खुद की नाकामियों का ठीकरा किसी और के माथे पर फोड़ने में बॉलीवुडिया सितारे माहिर हैं। इनकी फिल्में जब चलती हैं तो इसका सारा का सारा श्रेय यह स्वयं ले जाते हैं, परंतु जब फिल्में पिटने लगे तो किसी और को बलि का बकरा बनाने की कोशिश करते हैं। इन्हीं में से ही एक महानुभाव आयुष्मान खुराना भी हैं, जिन्होंने “विक्की डोनर” जैसी बेहतरीन फिल्म के माध्यम से जन-जन के दिलों में अपनी जगह बनायी। परंतु आज यही आयुष्मान अपनी फिल्मों के असफल होने का कारण भारत की होमोफोबिक सोच को बता रहे हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि क्यों आयुष्मान की असफलता का कारण भारत का होमोफोबिया नहीं बल्कि उनकी फिल्मों की कहानी के स्तर का गिरना और इनका व्यवसायीकरण करना है।
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भारत की सोच को बताया होमोफोबिक
दरअसल, कुछ दिनों पहले आयुष्मान खुराना ने ओटीटी प्ले के साथ एक इंटरव्यू में अपनी पिछली फिल्मों के फ्लॉप होने के कारण पर बात की थी। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत एक होमोफोबिक देश है, जिस कारण फिल्में चल नहीं पाती। आयुष्मान ने कहा- “मैंने ऐसी फिल्मों से अपने करियर की शुरुआत की जिन पर अधिकतर अभिनेता काम करना पसंद नहीं करते हैं। हालांकि ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कारोबार नहीं कर पाती हैं। इसका अहम कारण है कि हमारा देश अभी तक होमोफोबिक सोच में डूबा हुआ है।”
आयुष्मान की इस टिप्पणी पर हमें बस उनसे यही कहना है कि प्रिय खुराना जी आप एक बात अपने मस्तिष्क में बैठा लीजिये कि जब जनता किसी भी फिल्म की कहानी से जुड़ाव महसूस नहीं करती है तब उसे ऐसे ही नकार देती है। अब इसे देश की सोच को होमोफोबिक कहना बस अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने वाली ही बात है।
इसी इंटरव्यू में आगे आयुष्मान यह भी कहते हैं- “हालांकि मैं अपनी जगह काफी जिद्दी हूं। अगर मैंने जोखिम लेना छोड़ दिया तो दूसरों की तरह रूढ़ हो जाऊंगा लेकिन मुझे हमेशा से सदा एक-सा रहना ही पसंद है। मैं हिट या फ्लॉप की चिंता किये बिना उन प्रोजेक्ट्स को काम करना चाहता हूं, जिन्हें भविष्य में ले जाना सही है और मैं हमेशा उन्हीं सीमाओं को आगे धकेलता रहता हूं। हालांकि मेरी फिल्में काफी कम बजट की होती हैं जिनके फ्लॉप होने पर अधिक नुकसान नहीं होता है इसलिए मैं रिस्क उठा सकता हूं।”
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आयुष्मान खुराना की पहले और अब की फिल्में
इस तरह की बातें बोलने से पहले आयुष्मान खुराना को अपनी कुछ पहले की फिल्मों पर ध्यान देना चाहिए, जिसे जनता द्वारा काफी पसंद किया जाता था। देखा जाए तो आयुष्मान ने अपने दशक भर के करियर में कई अच्छी फिल्मों में अभिनय किया है। इन सभी फिल्मों का एक ही उद्देश्य होता था जनता को सही संदेश देना लेकिन ऐसा लगने लगा है कि एक दिशा में ही चलने के चक्कर में अपना बेड़ागर्क करा रहे हैं। अधिक ज्ञान देने के टक्कर में वो अब जनता के सामने बेफिजूल और बेतुकी चीजें परोसने लगे हैं।
उदाहरण के लिए चड़ीगढ़ करें आशिकी को ले लीजिए, जो LGBTQ समुदाय को लेकर संदेश देने के उद्देश्य से बनाई गई थी। परंतु इसमें अश्लीलता के सिवाए क्या कुछ और आपको मिला? “सोनू की टीटू की स्वीटी” फिल्म का एक मशहूर डायलॉग है ‘बात कहने का एक तरीका होता है’। शायद आयुष्मान खुराना इसी बात को भूलते जा रहे हैं।
आयुष्मान की पिछले कुछ वर्षों की फिल्मों की कमाई पर नजर डालेंगे तो आप समझ जायेंगे कि कैसे आयुष्मान के करियर का ग्राफ लगातार नीचे ही गिरता चला जा रहा है…
Movie Name | Budget | World-wide Collection | Theatrical Release |
Badhai Ho | Rs 29 cr | Rs 221.4 cr | Oct 2018 |
Andhadhund | Rs 32 cr | Rs 456.9 cr | Oct 2018 |
Dream Girl | Rs 28 cr | Rs 200 cr | Sept 2019 |
Bala | Rs 25 cr | Rs 171.5 cr | Nov 2019 |
Article 15 | Rs 30 cr | Rs 93.08 cr | Nov 2019 |
Shubh mangal zyada saavdhan | Rs 25 cr | Rs 86.39 cr | Feb 2020 |
Chandigarh Kare Aashiqui | Rs 30 cr | Rs 41.23 cr | Dec 2021 |
Anek | Rs 45 cr | Rs 10.89 cr | May 2022 |
Doctor G | Rs 35 cr | Rs 26.45 cr | Oct 2022 |
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इसलिए नहीं चल रही आयुष्मान खुराना की फिल्में
इस सूची को देखकर आप भलीभांति समझ गये होंगे कि कोरोना महामारी के बाद आयुष्मान की फिल्में हिट श्रेणी में रहने में पूरी तरह से सफल नहीं हो रही है। जिन आयुष्मान ने अपने करियर की शुरुआत विक्की डोनर जैसी लाजवाब फिल्म से की थी और फिर एक के बाद एक अच्छी फिल्में की, जिसमें बधाई हो, अंधाधुंध जैसी कई फिल्में शामिल रहीं। परंतु फिर इनके करियर का ग्राफ कही गिरता ही चला गया। इन्होंने आर्टिकल 15 फिल्म में काम किया जो एजेंडा से भरी थी। इसके बाद आयुष्मान ने शुभ मंगल ज्यादा सावधान, चड़ीगढ़ करें आशिकी. अनेक और डॉक्टर जी जैसी फिल्मों में काम किया, जो दर्शकों के दिलों क्या दिमाग तक को भी इम्प्रेस नहीं कर पाई।
ऐसे में यह कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि आयुष्मान भी बॉलीवुड के कुछ “सितारों” की तरह बस एक ही जोन को पकड़े आगे बढ़ते जा रहे है। उन्होंने अपनी जोखिम लेने वाली छवि का लाभ उठाना और कई गंभीर मुद्दों का व्यवसायीकरण करना शुरू कर दिया है। बॉलीवुड कई सारे जरूरी मुद्दे या फिर विषय पर अच्छी फ़िल्में बनाने में नाकाम रह चुका है जिसमें राष्ट्रवाद, सामाजिक बदलाव और सांस्कृतिक पुनरुत्थान शामिल है। मिशन मंगल, गुंजन सक्सेना और सम्राट पृथ्वीराज इसका एक जीता जगता सबूत है। इन सभी फिल्मों के विषय भले ही महत्वपूर्ण थे, लेकिन बॉलीवुड में इनको ही बर्बाद करके रख दिया गया था।
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ऐसा ही कुछ आयुष्मान खुराना के साथ भी है। जहां पहले आयुष्मान अपनी फिल्मों के माध्यम से जनता को संदेश पहुंचाते थे। वहीं अब उनकी फिल्मों में मुद्दे तो होते हैं लेकिन उनको कहने का तरीका बेहद ही बेतुका और फूहड़ता भरा होता है। यही कारण है कि आज के समय में आयुष्मान का करियर विनाश की ओर जाता हुआ साफ तौर पर नजर आने लगा है।
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