Baglamukhi Kavach Benefits and Precautions
स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Baglamukhi Kavach के बारे में साथ ही इससे जुड़े लाभ एवं सावधानियां -के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें.
बगलामुखी कवच आपको और आपके परिवार को बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है। शत्रुओं से परेशान हैं तो माता बगलामुखी की कृपा से शत्रुओं से मुक्ति मिलेगी देवी बगलामुखी के आशीर्वाद से धारक को दुश्मनों पर विजय प्राप्त होती है।
बगलामुखी कवच के लाभ –
- धारक के जीवन से नकारात्मक ऊर्जाओं और तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव समाप्त होते है।
- आपको हानि पंहुचा रहे लोगों और शत्रुओं का नाश होता है।
- व्यापार और दुकान में आ रही धन-सम्बंधित समस्याओं को दूर करता है।
- व्यवसाय व करियर से जुडी परेशानियां दूर होने के साथ सफलता प्राप्त होती है।
- कोर्ट-कचहरी जैसे ज़मीन-जायदाद, झूठे केस में राहत प्राप्त होती है।
- देवी बगलामुखी के आशीर्वाद से धारक को दुश्मनों पर विजय प्राप्त होती है।
- बगलामुखी कवच मनचाहा जीवनसाथी पाने में सहायक होता है।
- यह कवच धारण करने से असाधारण कार्य भी सिद्ध हो जाते है।
सावधानियां –
- कवच धारण करने वाले दिन मांस-मदिरा का सेवन नहीं करे।
- अगर आप किसी की शवयात्रा में जाते है तो कवच को उतार कर जाए
- नवजात शिशु से मिलने जाते समय कवच को उतार कर जाए।
॥ अथ बगलामुखी कवचं प्रारभ्यते ॥
श्रुत्वा च बगला पूजां स्तोत्रं चापि महेश्वर।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो।
वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाऽशुभ विनाशकम्।
शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दु:ख-नाशनम्॥
॥ श्री भैरव उवाच ॥
कवच श्रृणु वक्ष्यामि भैरवि। प्राणवल्लभम्।
पठित्वा-धारयित्वा तु त्रैलोक्ये विजयी भवेत्॥
नियोग करें –
ॐ अस्य श्री बगलामुखीकवचस्य नारद ऋषि: अनुष्टुप्छन्द: श्रीबगलामुखी देवता।
ह्लीं बीजम्। ऐं कीलकम्।
पुरुषार्थचतुष्टयसिद्धये जपे विनियोग:॥
॥ अथ कवचम् ॥
शिरो मे बागला पातु ह्रदयैकक्षरी परा।
ॐ ह्रीं ॐ मे ललाटे च बगला वैरिनाशिनी॥
गदाहस्ता सदा पातु मुखं मे मोक्षदायिनी।
वैरि जिह्राधरा पातु कण्ठं मे बगलामुखी॥
उदरं नाभिदेंश च पातु नित्यं परात्परा।
परात्परतरा पातु मम गुह्रं सुरेश्वरी
हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती परिपातु मे।
विवादे विषमे घोरे संग्रामे रिपुसंकटे॥
पीताम्बरधरा पातु सर्वांगं शिवंनर्तकी।
श्रीविद्या समयं पातु मातंगी पूरिता शिवा॥
पातु पुत्रीं सूतञचैव कलत्रं कलिका मम।
पातु नित्यं भ्रातरं मे पितरं शूलिनी सदा॥
रंध्रं हि बगलादेव्या: कवचं सन्मुखोदितम्।
न वै देयममुख्याय सर्वसिद्धि प्रदायकम्॥
पठनाद्धारणादस्य पूजनादवांछितं लभेत्।
इंद कवचमज्ञात्वा यो जपेद् बगलामुखीय॥
पिबन्ति शोणितं तस्य योगिन्य: प्राप्य सादरा:।
वश्ये चाकर्षणे चैव मारणे मोहने तथा॥
महाभये विपतौ च पठेद्वरा पाठयेतु य:।
तस्य सर्वार्थसिद्धि:। स्याद् भक्तियुक्तस्य पार्वति॥
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