दो चोपड़ा बंधुओं की कहानी – एक ने अपना वर्चस्व स्थापित किया तो दूसरे हँसी के पात्र बन गए

विधु विनोद चोपड़ा और चंद्रमौली चोपड़ा यानी रामानंद सागर की वो कहानी, जिसके बारे में कभी बहुत अधिक बताया ही नहीं गया.

विधु विनोद चोपड़ा

Source- TFI

एक कथा सुनाता हूं। दो भाई थे, जिनके बीच में वैसे ही अंतर रखा जाता था, जैसे भारत और पाकिस्तान में, रूस और यूक्रेन में, ताइवान और चीन में है। दोनों के विचारों और उनके दृष्टिकोण में आकाश पाताल का अंतर था परंतु दोनों में एक बात समान थी – दोनों के साथ अनर्थ हुआ और अधर्म ने इनका स्वरूप बदला। परंतु एक ने विपत्ति का सीना तानकर सामना किया और यश एवं सम्मान कमाया, जबकि दूसरे ने उसी विपत्ति का रोना रोते हुए प्रारंभ में समृद्धि कमाई परंतु कालांतर में कोई उसे पानी भी पूछे, ऐसी स्थिति शायद कम ही होगी। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे दो चोपड़ा बंधुओं का सामना अधर्म से हुआ यानी रामानंद सागर और विधु विनोद चोपड़ा का, परंतु एक ने जहां उसी अधर्म से लड़ते हुए अपना वर्चस्व स्थापित किया तो वहीं दूसरा व्यक्ति लोकप्रियता की चकाचौंध में अंधा होकर आज उपहास का विषय मात्र हो चुका है।

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चंद्रमौली चोपड़ा कैसे बन गए रामानंद सागर?

रामानंद सागर और विधु विनोद चोपड़ा भाई थे? ये कैसा संयोग है? ये तो वो बात है कि एक कोयला तो दूसरा पारस मणि। परंतु विधि के विधान ऐसे ही नहीं होते। बहुत कम लोग जानते हैं कि रामानंद सागर का मूल नाम चन्द्रमौली चोपड़ा था, जिनका जन्म लाहौर के निकट असल गुरुके नामक स्थान पर हुआ था। उनके परदादा, लाला शंकरदास चोपड़ा कश्मीर से अविभाजित पंजाब प्रवास कर चुके थे। उनका बचपन बड़ा कष्टकारी था क्योंकि वो किशोर भी नहीं हुए थे, जब उनकी मां का देहांत हो गया और उनके पिता ने दूसरा विवाह कर लिया। उसी कारणवश उनकी नानी ने उन्हें गोद ले लिया और उन्होंने अपना नाम परिवर्तित कर लिया और वो बन गए रामानंद सागर

अपने जीवनयापन के लिए रामानंद सागर ने कई कार्य किये, चाहे वो चपरासी का हो, ट्रक क्लीनर का हो, यहां तक कि वो साबुन भी बेचने से नहीं हिचकिचाए। परंतु उनके लिए आत्मसम्मान सर्वोपरि था और वो रात में उतनी ही तत्परता से अपने अध्ययन पर ध्यान देते। पढ़ाई लिखाई में वो काफी बेहतर थे और उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से संस्कृत और फारसी में प्रथम श्रेणी में पारास्नातक किया और संस्कृत में उन्होंने स्वर्ण पदक भी प्राप्त किया।

दूसरी ओर विधु विनोद चोपड़ा के पास किसी चीज की अनुपलब्धता नहीं थी। धन, धान्य, वैभव, सब कुछ था उनके पास। जनाब तो FTII से भी प्रशिक्षित हैं यानी स्पष्ट शब्दों में चांदी की चमची लेकर पैदा हुए थे। परंतु विपत्ति में ही असली व्यक्तित्व निखर कर आता है। अधर्म और अनर्थ इन दोनों के साथ हुआ और रामानंद सागर तो कहीं के नहीं रहे, उन्हें अपना घर बार लाहौर से छोड़कर बॉम्बे आना पड़ा। इसी भांति 1990 में जब आतंकियों ने कश्मीर पर धावा बोला तो विधु विनोद चोपड़ा को अपनी माता सहित श्रीनगर से अपना घर बार त्यागना पड़ा था।

रामानंद सागर ने नहीं किया समझौता

परंतु यहीं पर दोनों के विचारों में अंतर स्पष्ट दिखाई पड़ा। रामानंद सागर ने विपत्ति में भी अपने आचरण और अपने आदर्श से समझौता नहीं किया। उन्होंने पुनः अपनी प्रतिष्ठा को स्थापित करने हेतु मायानगरी बॉम्बे (अब मुंबई) को अपना घर बनाया और फिर पहले लेखक और फिर निर्देशक के रूप में झंडे गाड़ने लगे। क्या आप जानते हैं कि बहुचर्चित फिल्म बरसात के रचयिता यही रामानंद सागर हैं?

परंतु यह भी एक सत्य है और उन्होंने पैगाम, घूंघट, आरज़ू, आंखें, चरस, प्रेम बंधन जैसे अति लोकप्रिय फिल्म बतौर लेखक और निर्देशक भारतीय सिनेमा को प्रदान किये। पैगाम के लिए उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ संवाद रचयिता एवं आंखें के लिए फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार प्राप्त हुआ था। परंतु उन्हें सबसे अधिक प्रसिद्धि मिली हमारे सबसे लोकप्रिय धारावाहिक, रामायण का निर्माण एवं निर्देशन करके और फिर वो हम सभी के प्रिय बन गए।

परंतु विधु विनोद चोपड़ा? वो कभी भी रामानंद सागर के बाल बराबर भी नहीं बन पाए। निस्संदेह उन्होंने कई सफल फिल्में दी हैं, जैसे परिंदा, मुन्नाभाई श्रृंखला, परिणीता, 3 इडियट्स, पीके इत्यादि परंतु चाटुकारिता करके यश कमाने और अपने बल पर यश कमाने में आकाश पाताल का अंतर रहता है और यही अंतर इन दोनों भ्राताओं के व्यक्तित्व को परिलक्षित करता है। अभी हमने शिकारा पर तो चर्चा भी प्रारंभ नहीं हुई है।

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