इस पूरे विश्व में बाल यौन अपराध एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है। देश में बाल यौन शोषण को मद्देनज़र रखते हुए POCSO (पॉक्सो) नाम का प्रावधान बनाया गया है। POCSO Act यानी The Protection Of Children From Sexual Offences Act. इस अधिनियम को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने साल 2012 में POCSO Act-2012 के नाम से बनाया था जिसके माध्यम से नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे घिनौने यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है।
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केरल उच्च न्यायालय का फैसला
ध्यान देने वाली बात यह है कि इसी कानून को लेकर केरल उच्च न्यायालय ने अपना एक फैसला सुनाया है। जिसके अंतर्गत व्यक्तिगत कानून के तहत मुसलमानों के विवाह को POCSO अधिनियम के दायरे से बाहर नहीं रखा जाएगा। न्यायमूर्ति बेचू कुरियन थॉमस ने इस पर कहा है कि यदि विवाह में एक पक्ष नाबालिग है तो विवाह की वैधता के होने के बावजूद पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध लागू होंगे।
केरल हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ और बाल विवाह को लेकर एक आरोपी की जमानत याचिका पर अपनी सुनवाई करते हुए कहा है कि अगर आरोपी मुस्लिम है, तब भी उस पर पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) लागू होता है। पर्सनल लॉ के अंतर्गत मुस्लिमों के बीच हुई शादी पॉक्सो एक्ट के दायरे से बाहर नहीं रखी जाएगी। पति अगर नाबालिग पत्नी के साथ संबंध बनाता है तो उस पर पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज किया जा सकता है।
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लड़की की उम्र केवल 14 वर्ष थी
अभी हाल ही में जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की सिंगल बेंच ने एक आरोपी की जमानत याचिका पर अपना ये फैसला सुनाया है कि अगर कोई लड़की नाबालिग है तो पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध लागू होगा। न्यायालय ने अपना यह फैसला नाबालिग लड़की के अपहरण और दुष्कर्म के आरोपी 31 वर्षीय खालिद-उर रहमान की जमानत याचिका को खारिज करते हुए सुनाया है। रहमान पर तिरुवल्ला पुलिस द्वारा यह मामला दर्ज़ किया गया था। उन पर बंगाल से एक नाबालिग बच्ची का अपहरण करके उसे यौन प्रताड़ना देने का आरोप लगाया गया था। जिस समय लड़की का अपहरण किया गया था उस समय लड़की की उम्र 14 वर्ष थी और बाद में वह गर्भवती भी हो गयी थी।
आरोपी का इस मामले को लेकर कहना था कि उसने कानूनी रूप से मार्च 2021 में लड़की से शादी की थी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड युवा अवस्था प्राप्त कर लेने के बाद समुदाय की लड़कियों के विवाह की अनुमति प्रदान करता है। उस पर पॉक्सो अधिनियम के तहत मुकदमा नहीं किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं उसने अपने दावे के समर्थन में हरियाणा, दिल्ली और कर्नाटक हाईकोर्ट के पहले के फैसलों की भी बात कही थी लेकिन न्यायालय ने उसकी सभी दलीलों को मानने से इंकार किया और कहा कि बाल विवाह को मानवाधिकार का उल्लंघन माना जाता है। बाल विवाह बच्चे की पूरी क्षमता के विकास से समझौता करता है। यह समाज के लिए एक अभिशाप है।
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लक्षद्वीप के कवारत्ती का मामला
ऐसा ही एक और मामला प्रकाश में आया जब लक्षद्वीप के कवारत्ती में एक विशेष पॉक्सो न्यायालय के द्वारा दो बच्चियों के साथ दुष्कर्म के दो मामलों में एक दंपती को दोहरी उम्र कैद की सजा सुनाई गयी थी। विशेष न्यायाधीश अनिल कुमार ने लक्षद्वीप के एक निवासी मूसा कुन्नागोथी और उसकी पत्नी नूरजहां बंडरागोथी को 12 साल से कम उम्र की दो मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म और उनके साथ अश्लील उद्देश्य रखते हुए उसका वीडियो बनाने का दोषी ठहराया था।
आज के समय में बच्चों का यौन शोषण एक सामुदायिक चिंता का विषय बन चुका है। यदि हम भारत की कुल जनसंख्या की बात करें तो इसमें से लगभग 37% भाग बच्चों और वहीं विश्व की कुल जनसंख्या में 20% भाग बच्चों का है। मासूम बच्चों की सुरक्षा को मद्देनज़र रखते हुए केरल उच्च न्यायालय का यह फैसला सराहनीय है।
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