द्रविड़ राजनीति के अंत की नींव पीएम मोदी ने रख दी है

'काशी-तमिल संगमम' से क्या होने जा रहा है, ये समझ लीजिए।

Kashi tamil sangmam

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एकता में अनेकता हमेशा से ही भारत की पहचान रही है। विभिन्न धर्मों, जातियों और वर्गों से जुड़े लोग भारत में एक साथ बड़े ही प्रेम से रहते आ रहे हैं। परंतु इसी का लाभ कुछ राजनेताओं के द्वारा अपनी राजनीति के लिए उठाया गया और इसके माध्यम से उन्होंने देश को बांटने के प्रयास भी किये। उत्तर और दक्षिण भारत में चला आ रहा टकराव इसी का सबसे बड़ा उदाहरण हैं। द्रविड़ राजनीति और द्रविड़-आर्य के झूठे सिद्धांत के जरिए उत्तर और दक्षिण भारत को बांटने की कोशिश होती आ रही है। हालांकि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” अभियान के जरिए द्रविड़ राजनीति का खात्मा करने की तैयारी शुरू कर दी। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे ‘काशी-तमिल संगमम’ के जरिए पीएम मोदी ने द्रविड़ राजनीति के अंत की नींव रख दी?

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वाराणसी में काशी तमिल संगमम

दरअसल, वाराणसी में एक माह के लिए बेहद ही खास ‘काशी तमिल संगमम’ कार्यक्रम का आयोजन कराया जा रहा है। यह कार्यक्रम 16 दिसंबर तक चलने वाला है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी पहुंचकर इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया हैं।

तमिल काशी संगमम के उद्घाटन कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी भी पूरी तरह दक्षिण के रंगों में रंगे नजर आए। इस दौरान वह सफेद रंग के दक्षिण भारत के पारंपरिक पोशाक में दिखायी दिये। कार्यक्रम में तमिलनाडु के 2,500 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। इसका उद्देश्य तमिलनाडु और काशी के बीच सदियों पुराने संबंधों फिर से मजबूत बनाना है। दरअसल, तमिलनाडु सहित दक्षिण भारत के राज्यों के लोगों की भावनाएं वाराणसी और भगवान शिव के साथ जुड़ी हुई हैं।

इससे अलग इस कार्यक्रम के राजनीतिक मायने भी है। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा इस संगम के जरिए तमिलनाडु के लोगों को साधकर दक्षिण भारत के इस राज्य में अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत करना चाहती है। पीएम मोदी ने इस दौरान जो कुछ भी बातें कही, वो बेहद ही महत्वपूर्ण रहीं। अपने संबोधन में उन्होंने वणक्कम और हर हर महादेव बोलकर काशी और तमिलनाडु का नाता जोड़ा और प्राचीनता, संस्कृति, धार्मिक महत्व, अध्यात्म, रीति रिवाज की चर्चा की।

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उत्तर-दक्षिण का संगम

पीएम मोदी ने कहा कि एक ओर पूरे भारत को अपने आप में समेटे हमारी सांस्कृतिक राजधानी काशी है तो दूसरी ओर भारत की प्राचीनता और गौरव का केंद्र, हमारा तमिलनाडु और तमिल संस्कृति है। ये संगम भी गंगा-यमुना जितना ही पवित्र है।

पीएम मोदी ने आगे कहा कि ‘काशी-तमिल संगमम्’ राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए ऊर्जा देगा। हमारे देश में संगमों का बड़ा महत्व रहा है। नदियों और धाराओं के संगम से लेकर विचारों-विचारधाराओं, ज्ञान-विज्ञान और समाजों-संस्कृतियों के संगम का हमने जश्न मनाया है, इसलिए काशी तमिल संगमम् अपने आप में विशेष है, अद्वितीय है।

साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमें आजादी के बाद हजारों वर्षों की परंपरा और इस विरासत को मजबूत करना था, इस देश का एकता सूत्र बनाना था, लेकिन दुर्भाग्य से इसके लिए बहुत प्रयास नहीं किये गये। ‘काशी-तमिल संगमम्’ इस संकल्प के लिए एक प्लेटफॉर्म बनेगा और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए ऊर्जा देगा।

आपको बता दें कि इस कार्यक्रम का आयोजन केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के द्वारा किया जा रहा है।  कार्यक्रम में काशी और तमिलनाडु यानि उत्तर और दक्षिण दोनों क्षेत्रों की परंपरागत जानकारी, कला और व्यापार को लेकर भी चर्चा होगी। शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह आयोजन एक भारत, श्रेष्ठ भारत के विज़न को मज़बूती देने वाला है, साथ ही यह तमिल जैसी प्राचीन भाषा के विकास में मदद पहुंचाने वाला है।

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द्रविड़ पॉलिटिक्स का होगा अंत

दक्षिण भारत और उत्तर को दक्षिण भारत के नेता अपने राजनीतिक फायदे के अलग मानते आए हैं। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण द्रविड़ियन पॉलिटिक्स है। ये पॉलिटिक्स हमेशा उत्तर भारत विरोधी आदर्शों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। लेकिन अब माना जा रहा है कि पीएम मोदी ने काशी तमिल संगम के जरिए द्रविड़ राजनीति के अंत की शुरुआत कर दी है। दक्षिण भारत के नेता अलग देश की मांग करते आए हैं लेकिन पीएम मोदी इन मंसूबों पर पानी फेरते नजर आ रहे हैं। काशी तमिल संगम को बीजेपी के मिशन साउथ से जोड़कर देखा जा रहा है। बीजेपी दक्षिण भारत में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की जुटी हुई है।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस और राहुल गांधी भले ही भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हो, परंतु काशी तमिल संगमम के जरिए असल में भाजपा बिना कहे ही भारत को जोड़ने के प्रयास और सदियों से चले आ रहे भेदभाव को और द्रविड़ राजनीति को खत्म करने के प्रयासों में लग गई है।

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