“हरियाणा ने करके दिखा दिया” लेकिन AAP की मान और केजरीवाल सरकार ने दिल्ली को गैस चेंबर बना दिया

केजरीवाल दिल्ली की जनता को जहरीले हवा से मुक्त कराने में तो असफल रहे और वे केवल दूसरों पर दोष मढ़ने का काम कर रहे हैं। इस बीच हरियाणा ने पराली जलाने के खिलाफ लड़ाई में बड़ी जीत हासिल कर दिखायी हैं।

हरियाणा पराली

अपने कर्मों का ठीकरा दूसरों पर फोड़ना तो कोई अरविंद केजरीवाल से सीखें। दूसरों पर कीचड़ उछालना हो तो अरविंद केजरीवाल से सीखें। स्वयं की कमियों को छिपाकर दूसरों की कमियों का बखां करना हो तो भी कोई अरविंद केजरीवाल से सीखें। दिल्ली के मुखिया अरविंद केजरीवाल को इन सबमें महारत हासिल है। केजरीवाल वैसे तो लगते बहुत ज्ञानी हैं परंतु उनके इतने ज्ञान का आखिर क्या लाभ, जब देश की राजधानी दिल्ली को वे जहरीले धुएं से मुक्त नहीं करा पा रहे हैं।

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केजरीवाल का ब्लेम गेम जारी

पिछले 7 वर्षों से केजरीवाल दिल्ली की सत्ता पर काबिज हैं, परंतु इन सात वर्षों में वे प्रदूषण का कोई समाधान नहीं निकाल पाये। बातें बड़ी-बड़ी, वादे बड़े-बड़े बस केजरीवाल को यही करना अच्छे से आता है। क्योंकि जमीनी स्तर पर तो उनकी बातों और वादों का कोई असर देखने को मिलता नहीं हैं। हर वर्ष नवंबर के आसपास का समय आता है और दिल्ली की हवा में जहर घुल जाता हैं और दिल्लीवालों को इसी जहर में सांस लेने को मजबूर होना पड़ता हैं। पहले तो केजरीवाल के लिए फिर भी आसान था। पहले वो दिवाली पर फोड़े जाने वाले पटाखों और पंजाब जैसे राज्यों में जलने वाली पराली को प्रदूषण का जिम्मेदार बताकर अपनी जिम्मेदारी से कदम पीछे खींच लेते थे। परंतु अब समस्या यह है कि अब जब पंजाब में उनकी स्वयं की सरकार है तो केजरीवाल ने सोचा कि इस बार प्रदूषण का दोष किस पर डाला जाये?

परंतु केजरीवाल तो केजरीवाल हैं। उन्हें अपनी कमियों का ठीकरा दूसरों पर फोड़ना बहुत अच्छे से आता है। तो इस बार वो दिल्ली के जहर के लिए केंद्र सरकार से लेकर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों तक को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर अपने एक हालिया बयान में केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। दिल्ली के मुुखिया ने कहा– ‘प्रदूषण पूरे उत्तर भारत की समस्या है। इसको लेकर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। ऐसे दिखाया जा रहा है कि केवल दिल्ली और पंजाब में ही प्रदूषण है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश के शहरों में भी तो प्रदूषण है और इसका समाधान प्रधानमंत्री को करना है। इस मामले पर समाधान के लिए पीएम सभी राज्यों की बैठक क्यों नहीं बुला रहे?’ केवल इतना ही नहीं इस दौरान केजरीवाल ने तो इस पूरे मामले को लेकर केंद्र सरकार से इस्तीफा देने की बात तक कह दी।

वहीं पंजाब के कैबिनेट मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर ने पराली जलाने के मामले में हिमाचल और हरियाणा को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। यहां आम आदमी पार्टी द्वारा पूरा का पूरा दोष इन राज्यों पर मढ़ने की कोशिश की जा रही है। परंतु केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी जो हरियाणा को प्रदूषण और पराली जलाने के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, उन्हें कुछ आंकड़ों पर गौर कर लेना चाहिए जो बताते हैं कि राज्य में पराली जलाने की घटनाओं में कितनी कमी आयी है।

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हरियाणा में पराली जलाने के मामलों में भारी कमी

सरकारी आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में पराली जलाने के मामले में काफी कमी देखने को मिली है। इस वर्ष 3 नवंबर तक हरियाणा में इस पराली जलाने के कुल 2,377 मामले सामने आये हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 30 प्रतिशत कम है। पिछले साल इसी दौरान तक राज्य में पराली जलाने के कुल 3,438 मामले दर्ज किये गये थे। जिलों के मुताबिक पराली जलाने के जो मामले 15 सितंबर से 3 नवंबर तक देखे गए उसमें अधिकतर फतेहाबाद, कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर से सामने आए हैं और यह पिछले साल की तुलना में बहुत कम है।

करनाल में जहां बीते साल 763 मामले दर्ज हुए थे, वहीं इस बार मामलों में दो तिहाई की कमी सामने आयी है और यहां 264 केस ही दर्ज किये गये। इस तरह कैथल में बीते साल 865 मामलों की तुलना में इस बार सिर्फ 563 घटनाएं ही सामने आयीं, जबकि कुरक्षेत्र में साल 2021 में जहां 476 खेत जलाने की घटनाएं दर्ज की गयी थी। वहीं इस साल ये घटकर 289 ही दर्ज हुई है। करनाल के किसानों के अनुसार इसके पीछे का बड़ा कारण इस साल जिलों में बड़े स्तर पर निजी ठेकेदारों का बेलर मुहैया कराना है।

परंतु ऐसा नहीं है कि हरियाणा में पराली जलाने के मामले केवल एक ही वर्ष से घट रहे है। यदि हम पिछले छह साल के आंकड़ों पर गौर करेंगे तो तब से लेकर अब तक इनमें 55 फीसदी की कमी दर्ज की गयी है। साल 2016 में पराली जलाने की 15,685 घटनाएं दर्ज हुई थी, जो साल 2021 में घटकर 6987 रह गई थी। यानी पिछले कुछ वर्षों तक हरियाणा से भी बड़ी मात्रा में पराली जलाने की घटनाएं सामने आया करती थीं, परंतु हरियाणा सरकार ने इस पर  काफी काम किया और इसका परिणाम ही यह है कि अब इन मामलों में भारी कमी आ गयी है।

देखा जाये तो हरियाणा सरकार ने किसानों को पराली जलाने के रोकने के लिए कई कदम उठाये हैं। खट्टर सरकार किसानों को पराली नहीं जलाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कई लाभकारी योजनाएं चला रही है, जिसमें नगद पुरस्कार, सब्सिडी शामिल है। किसानों को 1 हजार रुपये प्रति एकड़ प्रदान किए जा रहे हैं। वहीं 50 रू प्रति क्विंटल राशि और सब्सिडी पराली की गट्ठर को बनाने के लिए आवश्यक उपकरण प्रबंध के लिए दिए गए हैं। इतना ही नहीं सरकार किसानों को फसल के बचे हुए प्रबंधन के लिए आवश्यक उपकरण के लिए 50 फीसदी की सब्सिडी और कस्टम हायरिंग सेंटर पर 80 फीसदी की सब्सिडी भी प्रदान कर रही है।  किसान पराली के गट्ठर करनाल और पानीपत के प्लांट में ले जाते हैं तो उन्हें 2 हजार रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराई जाएगी।

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केजरीवाल विज्ञापनों पर खर्च कर रहे अधिक पैसा

हरियाणा की खट्टर सरकार ने पराली की समस्या का समाधान निकालने के लिए कई कदम उठाये, जिसका परिणाम भी अब हमारे सामने हैं। परंतु केजरीवाल ने दूसरों पर दोष मढ़ने के सिवाए दिल्ली को जहरीले धुएं से मुक्त कराने के लिए क्या किया? केजरीवाल ने जब पराली को खाद्य बनाने के बड़े-बड़े दावे किये तो जरूर है, लेकिन RTI की रिपोर्ट के अनुसार अरविंद केजरीवाल ने जहां किसानों को 3 लाख रुपये पराली बायो डीकंपोजर वितरित किए हैं, लेकिन वहीँ कही अधिक पैसा उन्होंने अपने विज्ञापनों पर खर्च किया। रिपोर्ट के अनुसार केजरीवाल ने 7.50 करोड़ रुपये खर्च कर दिये हैं।

न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली सरकार ने 2020-21 में 22 लाख रुपये और 2021-22 में 46 लाख रुपये बायो-डीकंपोजर के छिड़काव पर खर्च किए थे। वहीँ इस बीच, 2020-21 में इसके समाधान के लिए विज्ञापनों पर 16 करोड़ रुपये और 2021-22 में 7 करोड़ रुपये यानी कुल 23 करोड़ रुपये खर्च कर डाले। इसी तरह दिल्ली सरकार ने बायो डीकंपोजर के छिड़काव की तुलना में इसके विज्ञापन पर 72 गुना अधिक खर्च कर डाले। विज्ञापनों पर खर्च किये दिये। इन सभी बातों से एक बात तो साफ हो जाती है अरविंद केजरीवाल केवल दूसरों पर उंगली उठा सकते है, बाकि जब करने की बारी आती है तो उनका डब्बा गुल हो जाता है।

 

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