राजस्थान के विधानसभा चुनाव में अब एक साल से भी कम समय रह गया है। अगले साल के अंत तक राज्य में चुनाव होने जा रहे है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपनी कमर कस के चुनावी दंगल में दांव लगाने के लिए अभी से तैयारियों में जुट गए हैं। एक ओर कांग्रेस सत्ता में बने रहने लिए अपने समीकरणों के भरपूर प्रयास कर रही है तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी कांग्रेस को धोबी पछाड़ लगाकर राजस्थान के दंगल में चित्त कर वापसी करना चाहती है। वैसे तो अभी कुछ स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इस बार चुनाव किस पक्ष में जाएगा परंतु समीकरण इस बार राजस्थान में बदलाव की ओर इशारा कर रहे हैं। इसीलिए आज हम राजनीतिक पंडितों की भूमिका अदा करते हुए राजस्थान के राजनीतिक भविष्य पर विश्लेषण करते हुए जानेंगे कि आखिरकार राजस्थान की हवा का रूख किस ओर है?
दरअसल, राजस्थान की राजनीति में आमतौर पर एक ही बात स्पष्ट रूप से देखने के लिए मिलती है वहां हर पांच वर्ष में सत्ता परिवर्तन होता है। लेकिन किसी भी राजनीतिक दल के लिए सिर्फ परंपरा ही संतुष्टि का कारण नहीं हो सकती। क्योंकि राजनीति में परंपराओं को टूटते वक्त नहीं लगता। संवेदनाओं की एक छोटी सी लहर किसी भी पार्टी की वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। इसीलिए राजनीतिक पार्टियां चुनाव से पहले ही अपनी तैयारियों को मजबूती प्रदान करना शुरू कर देती हैं। राजस्थान के चुनाव में भी कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है। बीजेपी ने अभी से अपने विजय रथ की मरम्मत करना चालू कर दिया और जिस प्रकार समीकरण इशारा कर रहे हैं उससे तो यही प्रतीत होता है कि बीजेपी का विजय रथ इस बार रुकने वाला नहीं है।
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2017 राजस्थान चुनाव के परिणाम
राजस्थान में चुनावी गेंद के बीजेपी के पाले में जाने का सबसे पहला उदाहरण है 2017 का विधानसभा चुनाव है। 2017 के चुनाव में मिलने वाले वोट प्रतिशत की ओर यदि गौर की जाए तो बीजेपी को 38.8 प्रतिशत, कांग्रेस को 39.3 प्रतिशत और बसपा को 4 प्रतिशत वोट मिले थे। इस आधार पर अगर देखा जाए तो कांग्रेस और बीजेपी के वोट प्रतिशत में अधिक अंतर नहीं दिखाई देता है और रही बात बसपा की तो मौजूदा समय में वह असतित्ववीहन हो चुकी है।
2017 में बसपा ने कांग्रेस का समर्थन किया था। परंतु फिर बाद में कांग्रेस ने बसपा के सभी छह विधायकों को तोड़ते हुए उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करा लिया था। जिस पर बसपा प्रमुख मायावती काफी भड़क गई थीं और कांग्रेस को गैर भरोसेमंद और धोखेबाज पार्टी बताया था। ऐसे में बसपा किसी भी कीमत पर कांग्रेस का साथ तो इस बार देगी नहीं। वहीं यदि वो कुछ सीटों पर कब्जा जमाने में सफल रहती है, तो कांग्रेस के साथ खेल अवश्य कर सकती है।
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गहलोत और पायलेट विवाद
राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस को कमजोर करने वाला अशोक गहलोत और सचिन पायलेट विवाद किसी से छिपा हुआ नहीं है। एक ही पार्टी के दो राजनेता अपने अलग-अलग गुट बनाकर राजस्थान में कांग्रेस की जमीन को कमजोर करने का काम कर रहे हैं। यही नहीं बीते साढ़े चार सालों में न जाने कितनी बार मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद हुआ है और विवाद भी कोई छोटा मोटा नहीं बल्कि सचिन पायलेट तो कांग्रेस पार्टी छोड़ने की पूरी तैयारी भी कर चुके थे। इसीलिए आने वाले समय में गहलोत और पायलेट विवाद से सीधे तौर पर बीजेपी को लाभ होने वाला है।
राजस्थान के जातीय समीकरण
राजस्थान के जातीय समीकरणों को देखा जाए तो यहां पर सबसे अधिक जाति 40 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग (OBC) के लोग है, जिसमें गुर्जर 5 प्रतिशत, जाट 10 प्रतिशत और माली 4 प्रतिशत हैं और बाकी 20 प्रतिशत में पिछड़ा वर्ग की दूसरी जातियां आती हैं। 5 प्रतिशत गुर्जर वोट बैंक को छोड़ दिया जाए तो बाकी की दूसरी जातियों की बीजेपी के साथ जाने की संभावनाएं बन रही हैं। हालांकि जिस प्रकार कांग्रेस ने सचिन पायलेट के साथ सौतेला व्यवहार किया है उसका प्रभाव गुर्जर वोट बैंक पर भी देखने के लिए मिलेगा। सवर्ण जातियों की बात की जाए तो राजस्थान में 19 प्रतिशत सवर्ण हैं जिसमें 7 प्रतिशत ब्राह्मण, 6 प्रतिशत राजपूत, 4 प्रतिशत वैश्य और 2 प्रतिशत अन्य जातियां हैं। इनका वोट हमेशा से ही बीजेपी को जाता रहा है और इस साल भी बीजेपी को जाने की ही पूरी-पूरी संभावनाएं हैं।
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वहीं अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के बारे में बात की जाए तो क्रमशः 18 प्रतिशत और 14 प्रतिशत वोट हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राजस्थान की सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी, जिसमें कई ऐसी सीटें भी थीं जो अनुसूचित जाति(एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के बाहुल्य इलाकों की थीं। इसके अलावा बसपा के कमजोर होने के बाद एससी, एसटी वोट बीजेपी की ओर शिफ्ट हुआ है। यही नहीं पीएम मोदी की छवि ने भी एससी और एसटी समुदाय को बीजेपी की ओर आकर्षित किया है। अब इसके बाद बात आती है राजस्थान के मुस्लिम वोट की तो मुस्लिमों की जनसंख्या 9 % है और हमेशा से ही कांग्रेस को वोट देती रही है इसलिए यहां बीजेपी की संभावना भी कम ही है। हालांकि देखा जाये तो इसका बीजेपी पर उतना प्रभाव भी नहीं पड़ने वाला है।
मुख्यमंत्री चेहरा
जातीय समीकरण के बाद बात आती है राजस्थान में कांग्रेस में मुख्यमंत्री को लेकर पिछले पांच वर्षों से लगातार विवाद चल रहा है, ये हर कोई देख ही रहा है। ऐसे में चुनावों के दौरान कांग्रेस के बीच का विवाद यदि और बढ़ जाए तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं होगी। वहीं बीजेपी के मुख्यमंत्री चेहरे की तकें तो अभी इसके बारे में कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि दूसरे राज्यों के चुनावों को देखा जाए तो बीजेपी ने पीएम मोदी और पार्टी द्वारा किए कामों के मुद्दों पर ही चुनाव लड़ा है, इसलिए हो सकता है कि बीजेपी यहां भी पीएम मोदी और केंद्र सरकार के कामों पर ही चुनाव लड़े और उसके बाद मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा करें। 2017 में वसुंधरा राजे के चेहरे पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा था और भले ही कम अंतर से लेकिन हार का सामना तो करना ही पड़ा था। हालांकि पार्टी के पास बड़ा चेहरा नहीं होने की वजह से भाजपा एक बार फिर वसुंधरा राजे सिंधिया का रूख कर सकती हैं या फिर गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे कुछ नाम भी भाजपा के मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर चर्चाओं में है।
यदि राजस्थान के राजनीतिक भविष्य के बारे में संक्षेप में कहा जाए तो समीकरणों को देखते हुए यही सामने आ रहा है कि आने वाले साल राजस्थान में सत्ता परिवर्तन का साल हो सकता है। हालांकि चुनावी परिणाम किसके पक्ष में जाएंगे और कौन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होगा, ये तो समय आने पर ही पता चल पाएगा।
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