जब बिहार को देश का सबसे गरीब राज्य बने रहने का ‘श्राप’ मिला

22 वर्ष पूर्व बिहार को दो हिस्सों में बांट दिया गया और तब झारखंड अस्तित्व में आया। इस बंटवारे से झारखंड को कोई लाभ नहीं हुआ, वहीं दूसरी तरफ बिहार के लिए यह बंटवारा श्राप साबित हुआ।

बिहार झारखंड बंटवारा, The day Bihar was cursed to become the poorest state in the country-

Source- TFI

बिहार झारखंड बंटवारा – भारतीय इतिहास में 15 अगस्त 1947 का दिन सबसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक दिनों में से एक है, जहां से भारत ने एक नयी उड़ान भरी। 200 वर्षों तक गुलाम रहने के बाद भारत आजाद तो हो गया था, परंतु स्वतंत्रता के बाद भी भारत के सामने कई चुनौतियां थीं। इनमें से एक सबसे बड़ी चुनौती राज्यों के पुनर्गठन की मांग थी, जो कि  आजादी के बाद से लेकर वर्ष 2013 तक तेलांगना और अन्य राज्यों के रूप में निरंतर चलती रही। आज हम इस लेख में बात करने जा रहे हैं बिहार और झारखंड के बंटवारे की। आज से 22 वर्ष पूर्व बिहार दो हिस्सों में बंट गया था और तब अस्तित्व में आया एक नया राज्य झारखंड। 15 नवंबर को झारखंड का स्थापना दिवस मनाया जाता है। झारखंड के बिहार से अलग होकर एक राज्य के अस्तित्व में आने की कहानी बड़ी ही रोचक है। आइए जानते हैं इसके बारे में…

दरअसल, स्वतंत्रता के बाद वर्तमान समय का झारखंड, बिहार राज्य का ही हिस्सा हुआ करता था और यह कोयला, लोहा, तांबा, यूरेनियम, बॉक्साइट, ग्रेनाइट, चांदी और डोलोमाइट जैसे खनिज पदार्थों के लिए जाना जाता था। परंतु अंग्रेजों के जाने के बाद देश में औद्योगिक विकास के नाम पर इस क्षेत्र के खनिजों का खूब जमकर शोषण किया गया या यूं कहें कि बाहुबलियों के द्वारा बंदरबांट किया गया जिस कारण वहां के आदिवासी समुदाय के बीच में असंतुष्टि का भाव उत्पन्न होने लगा और धीरे-धीरे सुलग रही आग अंत में एक ज्वालामुखी का रूप लेने लगी। ये ज्वालामुखी जब फटता है तो लावा के रूप में झारखंड नाम का एक राज्य हमारे सामने आता है।

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बिहार झारखंड बंटवारा

झारखंड को अलग राज्य बनाने की बात आती है तो सबसे पहले हमारे दिमाग में यह प्रश्न अवश्य आता है कि इसकी मांग सबसे पहले किसने की थी? तो इस लिस्ट में सबसे ऊपर नाम जयपाल सिंह मुंडा का आता है। ये राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद और 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे। उनकी कप्तानी में 1928 के ओलिंपिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। जयपाल सिंह मुंडा ही वे व्यक्ति थे, जिन्होंने 1952 में पहली बार अलग राज्य बनाने की मांग की थी। लेकिन झारखंड राज्य की इस यात्रा में एनई होरो, बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन, डॉ राम दयाल मुंडा जैसे कई नाम आते हैं और अंत में एक लंबे संघर्ष के बाद सन् 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा झारखंड को राज्य का दर्जा दे दिया गया था।

देखा जाये तो झारखंड को एक अलग राज्य बनाने की मांग तो बड़ी ही तेजी से उठी थी, परंतु विकास के मामले में यह राज्य कहीं न कहीं पीछे रह गया। यहां के प्राकर्तिक संसाधन कुछ लोगों के लिए सिर्फ पैसा कमाने का एक जरिया बनकर रह गए। इसके अलावा अस्तित्व में आते ही झारखंड सियासी अस्थिरता के भंवर में भी फंसने लगा। भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, गरीबी-पिछड़ापन व प्रशासनिक कमजोरी समेत कई तरह की समस्याएं विकराल होती चली गयी।

विकास के नाम जिस राज्य का गठन किया गया था उस कसौटी पर अब तक सूबे को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायीं हैं वहीं दूसरी ओर इसी के साथ अस्तित्व में आए छत्तीसगढ़ व उत्तराखंड जैसे राज्य विकास में इससे आगे निकल चुके हैं और झारखंड अभी भी एक पिछड़ा राज्य बना हुआ है। झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता, नक्सलवाद और भ्रष्टाचार जैसी कई प्रकार की समस्याएं रही हैं। इसके अलावा मौजूदा हेमंत सोरेने सरकार पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं।

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झारखंड के प्राकर्तिक संसाधनों पर एक नजर

प्राकर्तिक संसाधनों की कसौटी के आधार पर अगर झारखंड को देखा जाए तो यह सबसे धनी राज्यों में से एक है, क्योंकि यहां पर कोयला, लौह, तांबा, यूरेनियम, बॉक्साइट, ग्रेनाइट, चूना पत्थर, चांदी और डोलोमाइट जैसे खनिजों की खदानें उपलब्ध हैं। झारखंड भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है और इसे ‘जंगल ऑफ फॉरेस्ट’ या ‘बुशलैंड’ के नाम से भी जाना जाता है। झारखंड राज्य में 24 जिले हैं. इस प्रदेश का कुल क्षेत्रफल लगभग 79 हजार 716 वर्ग किमी है, जो कि इसे क्षेत्रफल के आधार पर देश का 15वां सबसे बड़ा राज्य बनाता है। इसके अलावा झारखंड के कई पर्यटक स्थल काफी आकर्षक हैं जैसे- यहां के अद्भुत झरने, दर्शनीय पहाड़ियां, वन्यजीव अभयारण्य, दामोदर नदी पर पंचेत बांध और पवित्र स्थान (बैद्यनाथ धाम, पारसनाथ, रजरप्पा) आदि।

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बिहार भी नहीं कर सका विकास

अब यह तो हो गयी झारखंड की बात। अब आते हैं बिहार पर। बिहार का बंटवारा होने के बाद झारखंड नाम का एक नया राज्य तो बन गया, परंतु इसके बाद बिहार के पास बचा ही क्या था? क्योंकि सभी संसाधन तो झारखंड के पास चले गये थे। अब यहां रह ही क्या गया था केवल नदियों का बालू और खेती का आलू। इसके अलावा रही बची कसर लालू के जंगल राज ने पूरी कर दी जिससे वर्तमान समय में बिहार एक पलायनवादी राज्य बनकर रह गया है। आज बिहार की पहचान देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक के तौर पर होती हैं।

तो यह कहा जा सकता है कि बिहार और झारखंड के बंटवारे से दोनों में से किसी भी राज्य का भला नहीं हुआ। आज भी बिहार और झारखंड देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक बने हुए हैं।

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