दर्शक तो सुपरस्टार राज कुमार को पसंद करते थे, लेकिन फिल्म उद्योग उनसे चिढ़ने लगा था

हमारे सदाबहार सुपरस्टार राज कुमार भारतीय सिनेमा में अद्वितीय छाप छोड़ चुके थे। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि उनका अपने ही उद्योग से मोहभंग हो चुका था?

Audience loved Raaj Kumar, but the film fraternity hated him

SOURCE- TFI

“मेरे जानी, अभी पहना ले हार, जब जाएंगे, तब पता भी नहीं चलेगा!” “कैसी बात कर रहे हैं आप? लंबी उम्र हो आपकी, सौ साल जियें!”

“जानी, तुमको मालूम नहीं, शमशान यात्रा को तमाशा बना देते हैं फिल्म लाइन में। लोग आएंगे सफेद कपड़ों में, फिर प्रेस भी आएगी। जो गया है, उसका सम्मान करने के बजाए उसका तमाशा बना देगी। मेरा अंतिम संस्कार मेरे परिवार का मैटर है। मेरे परिवार को छोड़कर कोई भी नहीं आएगा!”

यह शब्द थे बॉम्बे पुलिस के पूर्व सब इंस्पेक्टर कुलभूषण पंडित यानी राज कुमार के जो अब तक भारतीय सिनेमा में एक अद्वितीय छाप छोड़ चुके थे। परंतु ऐसा भी क्या हुआ था, जिसके कारण हमारे सदाबहार राज कुमार का अपने ही उद्योग से ऐसा मोहभंग हो चुका था?

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भारतीय सिनेमा पर एक अलग छाप

राज कुमार, जिन्होंने भारतीय सिनेमा पर एक अलग ही छाप छोड़ी और जिनको चाहने वालों की और उन्हें पसंद करने वालों की आज भी कमी नहीं है लेकिन राज कुमार को उन्हीं के उद्योग के लोग अक्सर एक अकड़ू, राजसी ठाटबाट के साथ रहने वाले सुपरस्टार के रूप में चित्रित करते आए हैं, जो कभी किसी की नहीं सुनते। लेकिन वास्तविकता तो कुछ और ही है। बंधु, एक घमंडी व्यक्ति और एक ढीठ व्यक्ति में आकाश पाताल का अंतर होता है और राज कुमार घमंडी कम, धुन के पक्के यानी ढीठ अधिक थे। वे अपने आत्मसम्मान से कभी समझौता नहीं कर सकते थे, जिसके कारण उन्होंने अनेक लोगों से शत्रुता मोल ली थी।

उदाहरण के लिए राज कुमार की राज कपूर से कभी नहीं बनती थी। इसके अनेक कारण थे जिसमें से दो प्रमुख कारण थे– नरगिस और मेरा नाम जोकर। नरगिस के अनेक चाहने वाले थे जिनमें से एक राज कुमार भी थे और इसीलिए राज कपूर सदैव इनसे ईर्ष्या रखते थे। एक समय इन्होंने राज कुमार को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया था, जिस पर राज कुमार ने प्रत्युत्तर में खूब खरी खोटी सुनाई, और मेरा नाम जोकर में इसीलिए उन्होंने कथित रूप से काम करने से भी मना कर दिया था।

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दिलीप कुमार और रजनीकान्त

दिलीप कुमार इनके साथ लगभग 36 वर्ष तक सिर्फ इसलिए काम नहीं किये, क्योंकि पैगाम नामक फिल्म में एक दृश्य में राज कुमार ने आवश्यकता से अधिक तीव्रता से झापड़ जड़ दिया। कहते हैं कि ‘तिरंगा’ में इनके कारनामों के कारण रजनीकान्त ने इंस्पेक्टर वाग्ले का रोल करने से ही मना कर दिया, और स्वयं नाना पाटेकर भी इनके साथ बहुत अच्छे टर्म्स पर नहीं थे।

वास्तविक जीवन में इनका व्यक्तित्व इससे काफी भिन्न था। इनके पुत्र पुरु राजकुमार के शब्दों में, राज कुमार अल्हड़ अवश्य थे, परंतु अकड़ू और कुटिल नहीं। उनके अनुसार, “डैड रोमैन्टिक खूब थे। छोटी-छोटी चीजों में अपने लिए गजब की प्रसन्नता ढूंढते थे, जैसे मां के साथ पेड्डर रोड पर पान खाने के लिए जीप में जाना, साथ में टीवी देखना या पुस्तक पढ़ना। जब वह कुछ पकाती, तब वह उनके प्रतिक्रिया के लिए प्रतीक्षा करती। वह कुछ भी नहीं करते, खाते रहते। पर कुछ समय बाद कहते, “आज जो बनाया है, बहुत अच्छा बनाया है!”

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वो क्या है कि कुछ लोगों को अपने आप को जेन्टलमैन सिद्ध करने के लिए प्रमाणपत्र नहीं देना पड़ता और कुछ लोग चिंघाड़-चिंघाड़ के जताते हैं कि हम सौम्य पुरुष हैं, लीचड़ नहीं। राज कुमार फिल्म उद्योग के लिए भले ही अपाच्य थे, परंतु जनता की आंखों के तारे थे क्योंकि जिसे जनता का प्यार मिले, वह चंद चाटुकारों की जी हुज़ूरी पर ध्यान क्यों देगा?

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