देखो बंधुओं, विश्व दो ध्रुवों में बंटा हुआ है ये तथ्य है। तब अमेरिका और सोवियत संघ थे, आज रूस और अमेरिका हैं। बीच में चीन ने भी धक्कामुक्की की परंतु हाथ कुछ न आया। पर एक देश ऐसा भी है, जिसका प्रभाव सबसे मजबूत और सबसे अलग है और जिससे संबंध प्रगाढ़ करने के लिए सब लालायित हो रहे हैं, वह है अपना भारत। दरअसल, आर्थिक शक्ति ही विदेशी संबंधों की आधारशिला मानी जाती है। जितने अधिक FTA किसी देश के साथ होंगे, उतना ही उस देश की ओर लोग और संस्थाएं आकर्षित होंगी क्योंकि FTA यानी मुक्त व्यापार समझौता इस बात का सूचक है कि देश की आर्थिक स्थिति कैसी है और इस परिप्रेक्ष्य में भारत का कद काफी बढ़ने वाला है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे भारत विश्व के नए ध्रुव के रूप में उभर रहा है और क्यों भारत के साथ व्यापार बढ़ाने को लेकर अनेक देश अतिउत्सुक हैं।
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कई देशों के साथ हो चुका है भारत का FTA
उदाहरण के लिए भारत और गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल ने हाल ही में FTA के संबंध में प्रक्रिया को तेज़ करने पर सहमति जताई है, जिसे लेकर पीयूष गोयल ने सुनिश्चित किया है कि डील जल्द से जल्द होगी। इस ग्रुप में सऊदी अरब, UAE, बहरीन, कतर, ओमान और कुवैत जैसे महत्वपूर्ण देश हैं, जो भारत के महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार हैं। इनके साथ भारत ने 2021-22 के सत्र में $154 बिलियन का व्यापार किया था और इनके महासचिव डॉ NFM अल हजरफ के अनुसार, “व्यापार अब एक चुनौतीपूर्ण युग में प्रवेश करने वाले हैं। ऐसे में व्यापार, निवेश, खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा, क्लाइमेट चेंज इत्यादि के लिए FTA का होना अति आवश्यक है। GCC और भारत के बीच के संबंध काफी गहरे हैं।”
परंतु GCC एकमात्र इकाई नहीं है जिसके साथ भारत ने इस अनुबंध पर हस्ताक्षर किया हो। भारत ने 2022 में पहले ही ऑस्ट्रेलिया एवं UAE के साथ FTA पर हस्ताक्षर कर लिया है और इसके अतिरिक्त यूरोपीय यूनियन, यूके, कनाडा, यहां तक कि अंकल सैम यानी अमेरिका तक हमसे FTA पर मुहर लगाने के लिए लालायित बैठा है। इन सभी लंबित कार्यों को सुनिश्चित करने हेतु पीयूष गोयल ने अनेक विभाग स्थापित किए हैं, जिनमें 9 डिवीजन में मंत्रालय के सरकारी अफसर सहित निजी सेक्टर के विशेषज्ञ भी होंगे। इसके अतिरिक्त 70 एंड टू एंड SOPs भी स्थापित हुए। यही नहीं, 80 डायरेक्टर और डेप्युटी सेक्रेटरी भी इन FTA के हर पक्ष का आंकलन करने हेतु नियुक्त किए गए हैं।
भारत की ओर बढ़ रही है दुनिया
ये तत्परता तनिक विचित्र नहीं लगती? Deloitte के एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय ट्रेडर कई FTA पर मात खाए हैं। प्रारंभ में अगर उन्हें 100 अवसर मिलते थे तो वे केवल 3 में सफल हुए हैं। इनके सफलता का आंकलन केवल 25 प्रतिशत है, तो फिर प्रश्न है कि कोई भारतीयों के लिए इतने जतन और जोखिम क्यों लेगा? उत्तर अनेक हैं। प्रारंभ में द्विपक्षीय समझौतों में भारत सोच समझकर सभी कदम साध रहा है। उदाहरण के लिए UAE वाले FTA में भारत उनके 90 प्रतिशत उत्पादों पर ड्यूटी फ्री एक्सेस प्रदान करेगा तो UAE हमारे 99 प्रतिशत उत्पादों के लिए यही सुविधा करेगा। यहीं बात ऑस्ट्रेलियाई समझौते में भी काफी हद तक लागू हुई। परंतु ये छोटी सी बात अंग्रेजों के पल्ले नहीं पड़ी, इसलिए भारत के साथ उनका समझौता अटका हुआ है।
भारत का महत्व एक और कारण से भी बढ़ा है – कोविड के पश्चात की वैश्विक व्यवस्था। आज WTO को कोई टके का भाव नहीं देता और कई देश उसके ऑर्डर को मानने को तैयार नहीं है। जब भारत ने RCEP से हाथ पीछे खींचे, तभी संकेत मिल जाने चाहिए थे कि सब कुछ ठीक नहीं है। लोगों का अब पाश्चात्य संगठनों से अधिक मोहभंग हो रहा है। जो भी भारत से संधि करना चाहते हैं, उनका अपने आप में विश्व में एक महत्वपूर्ण कद है, चाहे अमेरिका हो या कोई और। भले ही ऑस्ट्रेलिया क्वाड का भाग हो परंतु उसने भारत के साथ अपने हितों को बढ़ावा देना बेहतर समझा। ठीक इसी भांति यूरोपीय यूनियन भी अब भारत के साथ अपना विशेष FTA करने को इच्छुक है।
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