कुंग फू, ताइक्वांडो, करांटे की मां भारत की कलरीपायट्टु युद्ध कला को जानते हैं आप?

दुनिया की सबसे प्राचीनतम वैज्ञानिक युद्ध कला यानी मार्शल आर्ट के रूप में प्रचलित कलरीपायट्टु का विकास केरल में हुआ था। यह युद्ध कला आज दुनियाभर में प्रशंसा का पात्र बन रही है।

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भारत हमेशा से ही अपनी विविधताओं और कलाओं के लिए जाना जाता है।  किसी भी देश के विकास में कला का एक महत्‍वपूर्ण योगदान होता है। जहां तक भारत की बात करें तो कुछ कलाओं की उत्पत्ति भारत में हुई है लेकिन यही कलाएं दूसरे देशों में जाकर तेजी से प्रचलित हुईं, यही कारण है कि कई लोगों को ऐसा लगता है कि ये कलाएं भारत की नहीं है, लेकिन वास्तविक रूप से ऐसा नहीं है। उदाहरण के लिए अधिकांश लोगों को लगता है कि कुंग फू को चीन के लोगों के द्वारा लाया गया है, लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि कुंग फू के जनक तत्मोह (बोधिधर्म) एक भारतीय थे।

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शाउलिन कुंग फू

तत्मोह दक्षिण भारत के पल्लव राज्य के राजकुमार थे और  उन्होंने अपना राजसी जीवन त्याग कर बौद्ध भिक्षु का जीवन अपना लिया था। चीन में उनके द्वारा शाउलिन मंदिर की स्थापना की गयी और तब से यह कला ‘शाउलिन कुंग फू’ के नाम से जानी जाने लगी।  इसी प्रकार भारत में और भी ऐसी कलाएं हैं जिनके विषय में सभी को जानकारी नहीं है। ये सभी कलाएं हमेशा से ही देश का गौरव बढ़ाती रही है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से ऐसी ही भारतीय कला कलरीपायट्टु युद्ध कला के विषय में जानकारी देंगे जो की जूडो, कराटे और कुंगफू, ताइक्वोंडो से भी बड़ी कला है।आइये जानते है।

भारत में जन्मी कलरीपायट्टु एक मारक युद्ध कला है जो कि प्राचीन काल से काफी ज्यादा प्रचलित है। कलरीपायट्टु को एक प्रकार का मार्शल आर्ट भी कहा जाता है| कलरीपायट्टु दो शब्दों के मेल से बना हुआ है एक शब्द है कलारी और और दूसरा है पयाट्टू। जहां कलारी का अर्थ है  युद्ध का स्थान, व्यायामशाला या स्कूल और पयाट्टू का अर्थ है परिशिक्षण लेना या अभ्यास करना। जिससे कलारिपयाट्टू का पूरा अर्थ समझे तो युद्ध स्थल के लिए प्रशिक्षित होना कहा जा सकता है।

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कलरीपायट्टु के इतिहास के विषय में बात करें तो ये लगभग 3000 वर्षों से भी ज्यादा पुरानी है।  हालांकि इस कला की उत्पत्ति के निश्चित समय के विषय में जानकारी नहीं है। ऐसा भी माना जाता है कि इस कला को भगवान शिव के द्वारा भगवान परशुराम को सिखाया गया था और जिसके बाद परशुराम ने इस कला को अन्य लोगों तक पहुंचाया था।  कई लोगों का ऐसा भी मानना है कि इस कला को परशुराम और अगस्त्य मुनि द्वारा ही बनाया गया था।

कलरीपायट्टु को कई हिस्सों में विभाजित किया गया है, जिसमें युद्ध कला के साथ-साथ योग, मर्म विद्या, चिकित्सा आदि के बारें भी प्रशिक्षण दिया जाता है। कलरीपायट्टु के प्रशिक्षण को चार भागों में विभाजित किया गया है।

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इसमें विद्यार्थी को अलग-अलग तरह के शारीरिक व्यायाम सिखाए जाते हैं जिसमें हर एक पशु मुद्रा के बारे में जानकारी दी जाती है।  जिससे शरीर में फुर्तीलापन, मजबूती और लचीलापन आता है। कलरीपायट्टु में  9 पशु मुद्रा होती है। पशु मुद्रा को मलयालम में Vadivu कहा जाता है।

हिंदी नाम अंग्रेजी नाम मलयालम नाम
हाथी मुद्रा Elephant Posture  Gajavadivu
सिंह मुद्रा Lion Posture  Simhavadivu
घोड़े की मुद्रा Horse Posture  Aswavadivu
मुर्गा मुद्रा Rooster Posture  Kukkudavadivu
सूअर की मुद्रा Boar Posture  Varahavadivu
मयूर मुद्रा Peacock Posture  Mayurvadivu
बिल्ली मुद्रा Cat Posture  Marjaravadivu
मछली मुद्रा Fish Posture Matsyavadivu
नाग मुद्रा Snake Posture Sarpavadivu

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कोल्थारी ( Kolthari ) :-

कोल्थारी के प्रशिक्षण में लकड़ी से बने हथियार से लड़ना सिखाया जाता है इसमें कई प्रकार के हथियार शामिल होते हैं।

हिन्दी नाम  अंग्रेजी नाम  मलयालम नाम 
लंबी छड़ी Long Stick Kettukari
छोटी छड़ी Short Stick Muchan
घुमावदार छड़ी Curved Stick Otta
अतिरिक्त लंबी छड़ी  Extra Long Stick  Pandiraan veeshel
गदा  Gada  Gaddah

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अन्कथारी ( Ankathari ) :-

कलरीपायट्टु में तीसरा चरण अन्क्थारी होता है। जिसमें धातु से बने हथियार का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस चरण में धातु से बने भिन्न-भिन्न धारदार हथियार से लड़ने का प्रशिक्षण दिया जाता है।

हिन्दी नाम अंग्रेजी नाम मलयालम नाम
ख़ंजर Dagger Kadari
भाला Spear Kundam
तलवार और ढाल Soward and Shield Valum Parichayum
लंबा तलवार Long Soward Udaval
लचीला तलवार Flexible Soward Urumi

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वेरुमकाई (Verumkai) :-

वेरुमकाई कलरीपायट्टु का चौथा चरण होता है, जिसमें बिना किसी हथियार के ही केवल हाथों से लड़ना होता है।  यह कलारिपयाट्टू का सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है जिसके बाद ही आपको मर्म बिंदु का ज्ञान प्राप्त होता है। मर्म बिंदु वह बिंदु कहे जाते है  जहां एक ही प्रहार में लोगों को मारा जा सकता है। शरीर में 108 मर्म बिंदु मौजूद होते हैं।

कलरीपायट्टु में दो शैलियां होती हैं।  पहली है उत्तरी शैली जिसे मलयालम में वडक्कन कलारी के नाम से जाना जाता है।  दूसरी दक्षिणी शैली होती है जिसे मलयालम में थेक्कन कलारी कहा जाता हैं।

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सरल शब्दों में समझें तो इसके प्रशिक्षण की शुरुआत पूरे शरीर के तेल मालिश से की जाती है ताकि शरीर ढीला और लचीला हो जाए। चाट्टम (कूद), ओट्ट्म (दौड़) और मरिचिल (कलाबाजी) जैसी गतिविधियां भी इस युद्ध कला के अंग मानी जाती हैं।  तलवार, कटार, भाला, मुग्दर और धनुष-बाण जैसे हथियारों का प्रयोग करना भी इसमें सिखाया जाता है। कलरीपायट्टु को सभी मार्शल आर्ट की मां कहा जाता है।  इसका प्राथमिक लक्ष्य है मन और शरीर के बीच चरम सामंजस्य को स्थापित करना, और दूसरा लक्ष्य है देशी औषधि विद्या में पारंगत होना। जूडो, कराटे, कुंगफू, ताइक्वोंडो और अन्य मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु के आगे कुछ भी नहीं है। इतने समय पहले विकसित की गई यह विद्या आज भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अलग रूप में मार्शल आर्ट के नाम से प्रचलित हैं।

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