हर कथा में एक अलग कथा छिपी है, जो चर्चा में छाने के लिए लालायित है। अब देव आनंद को ही देख लीजिए, इनकी हर फिल्म में एक मर्म, एक अलग दृष्टिकोण है परंतु एक ऐसा भी समय था, जब इन्हें अपने दृष्टिकोण के पीछे व्यभिचार फैलाने के आरोप भी लगे और इन्हें सरकार की कार्रवाई का सामना भी करना पड़ा। इस लेख में हम इस मामले के पीछे की कहानी को समझेंगे और यह भी जानने का प्रयास करेंगे कि क्यों आरके नारायण की ‘द गाइड’ का फिल्मी संस्करण यानी “गाइड” विवादों के घेरे में रहा और क्यों इसके लिए देव आनंद और उनके भ्राता को कोर्ट के चक्कर तक काटने पड़े।
आरके नारायण से कौन परिचित नहीं है? इनके सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘मालगुडी डेज’ पर आधारित टीवी सीरियल को देखकर कितने लोगों के बचपन की स्मृतियां सुनहरी रही होंगी। परंतु सभी शंकर नाग जितना दिमाग थोड़े ही लगाते हैं। कुछ देव आनंद और पर्ल एस बक जैसे भी होते हैं। आप भी सोच रहे होंगे, ये कैसी बकवास है? द गाइड तो काफी विश्वप्रसिद्ध फिल्म थी, जिसे हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों में बनाया गया और उसने फिल्मफेयर में कई पुरस्कार कमाए। इतना ही नहीं, इसके कुछ गीतों पर धन तो ऐसे बहाया गया जैसे आगे कभी कोई गीत ही नहीं बनेगा, जैसे ‘पिया तोसे नैना लागे रे’, ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ इत्यादि। परंतु तब भी यह फिल्म विवादों के घेरे से आ गई।
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असल में चर्चित अमेरिकी लेखिका पर्ल एस बक एवं हॉलीवुड डायरेक्टर डैनी लेवेस्की इस पुस्तक पर फिल्म बनाने को उत्सुक थे। देव आनंद उनकी बात मान गए लेकिन उन्होंने उनके सामने शर्त रखी की फिल्म हिंदी में भी बनेगी और उसकी स्क्रिप्ट वो अपने हिसाब से रखेंगे। दोनों ही फिल्में बन गईं और इसका हिंदी वर्ज़न सेंसर बोर्ड के पास गया तो वहां एक सीन की वजह से ये फिल्म अटक गई।
दिक्कत यह थी कि इस फिल्म के माध्यम से व्यभिचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था और इसके अंग्रेजी संस्करण को देखकर स्वयं आरके नारायण ने इस फिल्म की आलोचना करते हुए इसे ‘A Misguided Guide’ (भटका हुआ गाइड) कहा था। कहा जाता है कि देव आनंद को तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी के समक्ष गुहार लगानी पड़ी, जिनके साथ उनके अच्छे संबंध थे, तब जाकर यह फिल्म प्रदर्शित हुई। इसके अतिरिक्त द गाइड का फिल्मी संस्करण मूल संस्करण से काफी भिन्न है और ऐसे में आरके नारायण को आक्रोश अकारण ही नहीं आया होगा। उदाहरण के लिए उपन्यास में राजू, रोज़ी का प्यार पाने के लिये जतन करता है परंतु फ़िल्म में रोज़ी तो पहले ही अपनी शादी से दु:खी है और मार्को को किसी और के साथ देखकर ख़ुद ही राजू के पास आ जाती है।
इतना ही नहीं में राजू की मृत्यु प्रसिद्धि में होती है और वर्षा होने से गांव का अकाल भी दूर हो जाता है लेकिन उपन्यास में राजू की मौत ग़ुमनामी में होती है और गांव के अकाल ख़त्म होने का भी कोई ज़िक्र नहीं है। हो सकता है, देव आनंद और विजय आनंद कथावाचन का एक नया दृष्टिकोण भारत को पेश करना चाहते थे परंतु वे भूल गए थे कि हर चीज का तरीका होता है और इसी कारण से उन्हें जनता के कोपभाजन का सामना करना पड़ा। भले ही गाइड सफल रही परंतु उसके ऊपर से व्यभिचार और शुद्धता के पैमानों पर खरा न उतरने का आक्षेप कभी नहीं उतर पाया।
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