भारत अपनी समृद्ध ऐतिहासिक धरोहरों, वास्तुकला और सांस्कृतिक विविधता के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। परन्तु वैश्विक पटल पर जब भारतीय इतिहास की बात की जाती है तो इतिहास के मध्यकाल वाले भाग की वास्तुकला (Ancient Hindu Temples) को बहुत अधिक प्रचारित किया जाता है। जिसमें ताजमहल, लालकिला इत्यादि संरचनाओं की बात अधिक की जाती है। इसके अलावा वैसे सामान्य लोग जो इतिहास के बारे में कम जानते हैं वो भी भारतीय वास्तुकला के नाम पर केवल ताजमहल जैसे स्थानों का ही नाम जानते हैं, या ये कहें कि उन्हें बार-बार, बार-बार इन्हीं स्थलों के बारें में अधिक से अधिक बताया गया।
वहीं दूसरी तरफ भारतीय वास्तुकला का विकास तो ताजमहल बनने से बहुत पूर्व ही किया जा चुका था। यही नहीं भारत में ताजमहल से पहले ही कई ऐसे मंदिरों का निर्माण किया जा चुका था जोकि वास्तुकला के आधार पर ताजमहल से कई गुना अच्छे और समृद्ध हैं, जिनके जैसा कोई अन्य संरचना ही नहीं, जो अपनी अद्भुत रचना से किसी को भी आश्चर्य से भर सकते हैं।
यह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्रता के बाद जब भारतीय इतिहास पर गहन शोध हुआ तो उस समय भारत के प्रचीन इतिहास पर उतना ध्यान नहीं दिया गया या यूं कहें कि जानबूझकर उसे दबा दिया गया। लेकिन समय परिवर्तित हुआ और आज लोग अपने पुराने इतिहास को खोजकर पढ़ रहे हैं और पूछ रहे हैं कि भाई हमारे इतिहास को सही रूप में क्यों नहीं बताया गया।
चलिए आज के इस लेख में हम भारत के पांच ऐसे मंदिरों के बारे में जानते हैं जोकि ताजमहल से कई साल पुराने तो हैं ही, इसके साथ ही ये मंदिर वास्तुकला और रहस्य के अद्भुत और उत्कृष्ट उदाहरण भी हैं।
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बृहदेश्वर मंदिर
मंदिरों की इस लिस्ट में सबसे पहला नाम बृहदेश्वर मंदिर (Ancient Hindu Temples) का आता है। बृहदेश्वर तमिलनाडु के तंजावुर (तंजौर) में स्थित एक प्राचीन मंदिर है, जिसका निर्माण चोल वंश के शासक राजराज चोल के द्वारा 1003 से 1010 ई. के बीच में करवाया गया था। इसलिए उनके नाम पर इसे राजराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह अपने समय के महान मंदिरों में गिना जाता है और इसका निर्माण 13 लाख टन ग्रेफाइट पत्थरों द्वारा किया गया है।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि उस समय इतनी बड़ी मात्रा में ग्रेफाइट कहां से लाया गया होगा। इसके अलावा मंदिर की वास्तुकला, पत्थरों पर उकेरी गई प्रतिमाएं व भगवान शिव की दिखाई गई नृत्य भंगिमाएं दुनियाभर के वास्तुशिल्प विशेषज्ञों को न केवल आकर्षित करती हैं बल्कि यह सोचने पर विवश भी करती हैं कि इसका निर्माण किस प्रकार किया गया होगा। बृहदेश्वर मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में भी सम्मिलित किया है।
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होयसलेश्वर मंदिर
मंदिरों की इस लिस्ट में दूसरा नाम कर्नाटक के होयसलेश्वर मंदिर का नाम आता है। यह भारत के एक प्रमुख हिंदू मंदिर में से एक है और कर्नाटक के हालेबिदु नामक स्थान पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी के समय विष्णुवर्धन के शासनकाल में किया गया था और इसके निर्माण में किसी भी प्रकार के गारे या सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया है बल्कि इंटरलोकिंग तकनीक से इसे बनाया गया है।
कर्नाटक में स्थित इस होयसलेश्वर मंदिर को पूर्ण रूप से भगवान शिव को समर्पित किया गया है। इसके आलावा इस मंदिर के परिसर में 250 अलग-अलग हिंदू देवी-देवताओं के चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। यही नहीं वास्तुकला के जानकार इस मंदिर के खंबों की बनावट को देखकर कहते हैं कि इसे किसी मशीन से तैयार किया गया है।
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कोणार्क सूर्य मंदिर
सूची में तीसरा नाम ओड़िशा के पुरी जिले में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर का नाम आता है। सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में गंगवंश के राजा प्रथम नरसिंह देव द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर 229 फीट ऊंचा और एक रथ के आकार में निर्मित है, जिसमें 12 जोड़ी पहिये हैं और रथ को 7 बलशाली घोड़े खीच रहे हैं। देखने पर ऐसा लगता है कि मानों इस रथ पर स्वयं सूर्यदेव बैठे हैं।
मंदिर में सूर्य के उगने से लेकर अस्त होने तक सभी चरणों को दर्शाया गया है। इसके अलावा यूनेस्को द्वारा इसे 1984 में विश्व धरोहर (Ancient Hindu Temples) के रूप में भी सम्मिलित किया जा चुका है।
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चौंसठ योगिनी मंदिर
चौंसठ योगिनी मंदिर मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के मितावली गांव में स्थित है और एक शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण 1323 ईस्वी में कच्छप राजा देवपाल द्वारा करवाया गया था। बताया जाता है कि अपने समय में यह मंदिर ज्योतिष और गणित की शिक्षा प्रदान करने का केंद्र हुआ करता था। इस मंदिर को भी भगवान शिव के प्रति समर्पित किया गया है। भारतीय संसद भवन को इसी चौंसठ योगिनी मंदिर से प्रभावित होकर बनाया गया था।
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हम्पी मंदिर
कर्नाटक का हम्पी मंदिर अपने संगीत की ध्वनि निकालने वाले खंबों के लिए जाना जाता है। इस मंदिर (Ancient Hindu Temples) का निर्माण राजा कृष्णदेव राय के शासनकाल में किया गया था। इस मंदिर में 56 ऐसे खंबे हैं जिन पर हाथ घुमाने से सरगम की ध्वनि निकलती है और यह भारतीय शिल्पकला का एक अद्भुत उदाहरण है।
अंग्रजों को जब इस मंदिर के बारे में पता चला तो उन्होंने इसके रहस्यमयी खंबों के बारे में जानने का प्रयास किया परन्तु उन्हें इसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिल पायी। वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए शोध से यह पता चला है कि इन खंबों को बनाने के लिए इनमें ग्रेनेट, सिलिकेट पार्टिकल और जिओपॉलिमर का उपयोग किया गया था| इस मंदिर के संबंध में वैज्ञानिकों को आश्चर्य इस बात को लेकर है कि दुनिया के सबसे पहले जियोपॉलिमर की खोज साल 1950 में सोवियत यूनियन में हुई थी। इसका मतलब यह है कि जियोपॉलिमर के बारे में भारतीय कारीगर पहले जानते थे।
निष्कर्ष के रूप में देखा जाए तो भारत का प्रचीनकाल का इतिहास मध्यकाल की तुलना में बहुत अधिक समृद्ध और सशक्त था जिसमें वास्तुकला, चित्रकला, नृत्य कला और संगीत जैसी कई कलाओं का विकास अपने चरम पर था लेकिन कुछ लोगों के सोचे समझे षड्यंत्रों ने हमारे गौरवशाली इतिहास को नयी पीढ़ियों तक पहुंचने ही नहीं दिया।
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