मीडिया को देश का चौथा स्तम्भ कहा जाता है, मीडिया देश की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के क्रियाकलापों पर नजर रखता है। इसके द्वारा सरकार और जनता के बीच संवाद स्थापित किया जाता है और इसका ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया यानी टीवी पर प्रसारित होने वाले न्यूज चैनल। पिछले कुछ समय में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की छवि को बहुत नुकसान पहुंचा है और इस नुकसान के पीछे स्वयं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को ही दोषी ठहराया जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
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ट्रेंड के हिसाब से खबरों का चयन
आज के समय में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जमीन से जुड़ी खबरें न दिखाकर सोशल मीडिया को खबरें देने वाली मशीन समझ लिया है। यहां तक कि सोशल मीडिया पर चल रहे ट्रेंड के हिसाब से ही खबरों का चयन कर रहा है। अब हाल ही में ऋचा चड्ढा के ट्वीट से मचे बवाल को ही देख लीजिए, ऋचा चड्ढा के ‘गलवान’ पर किए गए ट्वीट से सोशल मीडिया पर हंगामा ही मच गया। दरअसल, ऋचा चड्ढा ने ‘गलवान से हाई’ लिखकर एक ट्वीट किया था जिसके लिए उन्हें जमकर ट्रोल किया गया। हालांकि ऋचा को अपने इस ट्वीट को हटाना पड़ा लेकिन तब तक मामला गर्म हो चुका था।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस खबर को बड़ी ही प्रमुखता से अपने दर्शकों के सामने परोसा। टीवी चैनलों ने इसे अपने प्राइम शो में भी शामिल किया। लेकिन क्या इस तरह की खबरों से देश के जो गंभीर मुद्दे हैं जिन पर देश का ध्यान आकर्षित करना बहुत जरूरी है वो दब नहीं जाते हैं? दरअसल, जहां इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ऋचा चड्ढा के एक ट्वीट पर कार्यक्रमों के प्रसारण में व्यस्त था वहीं दूसरी तरफ खालिस्तान समर्थक अमृत पाल जोकि भारी हथियारों से लैस निहंग सिखों के एक समूह के साथ चलता है, वह जहां भी जाता है भड़काऊ भाषण ही देता है, वह हाल ही में अपने सैकड़ों समर्थक के साथ स्वर्ण मंदिर के पास तलवारें लहराते हुए दिखा।
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भिंडरावाला 2.0 के बारे में क्यों नहीं दिखाता है मीडिया
अमृत पाल सिंह को भिंडरावाला 2.0 कहा जाता है और भिंडरावाला वही व्यक्ति है जिसे पंजाब के आतंकवाद और खालिस्तान की मांग को बढ़ावा देने का जिम्मेदार माना जाता है। इसी भिंडरावाले ने 80 के दशक में अपने हथियारबंद साथियों के साथ मिलकर स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर लिया था। जिसके बाद 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था। तो अब आप समझ सकते हैं कि अमृतपाल सिंह जिसे भिंडरावाले का 2.0 कहा जाता है उसका इस तरह स्वर्ण मंदिर के पास तलवार लहराते हुए रैली निकालना राष्ट्र के लिए कितना बड़ा खतरा हो सकता है। लेकिन जब ये खालिस्तानी समर्थक रैली निकाल रहा था तब यह मीडिया कहां था?
देश के बड़े-बड़े मीडिया हाउस के पास देश के अलग- अलग क्षेत्रों में अपने पत्रकार उपस्थिति रहते हैं जो दिनभर अपने क्षेत्र की खबरें जुटाते हैं। लेकिन आज के समय में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपने इन पत्रकारों की खबरों को प्रमुखता न देकर सोशल मीडिया से मिली खबरों को प्रमुखता दे रहे हैं और दिनभर इस तरह की खबरों का प्रसारण कर रहे हैं।
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सोशल मीडिया पर आश्रित इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
आज भले ही सोशल मीडिया भी समाज में तमाम तरह की सूचनाओं को पहुंचाने का साधन बन गया है लेकिन आज भी कुछ गंभीर मामलों से जुड़ी सूचनाओं का विश्लेषण या उनसे जुड़ी जानकारी सोशल मीडिया के पास नहीं होता है। ऐसे काम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए कर पाना अधिक सरल और सुविधाजनक होगा, ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को अपने संसाधनों और अपने अनुभवों का उपयोग करते हुए ग्राउंड पर जाकर जनता की समस्याओं से जुड़ी सूचनाओं को जनता के सामने परोसना चाहिए न की सोशल मीडिया के ट्रेंड को फॉलो करते हुए सोशल मीडिया पर ही आश्रित रहना चाहिए।
भले ही आज सोशल मीडिया का दौर है और आज हर कोई सोशल मीडिया से सूचनाओं को ग्रहण कर रहा है लेकिन ध्यान देना होगा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पास अपने कुछ विशेष अधिकार हैं। ऐसे में इस मीडिया को यह समझना होगा कि अपने इन विशेष अधिकारों का उपयोग वह जनता के लिए करे और उन तक उनसे जुड़ी खबरों को पहुंचाए। यही एक रास्ता है जिस पर यदि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चले तो जनता का उस पर विश्वास बना रह सकता है। उसे किसी व्यक्ति के एक ट्वीट के पीछे भागकर देश की जनता से जुड़े मुद्दों को भूलना नहीं चाहिए।
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