रेंड श्रद्धा वाकर की बेरहमी से गला घोटकर हत्या तो की, फिर शरीर के 35 टुकड़ेकर हर रात शहर के अलग-अलग स्थानों पर ठिकाने लगाता रहा। इससे पहले इन टुकड़ों को रखने के लिए उसने 300 लीटर का नया फ्रिज खरीदा था। घर में दुर्गंध न फैले, इसके लिए वह विशेष तरह की अगरबत्ती भी जलाता था। हत्या के बाद फर्श को धोने के लिए एसिड के बारे में जानने और बॉडी को काटने के तरीकों को जानने के लिए उसने गूगल सर्च का सहारा लिया था। फ्लैट से सभी सबूत को मिटाने के लिए भी वह गूगल का सहारा लेता था। बताया जाता है कि आफताब ने एक हफ्ता पहले ही श्रद्धा को जान से मारने का प्लान बना लिया था।
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क्रूरतापूर्ण हत्याकांड
अब एक पल ठहरिए और सोचिए कि इस तरह क्रूरतापूर्ण हत्याकांड को अंजाम देने और फिर उसे छुपाने के लिए इतना तेज दिमाग लगाने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार हो सकता है? बिलकुल भी नहीं।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह की हत्या से जुड़ा मामला काफी ज्यादा जटिल होता है। लेकिन ऐसे मामले में प्रत्यक्षदर्शी गवाह के नहीं होने और हत्या में प्रयुक्त हथियार भी बरामद न होने के बाद भी आरोप साबित होना संभव है। पहले भी यह हुआ है कि गवाह और हथियार नहीं होने पर भी आरोपियों को दोषी करार देकर सजा दी गयी हो।
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लेकिन यहां पर तो समस्या ही यही है कि यदि मीडिया संस्थान ही पूरा मामला बिगाड़ने पर तुल जाएंगे तो कानून भी क्या कर पाएगा। एक जघन्य अपराधी अंत में मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति की संज्ञा पाकर बहुत कम सजा भुगतकर बाहर आ जाएगा और किसी दूसरी लड़की या व्यक्ति को अपना शिकार बनाएगा। कम से कम बड़े आराम से एक हत्यारा खान मार्केट में दुकान तो खोलकर बैठ ही जाएगा। ऐसे में प्रश्न है कि क्या ये गिने चुने मीडिया संस्थान यही चाहती हैं? उनकी हरकतें तो ऐसा ही प्रतीत करवा रही हैं। इस मामले के सामने आने के बाद जो भी अनरगल मीडिया संस्थानों के द्वारा फैलाया जा रहा है वो कम से कम समाज के लिए तो कतई सही नहीं जान पड़ता है।
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