सच्ची रामायण-2: रावण कोई ‘जेंटलमेन’ नहीं था बल्कि इसलिए वो माता सीता को छू भी नहीं सका

सोशल मीडिया पर रावण के हितैषियों द्वारा निरंतर ऐसी बातें की जाती हैं कि रावण बहुत अच्छा इंसान था, इतने दिनों तक सीता उसके पास थीं लेकिन इसके बावजूद भी उसने सीता को छुआ भी नहीं। यह अब तक की दूसरी सबसे बड़ी फ़ेक न्यूज़ है। सच यहां जान लीजिए।

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सनातन संस्कृति में वेदों के बाद अगर किसी ग्रंथ की बात आती है तो हमारे सामने भगवान राम के जीवन को, उनके उत्कृष्ट चरित्र को वर्णित करने वाले ग्रंथ रामायण का नाम सबसे ऊपर आता है। परन्तु वर्तमान समय में हमारे सामज में लोगों के बीच रामायण को लेकर तथ्यों के नाम पर कई त्रुटिपूर्ण बातें फैली हुई दिखायी देती हैं। जिसमें रावण को विद्वान बताना, शिवभक्त बताना और माता सीता के अपहरण से संबंधित कई गलत कहानियों को प्रस्तुत करना जैसे अनेकों भ्रामक बातें सम्मिलित हैं।

इस लेख में जानेंगे कि माता सीता का अपहरण करने जैसा पाप करने के बाद क्यों रावण ने उन्हें स्पर्श नहीं किया और कैसे रावण कोई भद्र पुरुष नहीं था।

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व्यभिचारी था रावण

वास्तव में, भगवान ब्रह्मा के द्वारा शक्ति प्राप्त करने के बाद अहंकार में चूर रावण ने हर एक स्थान पर उत्पात मचाना शुरू कर दिया और सभी लोगों से व्यर्थ में लड़ाई करना प्रारंभ कर दिया। यदि रावण के चरित्र की ओर ध्यान दिया जाए तो पाएंगे कि वह एक व्यभिचारी था। लेकिन पेंच यहां पर फंसता है कि उसने माता सीता का अपहरण तो किया परंतु उन्हें कभी स्पर्श नहीं किया। ऐसा क्यों? तो यहां यह जानना अति आवश्यक है कि रावण के द्वारा ऐसा न करने के पीछे का सबसे बड़ा कारण थीं तपस्विनी वेदवती जिनके श्राप के कारण रावण किसी भी स्त्री को उसकी स्वेच्छा के बिना स्पर्श ही नहीं कर सकता था।

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कौन थीं तपस्विनी वेदवती और क्यों दिया श्राप

ब्रह्म वैवर्त पुराण की एक कथा के अनुसार तपस्विनी वेदवती देवी लक्ष्मी का एक अवतार थीं। बताया जाता है कि इन्होंने जन्म के कुछ समय पश्चात ही चारों वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। परन्तु एक दिन वेदवती अपनी तपस्या में लीन थीं तभी वहां पर उस समय का सबसे भयावह राक्षस रावण आता है और उसकी दृष्टि वेदवती के ऊपर पड़ती है। रावण वेदवती की सुंदरता को देखकर मोहित हो जाता है और उनके तप को भंग कर देता है। इतना ही नहीं बलपूर्वक उन्हें विवाह के लिए विवश भी करता है लेकिन वेदवती विवाह के लिए स्पष्ट शब्दों में मना कर देती हैं। वेदवती के मना करने पर क्रोधित हो चुका रावण उनकी पवित्रता को भंग करने का प्रयत्न करता है। इस पर वेदवती रावण को श्राप दे देती हैं कि “आज के बाद तू यदि किसी भी स्त्री को बिना उसकी इच्छा के स्पर्श करेगा तो तेरे सर के सौ टुकड़े हो जाएंगे। बस वेदवती के इसी श्राप ने माता सीता को स्पर्श करने से रावण को रोका हुआ था। वह कोई भद्र पुरुष नहीं था बल्कि उसे केवल और केवल अपनी मृत्यु का भय था।

जैसा कि आपको पता है आज सोशल मीडिया का दौर है या यूं कहें कि भ्रामक जानकारियों का दौर है। प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में अपना फोन है और उसमें इंटरनेट, जिस पर वह आलतू-फालतू, भ्रामक चीजें देखता रहता है और उसी को पूर्ण सत्य मान लेता है। कुछ इसी प्रकार समाज में तथाकथित बुद्धिजीवियों ने पूर्ण रूप से निहित स्वार्थ के तहत रावण की छवि को महान बनाने के लिए रामायाण के सीता माता के अपहरण के प्रसंग को अपने अनुसार प्रस्तुत करना शुरू किया है।

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रावण के चरित्र पर गहन अध्ययन की आवश्यकता है

विचित्र बात यह है कि सनातन धर्म और सनातन संस्कृति को मानने वाले लोग भी इस तथ्य पर कई सालों से विश्वास कर रहे हैं कि रावण बड़ा ही महान विद्वान, चारों वेदों का ज्ञाता और शक्तिशाली व्यक्ति था परन्तु रावण के चरित्र पर गहन अध्ययन किया जाए तो वह एक व्यभिचारी और मूर्ख व्यक्ति के रूप में दिखायी देगा। उसके महल में बहुत सारी स्त्रियां रहती थीं जिनके साथ वह व्यभिचार करता था। उसने बाली जैसे कई लोगों के साथ व्यर्थ की लड़ाई भी की थी जिसमें उसे बुरी तरह धोया गया था। तो यह था रावण के माता सीता के न स्पर्श करने के पीछे का तथ्य। किसी भी उलजूलूल और मनगढ़ंत बातों के पीछे भागने से अच्छा है कि अपने धर्म ग्रंथों का गहन अध्ययन किया जाए और तब किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाए।

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