करदाताओं के 500 करोड़ अपने चुनावी प्रचार में फूंकने जा रहे हैं नीतीश कुमार?

नीतीश कुमार अब जो करने जा रहे हैं, वो जनता को छलकर अपनी राजनीति करने के सिवाय और कुछ भी नहीं है।

जातिगत जनगणना

SOURCE TFI

जातिगत जनगणना: जनता के पैसों को छलपूर्वक जनता से लो और अपने लाभ के लिए उसे पानी की तरह बहा दो। कुछ ऐसी ही नीति पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार काम कर रहे हैं। उलजूलूल निर्णय लेने के लिए अपनी पहचान बना चुके नीतीश कुमार ने मानो शपथ ली हुई है कि वो सत्ता में बने रहने के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं। बिहार सरकार के द्वारा हाल ही में जो घोषणा की गयी है उससे तो नीतीश कुमार की जनता को छलने की योजना पर और पक्की मुहर लग जाती है।

जातिगत जनगणना

अभी हाल ही में बिहार सरकार ने यह घोषणा की है कि 7 जनवरी से वह अपनी महत्वाकांक्षी जातिगत जनगणना योजना को आरम्भ करेगी और मई के अंत तक इस कार्य को पूरा कर लेगी। इस जनगणना को दो चरणों में पूर्ण किया जाएगा जिसके अभ्यास के लिए लगभग 3,50,000 सरकारी कर्मचारियों को जिला स्तर पर प्रशिक्षित किया जा रहा है।

इस कार्य के पहले चरण में प्रगणक राज्य में हर घर के लिए एक मकान संख्या प्रदान किया जाएगा और परिवारों की संख्या कितनी है, यह जानना होगा। स्कूल के शिक्षक, नगर निगम और ब्लॉक स्तर के सरकारी कर्मचारी इसकी गणना करेंगे। इसके प्रत्येक वार्ड को दो प्रगणक ब्लॉकों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक प्रगणक अपने क्षेत्र में औसतन 150 से 160 घरों को चिह्नित करेगा जिसमें 600 से 700 परिवार शामिल होंगे। वहीं इसके दूसरे चरण में लोगों से परिवार के सदस्यों के विवरण, आय, जाति और अन्य पहलुओं के बारे में सर्वेक्षण किया जाएगा।

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500 करोड़ रुपये

बिहार में जातिगत जनगणना कराने की मांग पिछले तीन साल से की जा रही है। आपको बता दें कि ऐसी मांगों को केंद्र की मोदी सरकार ने सिरे से मना कर दिया था, वो जातिगत जनगणना के पक्ष में नहीं रही है। ध्यान देना होगा कि बिहार में जातिगत जनगणना को एक जून, 2022 को नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक में मंजूरी मिल गयी थी। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए 500 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए। सरकार इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए राज्य आकस्मिकता निधि से धन का उपयोग करेगी। इस निधि के अनुसार, सरकार को मिलने वाले सभी तरह के राजस्व जैसे, सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क आयकर आदि और सरकार के द्वारा दिए गए ऋणों की वसूली से जो धन प्राप्त होता है, उन सब को जमा किया जाता है।

पहली बात तो यह है कि पूरे राज्य का विकास करना ही है, मूलभूत सुविधाओं का ध्यान रखना ही है और समूल जनता के लिए काम करना ही है तो फिर इस जातिगत जनगणना की आवश्यकता ही क्या है? आवश्यकता है न, जनता को मूर्ख बनाकर उनके पैसे और उनके वोट को जो हड़पना है। इस जातिगत जनगणना को करने के पीछे नीतीश कुमार अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहते हैं। चाहे उन्हें जनता के हक का 500 करोड़ रुपये ही क्यों न उड़ा देना पड़े।

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विशेष जाति की जनता को साधना है लक्ष्य

वास्तव में जातिगत जनगणना के पीछे नीतीश कुमार की मंशा केवल इतनी ही है कि वह लोगों की जाति का पता लगा सकें और जान सकें कि किस क्षेत्र में कितने लोग रह रहे हैं। इससे होगा ये कि जिस जाति को चाहें उस जाति की जनता को नीतीश कुमार अपने लोक लुभावन और कभी न पूरे होने वाले वादों से अपनी ओर कर सकेंगे। ऐसा कर वो चुनाव में अपनी जीत के रास्ते को आसानी से खोल पाएंगे। जातिगत जनगणना जनता के हित में तो नहीं दिखायी देती है, हां इतना अवश्य है कि नीतीश कुमार अपना लाभ साधने में लगे हैं।

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शिक्षा की बात हो या फिर स्वास्थ्य सुविधाओं की बात हो या किसी भी मूलभूत सुविधा की बात कर लीजिए, बिहार में जनता इन सारी सुविधाओं के अभाव में जी रही हैं। जनता के लिए तो ये सब कर नहीं सके नीतीश कुमार, उनके पैसों का दुरुपयोग करने का दुस्साहस अवश्य कर रहे हैं।

 

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