आनंद बक्शी की कहानी, जो अपना गीत पूरा करके ही दुनिया से विदा हुए

आनंद बक्शी ने अपने जादुई गीतों से लोगों के दिलों में जगह बनाई। वो अपनी अंतिम सांस तक गीत लिख रहे थे। पढ़िए आज आनंद बक्शी का किस्सा।

आनंद बक्शी

Source- TFI

कोरा कागज़ था ये मन मेरा, लिख लिया नाम इस पर तेरा ‘आराधना‘ फिल्म के इस गीत को लता मंगेशकर और किशोर कुमार ने अपनी मधुर आवाज से पिरोया है। इन गायकों ने जितनी शिद्दत से इस गीत को गया है, उतनी ही शिद्दत से इस गीत को लिखा भी गया है। इस गीत को लिखा है संगीत को गहरायी देने वाले आनंद बक्शी ने। जिन्होंने अपने गीतों के माध्यम से संगीत की परिभाषा ही बदलकर रख दी। अपने गीतों से पूरी कहानी कह देने की कला रखने वाले आनंद बक्शी ऐसे गीतकार थे, जिन्होंने लोगों के दिलों में अपना एक विशेष स्थान बनाया था।

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सफल गीतकार

कभी-कभी हम कोई ऐसा गीत सुनना चाहते हैं जो हमारे दिल को छू जाए और ऐसे समय में हमारे दिमाग में सबसे पहले आनंद बक्शी के गीतों का विकल्प आता है। आनंद बक्शी उन गीतकारों में से थे जो अपने सरल गीतों के माध्यम से लोगों के दिलों तक पहुंच जाते थे। अंग्रेजों के समय फौज में नौकरी (रॉयल इंडियन नेवी में बतौर कैडेट ) करने वाले आनंद बक्शी बंबई आए तो थे केवल एक गायक बनने लेकिन उनके द्वारा लिखे गीत लोगों को खूब भाए।

उन्हें सबसे पहले 1958 में भगवान दादा की फिल्म ‘भला आदमी’ में गीत लिखने का अवसर मिला था। हालांकि 1962 की ‘मेहंदी लगी मेरे हाथ’ से उनको खास पहचान मिली। फिर तो आनंद बक्शी बिलकुल भी नहीं रुके और अपने सुनहरे गीतों का अद्भुत कारवां शुरू कर दिया। 1965 की फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ के सभी गाने सुपर डुपर हिट रहे थे। 1967 में आयी फिल्म मिलन के गीत ‘सावन का महीना पवन करे शोर’ ने आनंद बक्शी को एक सफल गीतकार के रूप में स्थापित कर दिया था।

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अच्छे गायक भी थे आनंद बक्शी

बॉलीवुड के बेहतरीन गीतकार आनंद बक्शी ने 6 से 7 दशकों तक फिल्मों में गाने लिखे। इतना ही नहीं उन्होंने 4000 से भी अधिक गीत लिखे हैं। वो किसी भी फिल्म में फिल्माए जाने वाले स्थितियों को समझकर 8-10 मिनट में ही गीत लिखने का हुनर रखते थे। कई बार संगीतकार और फिल्म निर्देशक गाने को लेकर चर्चा ही कर रहे होते थे और तब तक बक्शी गीत के बोल लिख देते थे। जिंदगी का फलसफा समझाने वाला गीत ‘आदमी मुसाफिर है’ हो या फिर सुपर हिट गीत ‘हम तुम एक कमरे में बंद हों’ या फिर ‘महबूबा महबूबा’ जैसा आइटम नंबर हो, आनंद बक्शी हर तरह के गीत लिखने का गुण रखते थे। 40 बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नॉमिनेट हुए आनंद बक्शी को 4 बार पुरस्कार मिला भी। आनंद बक्शी को लेकर एक और विशेष बात यह है कि वे अद्भुत गीतकार तो थे ही इसके साथ ही वे एक अच्छे गायक भी थे।

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सफलता और लोकप्रियता

1969 में आयी फिल्म आराधना के गीत भी इनके द्वारा ही लिखे गए थे। कोरा कागज़ गीत के लिए आनंद को फिल्मफेयर अवार्ड के नामित किया गया था। ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू’ को गायक किशोर कुमार, अभिनेता राजेश खन्ना और संगीतकार आर. डी. बर्मन की सफलता और लोकप्रियता का काफी श्रेय इन्हें ही दिया जाता है।

वो एक सुनहरा दौर था जब गीतकार आनन्द बख़्शी ने संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ मिलकर ‘फ़र्ज़ , ‘दो रास्ते, ‘बॉबी, ‘अमर अकबर एन्थॉनी और राहुल देव बर्मन के साथ ‘कटी पतंग, ‘अमर प्रेम’, हरे रामा हरे कृष्णा (1971)’ फ़िल्मों में अपने अमर गीत दिए हैं। इतना ही नहीं इन्होंने यश चोपड़ा के लिए ‘चाँदनी, ‘दिल तो पागल है; आदित्य चोपड़ा के लिए ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे, ‘मोहब्बतें फ़िल्मों के लिए सदाबहार गीतों की रचना की। हिंदी के साथ-साथ इन्होंने कुछ पंजाबी गाने भी लिखीं।

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अकेले खड़े थे आनंद बक्शी

वह भी एक दौर था जब एक ओर साहिर लुधियानवी और मजनू सुल्तानपुरी जैसे गीतकार एक अलग ही ढर्रे पर गीत लिख रहे थे और इन दोनों के सामने अकेले आनंद बक्शी थे जो गोपाल दास नीरज जैसे साहित्यकार और गीतकार के रिटायरमेंट लेने के बाद अकेले ही गीत लिखने के मोर्चे को संभाले हुए थे। आनंद बक्शी की सबसे बड़ी खूबी उनकी रेंज थी, वह एक ओर ‘कटी पतंग’ फिल्म का गाना “न उमंग है न तरंग है” लिखते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ वह ‘मोहरा” फिल्म के लिए “तू चीज बड़ी है मस्त मस्त” भी लिखते हैं। आनंद बक्शी के सभी गीतों की विशेषता उनकी सादगी और सरलता है।

आनंद बक्शी ने शैलेंद्र सिंह, उदित नारायण, कुमार सानू, कविता कृष्णमूर्ति और एस. पी. बालासुब्रमण्यम जैसे कई बड़े गायकों के पहले गीत के बोल लिखे। 30 मार्च 2002 में आनंद बक्शी ने इस दुनिया से विदा लिया तब तक वह एक गीतकार के रूप में सक्रिय रहे थे। साल 2001 में सुपरहिट फिल्म ‘गदर एक प्रेम कथा’ का गीत “उड़ जा काले कांवा” लिखा। आनंद बक्शी तो नहीं रहे लेकिन अपने सदाबहार गीतों के माध्यम से वे हमेशा हमारे बीच हैं।

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