अमृत सागर की एकमात्र फिल्म ‘1971’ आज भी एक क्लासिक है

2007 में जब यह फिल्म प्रदर्शित हुई तो उस समय समीक्षकों ने इसे बहुत सराहा था लेकिन फिल्म कई वजह से दर्शकों के बीच कायदे से नहीं पहुंच पाई थी. कोविड काल इसके लिए वरदान सिद्ध हुआ.

film 1971

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आज जब हीरोपंती 2, लाल सिंह चड्ढा, दोबारा जैसी फिल्मों का उपहास उड़ाया जाता है और जनता उन्हें सिरे से बॉक्स ऑफिस पर लात मारकर बाहर का रास्ता दिखा देती है, तो हृदय को काफी ठंडक मिलती है। उससे भी अधिक गर्व होता है, जब ‘कान्तारा’, ‘कार्तिकेय 2’, ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्मों को जनता सर आँखों पर नवाती है और उन्हें वह प्रेम देती है, जिसके वे योग्य हैं। पर एक समय वह भी था, जब ऐसी ही फिल्में, विशेषकर बॉलीवुड में अपने बजट बचाने तक को तरस जाती थी। इनका ब्लॉकबस्टर छोड़िए, एक सिम्पल हिट होना स्वप्न के सच होने जैसा होता था और यह बात अमृत सागर से बेहतर कौन जान सकता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे अमृत सागर कि प्रथम और एकमात्र क्रिटिकल सफल फिल्म 1971 ने सिद्ध किया कि क्लासिक कैसे बननी चाहिए।

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2007 में रिलीज हुई थी यह फिल्म

कभी देश को ‘आँखें’ जैसी फिल्में, ‘रामायण’ जैसे विश्वप्रसिद्ध सीरियल से लुभाने के बाद सागर पिक्चर्स ने पुनः फिल्मांकन की ओर अपनी दृष्टि घुमाई और कमान संभाली अमृत सागर ने। उन्होंने एक अनोखा विषय चुना और वह विषय था- 1971 में हिरासत में लिए गए भारतीय सैनिक और बॉर्डर पार उनके साथ किया जा रहा दुर्व्यवहार। इसके परिणामस्वरूप सामने आया ‘1971’।

ये वो समय था जब ‘अमन की आशा’ अपने चरमोत्कर्ष पर थी, लोग हिन्दू, मुस्लिम भाई भाई और भारत, पाकिस्तान के बीच प्रगाढ़ संबंधों पर जोर दे रहे थे। देते कैसे नहीं, जब देश का प्रधानमंत्री स्वयं ये दावा ठोके कि भारत के संसाधनों पर सर्वप्रथम अधिकार देश के अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों का है। ऐसे समय में ऐसी फिल्म की कल्पना भी करना किसी अपराध से कम नहीं था, उसे आत्मसात कर एक मूर्त रूप देना तो बहुत दूर की बात थी।

परंतु अमृत सागर ने यही किया और उन्हें साथ मिला पीयूष मिश्रा जैसे योग्य कलाकार का, जो एक उत्कृष्ट लेखक से कम नहीं हैं। यहीं नहीं, इस फिल्म में उन्हें साथ मिला मनोज वाजपेयी, मानव कुल, कुमुद मिश्रा, रवि किशन, दीपक डोबरियाल जैसे उत्कृष्ट कलाकारों का और स्वयं पीयूष मिश्रा ने भी अपनी बेहतरीन अभिनय से सभी को प्रभावित किया। लेकिन इस फिल्म का दुर्भाग्य देखिए। 9 मार्च 2007 को जब फिल्म का प्रदर्शन हुआ तो उस समय समीक्षकों ने इसे बहुत सराहा था लेकिन फिल्म कई वजह से दर्शकों के बीच कायदे से नहीं पहुंच पाई थी। इस फिल्म में उत्कृष्ट संवाद और कई बोल्ड विषय पर चर्चा होने के बाद भी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप सिद्ध हुई।

कोविड वरदान सिद्ध हुआ

वो कहते हैं न, हर रात के बाद एक सवेरा होता है, सो 1971 के साथ भी वही हुआ। यूं तो इस फिल्म को कुछ ही समय बाद इसकी उत्कृष्टता के लिए सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरुस्कार 2009 में मिला परंतु 2020 में जो कोविड, फिल्म उद्योग के लिए विशेषकर बॉलीवुड के लिए अभिशाप बनकर आया, वो 1971 के लिए वरदान सिद्ध हुआ। जनता की मांग पर सागर पिक्चर्स ने इस फिल्म को अपने यूट्यूब चैनल पर अपलोड किया और वह भी बिल्कुल मुफ़्त और कुछ ही समय में इसे 50 मिलियन से अधिक व्यूज मिल गए। यानी जितना इस फिल्म ने जीवन भर में नहीं कमाया, उससे कहीं अधिक उसने केवल कुछ हफ्तों में स्ट्रीम होकर कमा लिया।

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