महाशक्ति बनने का सपना पाल बैठा चीन इन दिनों बेहद ही हताश और परेशान है, भारतीय सेना से उसे इतनी मार जो पड़ी है। अरुणाचल में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे चीनी सैनिकों की भारतीय जवानों ने ऐसी कुटाई की कि उन्हें वहां से दुम दबाकर भागने को ही मजबूर कर दिया। पड़ोसी देशों की सीमा में घुसपैठ करने, उनकी जमीनों को अपना बताने की आदत चीन की काफी पुरानी रही है, जिसके चलते ही आए दिन वो अपने पड़ोसी देशों के लिए समस्याएं खड़ी करता रहता है। हालांकि भारत से पंगा लेना उसे भारी पड़ जाता है क्योंकि हर बार भारत के हाथों मुंह की खाने को मजबूर होना पड़ता है। इस लेख में हम जानेंगे कि आखिर क्यों पूर्वोत्तर में चीन इतना धूतर्ता दिखा रहा है, उसके पीछे उसकी मंशा क्या है?
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भारत-चीन में झड़प
भारत, चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। पांच भारतीयों राज्य लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश से चीन की सीमा लगी हुई है। चीन इन इलाकों में अक्सर अपनी ओछी हरकतों को अंजाम देता रहता है। अब एक बार फिर चीन ने भारत की सीमा में घुसपैठ करने की कोशिश की है, जिसका भारतीय सेना ने करारा जवाब दिया है।
चीन ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में घुसपैठ की, जिस दौरान ही भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हो गईं। 9 दिसंबर को हुई इस झड़प में भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों की जबरदस्त कुटाई की है। साथ ही बहादुर जवानों ने चीनियों को भारतीय सीमा से खदेड़ भी दिया।
देखा जाए तो चीन ने ऐसा पहली बार नहीं किया। इससे कुछ महीने पूर्व भी चीनी सेना के करीब 200 जवान तवांग सेक्टर में भारतीय सीमा में घुस आए थे और भारतीय जवानों के साथ उनकी हाथापाई भी हुई। हालांकि बाद में स्थानीय कमांडरों ने अपने स्तर पर विवाद को सुलझाया था और चीनी सैनिकों को वापस भेजा गया। अब ऐसे में यहां प्रश्न यही उठता है कि आखिर क्यों चीन बार-बार पूर्वोत्तर में इस तरह की हरकतें करता रहता है?
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परियोजनाओं से बौखालाया चीन
इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यही दिखता है कि मोदी सरकार द्वारा पूर्वोत्तर को मजबूत करने की दिशा में उठाए जा रहे कदम से ड्रैगन बौखला गया है। अरुणाचल प्रदेश में चीन से सटे वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के आसपास के इलाकों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए भारत सरकार ने हाल के वर्षों में कई विकास परियोजनाएं शुरू की हैं। इन परियोजनाओं को लेकर शुरुआत से ही चीन की बेचैनी देखने को मिली है।
आप देखेंगे कि जब से ही मोदी सरकार सत्ता में आई है उसने पूर्वोत्तर पर अपना ध्यान केंद्रित किया। सरकार ने इन इलाकों के बजट में भारी वृद्धि की है। बता दें कि पूर्वोत्तर के इलाक़ों की आधारभूत परियोजनाओं के लिए इस वर्ष 249.12 करोड़ की रकम आवंटित की है, जबकि पिछले साल यह महज 42.87 करोड़ थीं।
ड्रैगन की नापाक साजिशों को ध्वस्त करने के लिए सरकार लगातार बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में जुटी है। सीमा क्षेत्रों तक सड़क संपर्क बढ़ाने के लिए सरकार ने बीआरओ के लिए निर्धारित राशि को पिछले साल की तुलना में 40 फीसदी बढ़ाकर 2022-23 के आम बजट में 3500 करोड़ रुपये कर दिया। वहीं चीन से सटे इलाकों में सड़क संपर्क बढ़ाने की कोशिशों का परिणाम यह है कि पिछले साल बीआरओ उत्तर-पश्चिमी और पूर्वोत्तर के राज्यों में 102 सड़कें और पुल बनाए गए। इन परियोजनाओं से होगा ये कि चीन के साथ किसी संभावित टकराव के दौरान सैन्य दस्ते को इन इलाकों में तेजी से भेजा जा सकेगा और यही चीन की परेशानी की वजह बना हुआ है। जिस वजह से वो बार-बार पूर्वोत्तर में घुसकर इस तरह के दुस्साहस को अंजाम देने की कोशिश करता रहता है।
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अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे से उड़ी नींद
इसके अलावा चीन की बौखलाहट का एक बड़ा कारण अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे भी है, जिसका निर्माण तेज गति के साथ किया जा रहा है। भारत का ये प्रोजेक्ट महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पूरा होने से अरुणाचल प्रदेश से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पूरी तरह से एक हाईवे से जुड़ जाएगी, जिससे LAC पर चीन के द्वारा की जा रही गतिविधियों पर पैनी नजर बनाए रखना बेहद ही आसान हो जाएगा और चालबाज चीन की हरकतों का मुंहतोड़ जबाव देना भी सरल हो जाएगा। इस प्रोजेक्ट ने ड्रैगन की नींदे उड़ाकर रखी दी हैं। तवांग सेक्टर में चीनी सैनिकों की उकसावे भरी कार्रवाई को पूर्वोत्तर में चल रही विकास परियोजनाओं से जोड़कर देखा जा रहा है। ऐसा माना जा सकता है कि जो चीन पूर्वोत्तर में इतना उछल रहा है उसके पीछे की असल वजह शी जिनपिंग की झुंझलाहट है।
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