झूठ का पहाड़ जब ढहने लगे, क्रूरता के क़िले की दीवार में सेंध लग जाए, रंगे सियार का रंग उतरने लगे तो सबसे बेहतर उपाय है कि मामले को ही पलट दो और ममता बनर्जी इसमें डिस्टिंक्शन के साथ टॉप करती आई हैं। ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और उनके नेता अपने कारनामों के लिए काफी मशहूर हैं। दंगा भड़काना हो, बकैती करनी हो, तुष्टीकरण करना हो, संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को ‘गाली’ देना हो, हर मामले में ममता के नेता काफी पहले से ही टॉप पर रहे हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि हम हर चीज को ममता से ही क्यों जोड़ रहे हैं, तो उसका भी जवाब है हमारे पास। दरअसल, ऐसी परिपाटी ममता ने ही शुरू की है, जिसे उनके नेता आत्मसात करते दिख रहे हैं। इसी बीच टीएमसी नेता और पश्चिम बंगाल सरकार के मत्स्य पालन मंत्री अखिल गिरी (Akhil Giri) ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेकर विवादित टिप्पणी की है, जिसे लेकर बवाल मचा हुआ है।
दरअसल, ममता के मंत्री अखिल गिरी ने राजनीतिक मूल्यों की सारी मर्यादाओं को खूंटी पर टांगते हुए देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के रंग को लेकर भद्दी टिप्पड़ी की। जिसके बाद लोगों ने सोशल मीडिया पर उनकी जमकर बैंड बजाई और अब स्थिति ऐसी है कि वो रिरयाते फिर रहे हैं और कह रहे हैं कि हमारी जुबान फिसल गई। अखिल गिरी ने कहा कि उनकी जुबान फिसल गई और इसलिए उन्होंने ऐसा कह दिया, वैसे तो वो राष्ट्रपति का सम्मान करते हैं। परन्तु यहां पर सवाल यह है कि अखिल गिरि की जुबान है या गाड़ी का टायर, जो कहीं भी और कभी भी कंट्रोल से बाहर हो जाती है! लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि टीएमसी के जो भी नेता और मंत्री ऐसा जहर उगल रहे हैं, उसके पीछे उनकी पार्टी और ममता बनर्जी का मौन समर्थन उतना ही जिम्मेदार है, जितना वह नेता।
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टीएमसी पहले से ही ऐसा करती आई है
ज्ञात हो कि किसी भी TMC नेता द्वारा यह घटिया काम पहली बार नहीं किया गया है। इससे पहले भी स्वयं टीएमसी की अध्यक्ष ममता बनर्जी कई बार बंगाल के पूर्व गवर्नर जगदीप धनखड़ का अपमान कर चुकी हैं, इसलिए अपमान करने की सीख तो वही से मिल रही है। “वो कहते हैं न कि जैसा गुरू वैसा चेला” तो चेला वही करेगा, जो गुरू उसे सिखाएगा और अखिल गिरि तो स्वयं ममता के करीबी हैं।
अगर हम ममता बनर्जी के कारनामों की बात करें तो यह लिस्ट काफी लंबी है। फिर भी कुछ मामले ऐसे हैं जिन्हें संज्ञान में लाना जरूरी है। जगदीप धनखड़ जब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे तो ममता बनर्जी और टीएमसी के ‘गुंडों’ ने उनके साथ कैसा व्यवहार किया था, यह आप भली भांति जानते हैं। कई बार तो ममता बनर्जी ने उनपर पर्सनल अटैक तक कर दिया था। वहीं, कई बार टीएमसी कार्यकर्ताओं ने उनकी गाड़ी का घेराव किया था, उन्हें काले झंडे दिखाए थे और उनके खिलाफ नारेबाजी की थी। वो जब तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे, टीएमसी के टारगेट पर रहे। इस मामले की शुरूआत भी ममता बनर्जी ने ही की थी।
एक मामला यह भी है कि ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने पीएम नरेंद्र मोदी के साथ एक मीटिंग को बीच में ही अधूरा छोड़कर उनका अपमान किया था। असल में मई 2021 में यास चक्रवात के आऩे के बाद पीएम मोदी और ममता बनर्जी के बीच में एक मीटिंग तय हुई थी परन्तु ममता बनर्जी की अकड़ से तो आप परिचित ही हैं। पीएम मोदी के साथ होने वाली इस मीटिंग में ममता बनर्जी पहले तो तीस मिनट लेट पहुंची, 20 हजार करोड़ के नुकसान की रिपोर्ट दी और मीटिंग बीच में अधूरी छोड़कर चली गई थीं। इसके अलावा संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को लेकर टीएमसी नेताओं द्वारा विष उगलने की परंपरा काफी पुरानी रही है।
अखिल गिरी ने दी सफाई
मौजूदा मामले को लेकर विपक्षी पार्टियों ने TMC और अखिल गिरी को जमकर लताड़ लगाई है। भाजपा तो गिरी (Akhil Giri) को पद से हटाने के साथ ही उनकी गिरफ्तारी की मांग भी कर चुकी है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पर की गई उनकी यह टिप्पणी आदिवासियों के प्रति टीएमसी के रवैये को प्रदर्शित करती है और यह उस राज्य में कहा जा रहा है, जहां कि मुख्यमंत्री एक महिला हैं। हालांकि, अखिल गिरि के इस बयान के बाद जब विवाद बढ़ने लगा तो इस पर उन्होंने बिना किसी आधार के सफाई देते हुए कहा कि सुवेंदु अधिकारी लंबे समय से मुझे टारगेट कर रहे थे और उन्होंने मुझे कौवा बोला, हाफ पैंट मंत्री कहा, इसलिए मैं बहुत गुस्सा था। उन पर गुस्सा निकालते हुए मेरी जुबान फिसल गई। मैं राष्ट्रपति का बहुत सम्मान करता हूं। परन्तु यह किस तरीके की माफी थी समझ से बाहर है। यदि इस बेहद घटिया बयान के निष्कर्ष की बात की जाए तो यही कहा जा सकता है कि तृणमूल कांग्रेस के मंत्री के द्वारा बोली गई ऐसी बातों से यह प्रदर्शित होता है कि टीएमसी के नेता रंगभेद फैलाने वाले और घोर आदिवासी विरोधी हैं।
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